माल . इसलिए उनका पता लगाने में पीसतन बहुत अधिक मम-काल खर्च होता है। इसलिए यहां बहुत छोटी सी बीच बहुत अधिक श्रम का प्रतिनिधित्व करती है। कब को तो इसमें भी सन्देह है कि सोने का कभी पूरा मूल्य प्रदा किया गया है। हीरों पर यह बात और भी ज्यादा लागू होती है। एश्चवेगे का कहना है कि बाजील की हीरे की खानों से १८२३ तक पिछले प्रस्ती बरस में जितने हीरे प्राप्त हुए थे, उनके इतने दाम भी नहीं पाये थे, जितने उसी देश के इस पोर कहने के बागानों की मे बरस की मौसत पैदावार के मा गये थे, हालांकि हीरों में बहुत ज्यादा मम सर्च हुमा वा और इसलिए वे अधिक मूल्य का प्रतिनिधित्व करते थे। यदि जानें अच्छी हों, तो उतना ही भम स्यावा हीरों में निहित होगा और उनका मूल्य गिर जायेगा। यदि हमें थोड़ा सा श्रम सर्च करके कार्बन को हीरे में बदलने में कामयाबी मिल जाये, तो हो सकता है कि हीरों का मूल्य ईटों से भी कम रह जाये।माम तौर पर, श्रम की उत्पादकता जितनी अधिक होती है, किसी भी वस्तु के उत्पादन के लिए उतना ही कम बम-काल पावश्यक होता है, उस वस्तु में उतना ही कम श्रम निहित होता है और उसका मूल्य भी उतना ही कम होता है। इसके विपरीत, भम की उत्पादकता जितनी कम होती है, किसी भी बस्तु के उत्पादन के लिए उतना ही अधिक श्रम-काल आवश्यक होता है और उसका मूल्य भी उतना ही अधिक होता है। इसलिए, किसी भी माल का मूल्य उसमें निहित मम की मात्रा के अनुलोम अनुपात में और उत्पादकता के प्रतिलोन अनुपात में बदलता . . यह सम्भव है कि किसी वस्तु में मूल्य न हो, मगर वह उपयोग-मूल्य हो । जहाँ कहीं मनुष्य के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता श्रम के कारण नहीं होती, वहां यही सूरत होती है। हवा, अछूती परती, प्राकृतिक परागाह मादि सब ऐसी ही चीखें हैं। यह भी सम्भव है कि कोई चीन उपयोगी हो और मानव-श्रम की पैदावार हो, मगर माल न हो। जो कोई सीधे तौर पर बुर अपने श्रम की पैदावार से अपनी पावश्यकता पूरी करता है, वह उपयोग मूल्य तो सर पैदा करता है, मगर माल पैदा नहीं करता। माल पैदा करने के लिए बकरी है कि वह न सिर्फ उपयोग-मूल्य पैदा करे, बल्कि दूसरों के लिए उपयोग-मूल्य-पानी सामाजिक उपयोग-मूल्य- पैदा करे। (और केवल दूसरों के लिए पैदा करना हो काकी नहीं है, कुछ और भी चाहिए। मध्ययुगी किसान अपने सामन्ती स्वामी के लिए बेगार के तौर पर और अपने पारी के लिए बक्षिणा के तौर पर अनाव पैदा करता था। लेकिन न तो बेगार का अनान और न ही पमिला का मनान इसलिए माल बन जाता था कि वह दूसरों के लिए पैदा किया गया था। माल बनने के लिए जरूरी है कि पैदावार एक के हाथ से विनिमय के परिये दूसरे के हाथ मेंजाये, जिसके पास वह उपयोग-मूल्य केस में काम पाये।) पाखिरी बात यह है कि यदि कोई बीच उपयोगी नहीं है, तो उसमें मूल्य भी नहीं हो सकता। यदि कोई बीच पर्व है, तो उसमें निहित मम भी व्यर्व है, ऐसे मम की गिनती भम केस में नहीं होती और इसलिए उससे कोई मूल्य पैदा नहीं होता। . चीने बर्मन संस्करण का नोटः कोष्ठों के भीतर छपा यह अंश मैंने यहां इसलिए जोड़ दिया है कि उसके छूट जाने से अक्सर यह गलतफहमी पैदा हो जाती थी कि मास हर उस पैदावार को माल समझते थे, जिसका उपयोग उसको पैदा करने वाले के सिवा कोई और पादमी करता था।-० ए०] .
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