पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/५९

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पूंजीवादी उत्पादन - अनुभाग २- मालों में निहित श्रम का दोहरा स्वरूप पहली दृष्टि में माल दो चीजों के- उपयोग-मूल्य और विनिमय-मूल्य के-संश्लेव के रूप में हमारे सामने प्राया था। बाद में हमने यह भी देखा कि श्रम का भी वैसा ही बोहरा स्वरूप होता है, क्योंकि जहां तक कि वह मूल्य के रूप में व्यक्त होता है, वहां तक उसमें वे गुण नहीं होते, जो उपयोग-मूल्य के सृजनकर्ता के रूप में उसमें होते हैं। मालों में निहित भम की इस बोहरी प्रकृति की पोर सबसे पहले मैंने इशारा किया था और उसका पालोचनात्मक अध्ययन किया था। यह बात चूंकि प्रशास्त्र को स्पष्ट रूप से समझने की धुरी है, इसलिए हमें विस्तार में जाना होगा। वो माल ले लीजिये। मान लीजिये, एक कोट है और १० गत सन का बना कपड़ा है, पौर कोट का मूल्य १० गम कपड़े के मूल्य का दुगना है, यानी यदि १० गव कपड़ा तो कोट =२'क'। कोट एक उपयोग-मूल्य है, जो एक खास मावश्यकता को पूरा करता है। उसका अस्तित्व एक खास उंग की उत्पादक कार्रवाई का परिणाम है। इस उत्पादक कार्रवाई का स्वरूप उसके उद्देश्य, कार्य-पत्ति, विषय, साधनों और परिणाम से निर्धारित होता है। वह भम, जिसकी उपयोगिता इस प्रकार उसकी पैदावार के उपयोग मूल्य में व्यक्त होती है या जो अपनी पैदावार को उपयोग- मूल्य बनाकर प्रकट होता है, उसे हम उपयोगी श्रम कहते हैं। इस सम्बंध में हम केवल उसके उपयोगी प्रभाव पर विचार करते हैं। जिस प्रकार कोट और कपड़ा गुणात्मक दृष्टि से दो अलग-अलग तरह के उपयोग मूल्य है, उसी प्रकार उनको पैदा करने वाले मम भी अलग-अलग तरह के दो मम है-एक में बी ने कोट सिया है, दूसरे में बुनकर ने कपड़ा बुना है। यदि ये दो वस्तुएं गुणात्मक दृष्टि से अलग- अलग न होतीं, यदि वे दो अलग-अलग गुणों वाले मम से पैदा न हुई होती, तो उनका एक दूसरे के साथ मालों का सम्बंध नहीं हो सकता था। कोटों का विनिमय कोटों से नहीं होता, एक उपयोग मूल्य का उसी प्रकार के दूसरे उपयोग मूल्य से विनिमय नहीं किया जाता। जितने प्रकार के विभिन्न उपयोग मूल्य पाये जाते हैं, उनके अनुरूप उपयोगी मन के भी उतने ही प्रकार होते हैं। सामाजिक अम-विभाजन में जिस भेगी, प्रजाति, जाति एवं प्रमेव से मम का सम्बन्ध होता है, उसी के अनुसार उसका वर्गीकरण होता है। यह श्रम-विभाजन मालों के उत्पादन की बकरी शर्त है, लेकिन इसकी उल्टी बात सत्य नहीं है,-पानी मालों का उत्पादन श्रम-विभाजन की बकरी शर्त नहीं है। प्राविम भारतीय प्राम-समुदाय में श्रम का सामाणिक विभाजन तो होता है, लेकिन उसमें मालों का उत्पावन नहीं होता। या, नवदीक की मिसाल में, तो हर कारखाने के भीतर एक व्यवस्था के अनुसार मम का विभाजन होता है, लेकिन वह विभाजन इस तरह नहीं होता कि वहां काम करने वाले कर्मचारी अपनी अलग-अलग किस्म की पैदावारों का मापस में विनिमय करने लगते हों। पंवार को केवल में ही किस्में एक दूसरे के सम्बंध में माल बन सकती है, वो अलग-अलग रंग के बम से पैदा हुई हों और जिनको पैदा करने वाला हर अंग का मम स्वतंत्र म से और व्यक्तियों के निजी स्वार्थ के लिए किया गया हो। प्रस्तु, हम अपनी पर्चा फिर जारी करते हैं। प्रत्येक माल के उपयोग मूल्य में उपयोगी मम निहित होता है, अर्थात् एक निश्चित दश्य को सामने रखकर की गयी एक निश्चित रंग . . यदि हम