पूंजीवादी उत्पादन " मन्त्री पंच के रूप में नियुक्त कर देता है। हम तो यह समझते हैं कि इस प्रकार एक तरह से खुब मालिक ही अपना पंच नियुक्त कर देता है।" (नं० ५८१) जो पूंजीपति गवाह से जिरह कर रहा है, वह खुद भी जान का मालिक है: वह पूछता है : “पर... क्या यह एक महन खयाली एतराज है?" (नं० ५८६ ।) तब तो खान-मंजीनियरों की ईमानदारी के बारे में मापकी राय बहुत अच्छी नहीं है ?" "उनका रख निश्चय ही अन्याय और बेइन्साफ़ी का होता है"। (नं० ५८८1) "क्या खानों के इंजीनियरों का एक प्रकार से सार्वजनिक व्यक्तित्व नहीं होता और क्या आपके विचार में यह सच नहीं है कि आपको जैसी प्राशंका है, वैसा पक्षपात ये इंजीनियर कभी नहीं करेंगे? 'इन लोगों के व्यक्तिगत चरित्र के बारे में पापने जिस प्रकार का प्रश्न किया है, में उसका उत्तर देना नहीं चाहता। मेरा विश्वास है कि बहुत से मामलों में वे निश्चय ही बहुत अधिक पक्षपात करेंगे, और जहां इनसानों की जान दांव पर लगी हुई है, वहां उन्हें ऐसा करने का कोई मौका नहीं होना चाहिये।" (नं० ५८९1) पर इसी पूंजीपति को यह प्रश्न करने में कोई संकोच नहीं हुमा : "पापके खयाल में क्या विस्फोट से मालिक की कोई हानि नहीं होती?" और अन्त में वह पूछता है: "लंकाशायर के पाप मजदूर लोग क्या सरकार का मुंह जोहे बिना खुद अपनी मदद नहीं कर सकते?" "नहीं। (न. १०४२) १८६५ में ब्रिटेन में ३,२१७ कोयला-खाने बों और १२ इंस्पेक्टर। यार्कशायर के एक सान-मालिक ने ("The Times के २६ जनवरी १८६७ के अंक में) जुन हिसाब लगाया है कि यदि इंस्पेक्टरों के दफ्तर के काम को, जिसमें उनका सारा समय चला जाता है, ध्यान में न रखा जाये, तो भी प्रत्येक खान का बस वर्ष में केवल एक बार निरीक्षण किया जा सकता है। तब या पाश्चर्य है यदि पिछले दस वर्षों में विस्फोटों की संख्या और प्रभाव क्षेत्र में बराबर वृद्धि होती गयी है (और कभी-कभी तो एक-एक विस्फोट में दो-दो सौ, तीन-तीन सौ पादमियों की जान चली जाती है)? यह है " स्वतंत्र" पूंजीवादी उत्पादन के मन्ने ! • १८७२ में जो बहुत त्रुटिपूर्ण कानून पास हुमा, वह पहला कानून है, जो खानों में नौकरी करने वाले बच्चों के श्रम के घण्टों का नियमन करता है और तथाकषित दुर्घटनामों के लिये किसी हद तक शोषकों और मालिकों को जिम्मेदार ठहराता है। जो बच्चे, लड़के-लड़कियां और स्त्रियां खेती का काम करने के लिये नौकर रखे जाते हैं, उनकी हालत की जांच करने के लिये १८६७ में एक राजकीय प्रायोग नियुक्त किया गया था। इस प्रायोग ने कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित की हैं। खेती में फैक्टरी-कानूनों के सिद्धान्तों को, मगर संशोषित रूप में, लागू करने की कई कोशिशें हो चुकी हैं, पर अभी तक वे पूरी तरह असफल होती रही है। यहां पर मैं केवल इस बात की पोर पाठक का ध्यान प्राकर्षित करना चाहता हूं कि इन सिद्धान्तों को पाम तौर पर सभी क्षेत्रों में लागू करने की एक परोष्य प्रवृत्ति पायी जाती है। यदि मजदूर-वर्ग के मस्तिष्क एवं शरीर की सुरक्षा के उद्देश्य से सभी पंषों पर पाम तौर से फैक्टरी कानूनों का लागू किया जाना एक प्रवश्यम्भावी बात बन गया है, तो, दूसरी ओर, जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं, जैक्टरी-कानूनों का यह विस्तार अलग-अलग काम करने . . . .
- यह वाक्य अंग्रेजी पाठ में, जिसके अनुसार हिन्दी पाठ है, चौथे जर्मन संस्करण के
अनुसार जोड़ दिया गया है। -सम्पा.