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पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५७७

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५७४ पूंजीवादी उत्पादन . . है। इसलिये, वह उत्पादन की एक विशिष्ट प्रणाली-पूंजीवादी प्रणाली-को पूर्वाधार मान लेता है। मम के प्रौपचारिक रूप से पूंजी के प्रवीन हो जाने के फलस्वरूप जो बुनियाव तैयार हुई थी, उसके प्राधार पर इस प्रणाली का, मय उसके तरीकों, साधनों और परिस्थितियों के, स्वयंस्फूर्त ढंग से जन्म और विकास हुमा है। इस विकास के दौरान में पूंजी के मातहत श्रम की प्रौपचारिक प्रधीनता के स्थान पर वास्तविक प्रवीनता स्थापित हो जाती है। यहां पर कुछ ऐसे अन्तकालीन रूपों की पोर संकेत भर कर देना काफ़ी होगा, जिनमें उत्पादक के साथ सीधे तौर पर खबर्दस्ती करके अतिरिक्त मूल्य हासिल नहीं किया जाता और जिनमें जुब उत्पादक को भी अभी तक प्रौपचारिक रूप से पूंजी के अधीन नहीं बनाया जाता। ऐसे रूपों में श्रम-प्रक्रिया पर अभी पूंजी का प्रत्यक्ष नियंत्रण कायम नहीं होता है। पुराने परम्परागत ढंग से अपनी बस्तकारियों और खेती का संचालन करने वाले स्वतंत्र उत्पादकों के साथ-साथ सूदखोर महाजन या सौदागर भी, मय अपनी महाजनी पूंजी या सौदागरी पूंजी के, कायम रहता है और परजीवी की तरह स्वतंत्र उत्पादकों का रक्त चूसता है। जब किसी समाज में शोषण के इस रूप का प्रभुत्व होता है, तो फिर वहाँ उत्पावन को पूंजीवादी प्रणाली नहीं हो सकती। लेकिन यह स्म उस प्रणाली की मोर बढ़ने के लिये एक अन्तर्कालीन कबम का काम कर सकता है, जैसा कि उसने मध्य युग के अन्तिम दिनों में किया था। अन्तिम बात यह है कि प्राधुनिक उद्योग की पृष्ठभूमि में जहां-तहां कुछ बरमियानी रूपों का पुनरुत्पादन मुमकिन है, हालांकि उनका रंग-रूप बिल्कुल बदल जाता है। मसलन प्राधुनिक "घरेलू उद्योग' से यह बात स्पष्ट हो जाती है। यदि, एक पोर, निरपेन अतिरिक्त मूल्य के उत्पादन के लिये श्रम का केवल औपचारिक आप से पूंजी के अधीन हो जाना काफी होता है,-मिसाल के लिये, यदि उसके लिये केवल इतना ही काफी होता है कि वे वस्तकार, जो पहले खुद अपने वास्ते या किसी उस्ताद के शागिर्द की तरह काम किया करते थे, अब किसी पूंजीपति के प्रत्यक्ष नियंत्रण में मजदूरी लेकर काम करने वाले मजदूर बन जायें,-तो, दूसरी मोर, हम यह भी देख चुके हैं कि किस प्रकार सापेन अतिरिक्त मूल्य पैदा करने के तरीके उसके साथ-साथ निरपेन अतिरिक्त मूल्य पैदा करने के भी तरीके होते हैं। नहीं, बल्कि हमें यह भी पता चला था कि काम के दिन को हद से ज्यादा लम्बा खींचना पाषुनिक उद्योग का एक खास फल है। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि उत्पादन की विशिष्ट पूंजीवादी प्रणाली से ही उत्पादन की किसी एक पूरी शाला पर अधिकार कर लेती है, वैसे ही वह केवल सापेक अतिरिक्त मूल्य पैदा करने का साधन नहीं रह जाती ; और जब वह उत्पादन की सभी महत्वपूर्ण शालानों पर प्रषिकार कर लेती है, तब तो उसका यह म और भी कम रह जाता है। तब वह उत्पादन का सामान्य, सामाजिक दृष्टि से प्रधान रूप बन जाती है। सापेल अतिरिक्त मूल्य पैदा करने के एक मास तरीके के रूप में वह केवल उसी हब तक कारगर साबित होती है, जिस हद तक कि वह उन उद्योगों पर अधिकार करती जाती है, जो पहले केवल भोपचारिक रूप से पूंजी के अधीन थे, यानी जिस हद तक कि वह अपने क्षेत्र का विस्तार करती हुई अपना प्रचार करती चलती है। दूसरे, इस स्म में वह केवल उस हब तक कारगर साबित होती है जिस हद तक उसके अधिकार में पाये हुए उद्योगों में, उत्पादन के तरीकों में होने वाली तीलियों के फलस्वरूप कान्तिकारी परिवर्तन होते जाते हैं। एक दृष्टि से निरपेल और सापेक्ष अतिरिक्त मूल्य का मेव मिया मालूम होता है। सापेन . .