श्रम-शक्ति के दाम में और अतिरिक्त मूल्य में होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तन ५८७ . बामा अपने मूल्य इसी तरह यदि अतिरिक्त मूल्य भी ३ शिलिंग का हो और अतिरिक्त मम ६ घन्टे का हो, तब यदि अतिरिक्त श्रम के साथ प्रावश्यक श्रम का अनुपात बदले बिना ही श्रम की उत्पादकता पहले से दुगुनी कर दी जाये, तो अतिरिक्त मूल्य और मम-शक्ति के नाम में कोई परिमाणात्मक परिवर्तन नहीं होगा। उसका केवल इतना ही फल होगा कि अतिरिक्त मूल्य और मम-शक्ति का बोनों पहले से दुगुने उपयोग-मूल्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे, पर ये उपयोग-मूल्य पहले से दुगुने सस्ते हो जायेंगे। यद्यपि मम-शक्ति का नाम तो नहीं बदलेगा, तथापि प्रषिक होगा। श्रम-शक्ति के नये मूल्य को देखते हुए उसके बाम को निम्नतम सीमा १ शिलिंग ६ पेन्स है। यदि उसका नाम इतना नीचे न गिरे, बल्कि २ शिलिंग १० पेन्स, या २ शिलिंग ६ पेन्स हो जाये, तब यह गिरा हुमा बाम भी जीवन के लिये प्रावश्यक वस्तुओं को पहले से अधिक मात्रा का प्रतिनिधित्व करेगा। इस तरह, मम की उत्पादकता के बढ़ने के साथ-साथ यह भी मुमकिन है कि श्रम-शक्ति का नाम गिरता जाये और फिर भी, इस गिराव के साथ-साथ, मजदूर के जीवन-निर्वाह के साधनों की राशि लगातार बढ़ती जाये। लेकिन ऐसा होने पर भी श्रम-शक्ति के मूल्य में जो गिराव पायेगा, उसके फलस्वरूप अतिरिक्त मूल्य में तबनुरूप वृद्धि हो जायेगी, और इस तरह मजदूर की स्थिति और पूंजीपति की स्थिति के बीच की खाई बराबर चौड़ी होती जायेगी। ऊपर हमने जिन तीन नियमों का जिक्र किया है, उनकी सबसे पहले रिकारों ने सम्यक रूप में स्थापना की थी। लेकिन वह नीचे दी गयी गलतियां कर गये : (१) ये नियम जिन विशेष परिस्थितियों में लागू होते हैं, उनको रिकार्गे पूंजीवादी उत्पादन की सामान्य एवं एकमात्र परिस्थितियां समझ बैठे हैं। उनके खयाल में न तो काम के दिन की लम्बाई में कोई परिवर्तन हो सकता है और न श्रम की तीव्रता में चुनाचे, उनकी दृष्टि में केवल एक ही तत्व है, जो बदल सकता है, वह है मम की उत्पादकता । (२) दूसरी गलती यह है-और इस गलती ने उनके विश्लेषण को पहली गलती की अपेक्षा अधिक विकृत किया है-कि अन्य पर्वशास्त्रियों की तरह उन्होंने भी प्रतिरिक्त मूल्य पर स्वतन्त्र पसे विचार नहीं किया, अर्थात् अतिरिक्त मूल्य के मुनाफा, लगान प्रादि जो कई विशिष्ट स्म होते हैं, उनसे अलग करके उन्होंने कभी अतिरिक्त मूल्य पर विचार नहीं किया। इसीलिये उन्होंने अतिरिक्त मूल्य की पर के नियमों को और मुनाने की बर के नियमों को प्रापस में गड्डमड्ड कर दिया है। जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं, मनाने की पर यह बताती है कि मो कुल पूंजी लगायी गयी है, उसके साथ अतिरिक्त मूल्य का क्या अनुपात है, उपर अतिरिक्त मूल्य की पर यह बताती है कि इस पूंजी के प्रस्विर भाग के साथ अतिरिक्त मूल्य का क्या अनुपात है। मान लीजिये कि ५०० पान की एक पूंची (पूं) में कच्चा माल, मम के प्रचार प्रावि (स्थि) के ४०० पौस और मजदूरी (प्रस्थि) के १०० पान शामिल है, और, इसके अलावा, अतिरिक्त मूल्य (म) १०० पौड का होता है। , . . "जब उद्योग की उत्पादकता में कोई परिवर्तन होता है और श्रम और पूंजी की एक निश्चित मात्रा से पहले की अपेक्षा कम या अधिक पैदावार होने लगती है, तब यह मुमकिन है कि मजदूरी के अनुपात में साफ़-साफ़ कोई परिवर्तन पा जाये, पर वह अनुपात जिस परिमाण का प्रतिनिधित्व करता है, वह ज्यों का त्यों रहे, या अनुपात ज्यों का त्यों रहे, पर मजदूरी की मात्रा में परिवर्तन पा पाये।" ("Outlines of Political Economy, &c." ['मशास्त्र की रूपरेखा, प्रादि', पृ. ६७१)
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