५४ पूंजीवादी उत्पादन 1 बाद भी पहले जितना ही समय खर्च करना पड़ता था, लेकिन उसके बावजूर इस परिवर्तन के बाद उनके एक घण्टे के भम की पैदावार सामाजिक मन के केवल पावे घन्टे का ही प्रतिनिधित्व करती थी और इसलिए उस पैदावार का मूल्य पहले से पाषा रह गया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी वस्तु के मूल्य का परिमान इस बात से निश्चित होता है कि उसके उत्पादन के लिए सामाजिक दृष्टि से कितना मम प्रावश्यक है, प्रवा सामाजिक दृष्टि से कितना भम-काल पावश्यक है। इस सम्बंध में हर अलग-अलग उंग के माल को अपने वर्ग का प्रोसत नमूना समझना चाहिए।' इसलिए जिन मालों में मन की बराबर मात्राएं निहित हैं या जिनको बराबर समय में पैदा किया जा सकता है, उनका एक सा मूल्य होता है। किसी भी माल के मूल्य का दूसरे किसी माल के मूल्य के साप यही सम्बंध होता है, जो पहले माल के उत्पादन के लिए प्रावश्यक मम-काल का दूसरे माल के उत्पादन के लिए प्रावश्यक श्रम-काल के साथ होता है। "मूल्यों के स में तमाम माल घनीभूत श्रम-काल की निश्चित राशियां मात्र हैं। इसलिए, यदि किसी माल के उत्पादन के लिए मावश्यक प्रम-काल स्थिर रहता है, तो उसका मूल्य भी स्थिर रहेगा। लेकिन पावश्यक बम-काल श्रम की उत्पादकता में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन के साथ बदलता जाता है। मह उत्पादकता विभिन्न परिस्थितियों से निर्धारित होती है। अन्य बातों के अलावा, वह इस बात से निर्धारित होती है कि मजदूरों को प्रोसत निपुणता कितनी है, विज्ञान की क्या बक्षा है तथा उसका व्यावहारिक प्रयोग कितना हो रहा है, उत्पादन का सामाजिक संगठन कैसा है, उत्पावन के साधनों का विस्तार तथा सामयं कितनी है और भौतिक परिस्थितियां कैसी है। उदाहरण के लिए, अनुकूल मौसम होने पर ८ बुझेल मनान में जितना भन निहित होता है, प्रतिकूल मौसम होने पर उतना भन केवल चार बुशेल में निहित होता है। घटिया सानों के मुकाबले में बढ़िया बानों से उतना ही श्रम स्यादा पातु निकाल लेता है। हीरे जमीन की सतह पर बहुत मुश्किल से ही कहीं-कहीं मिलते हैं, और 14 'जब उनका (जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं का) मापस में विनिमय होता है, तब उनका मूल्य इस बात से निर्धारित होता है कि उनको पैदा करने में कितने श्रम की लाजिमी तौर पर मावश्यकता होती है और माम तौर पर उनके उत्पादन में कितना श्रम लगता है" "Some Thoughts on the Interest of Money in General, and Particularly in the Publick Funds etc.” ('मुद्रा के सूद के विषय में सामान्य रूप से पौर विशेषतः सार्वजनिक कोष की मुद्रा के सूद के विषय में कुछ विद्यार, इत्यादि'), London, पृ० ३६ । पिछली शताब्दी में लिखी गयी इस उल्लेखनीय गुमनाम रचना पर कोई तारीख नहीं है। परन्तु अन्दरूनी प्रमाणों से यह बात साफ है कि वह जा वितीय के राज्य-काल में, १७३९ या १७४० के मास-पास प्रकाशित हुई थी। 8 "Toutes les productions d'un même genre ne forment proprement qu'une masse, dont le prix se détermine en général et sans égard aux circonstances particulleres." ["एक ही प्रकार की सभी उत्पादित वस्तुओं को मूलतया केवल एक ही राशि समझना चाहिए, जिसका दाम सामान्य बातों से निर्धारित होता है और जिसके सम्बंध में विशिष्ट बातों की पोर ध्यान नहीं दिया जाता"] (Le Trosne, उप० पु०, पृ. ८९३)। . Karl Marx, उप. पु., पृ. ६.
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