५९२ पूंजीवादी उत्पादन (१)श्रम की उत्पादकता के घटने के साप साप काम का बिन लम्बा होता जाता है - बब हम श्रम की उत्पादकता के घटने की बात करते हैं, तब,हमारा मतलब यहां पर केवल उन उद्योगों से होता है, जिनकी पैदावार भन-शक्ति के मूल्य को निर्धारित करती है। उदाहरण के लिये, श्रम की उत्पादकता में इस प्रकार की कमी भूमि की उर्वरता के घट जाने और उसके कारण भूमि की उपज के उतनी ही महंगी हो पाने के कारण पा सकती है। मान लीजिये कि काम का दिन १२ घन्टे का है और एक दिन में ६ शिलिंग का मूल्य तयार होता है, जिसमें से पापा मम-शक्ति के मूल्य का स्थान भरता है और मात्रा अतिरिक्त मूल्य होता है। मान लीजिये कि भूमि की उपज की बढ़ी हुई महंगाई के कारण मनाक्ति का मूल्य ३ शिलिंग से बढ़कर ४ शिलिंग और इसलिये प्रावश्यक बम ६ घण्टे से बढ़कर. बटे का हो जाता है। यदि काम के दिन की लम्बाई में कोई परिवर्तन न किया जाये तो ऐसा होने पर अतिरिक्त मम ६ घरे से कम होकर ४ घण्टे का रह जायेगा और अतिरिक्त मूल्य ३ शिलिंग से घटकर २ शिलिंग हो जायेगा। यदि काम का दिन. २ घन्टे बढ़ा दिया जाये, यानी १२ घन्टे से १४ घण्टे का कर दिया जाये, तो अतिरिक्त मम पहले की तरह ६ बन्दे का, और अतिरिक्त मूल्य ३ शिलिंग का ही बना रहेगा। लेकिन श्रम-शक्ति के मूल्य की तुलना में, बो कि मावश्यक श्रम-काल से नापा जाता है, अतिरिक्त मूल्य घट जायेगा। परि काम का दिन ४ घन्टे बढ़ा दिया जाये, पानी १२ घण्टे से १६ घण्टे का कर दिया जाये, तो प्रतित्ति मूल्यं और अंग- शक्ति के मूल्य के और अतिरिक्त श्रम और पावश्यक श्रम के प्रानुपातिक परिमाण ज्यों के त्यों बने रहेंगे, मगर अतिरिक्त मूल्य का निरपेन परिमाण ३ शिलिंग से बढ़कर ४ शिलिंग पौर अतिरिक्त मम का निरपेक्ष परिमाण. ६ बाटे से बढ़कर बरे हो जायेगा, जो कि -प्रतिशत की वृद्धि होती । इसलिये, जब मन की उत्पादकता घट जाती है और साथ ही काम का दिन लम्बा कर दिया जाता है, तो मुमकिन है कि अतिरिक्त मूल्म का निरपेक्ष परिमाण ज्यों का त्यों रहे, और साथ ही उसका सापेक्ष परिमाण घट जाये; या उसका सापेक्ष परिमाण ज्यों का त्यों बना रहे, पर साथ ही उसका निरपेक्ष परिमाण बढ़ जाये; और या अगर काम के दिन की लम्बाई में बहुत काफी वृद्धि कर दी जाती है, तो यह भी मुमकिन है कि अतिरिक्त मूल्य का सापेक्ष परिमाण और निरपेक्ष परिमाण दोनों . ३ १७९९ और १८१५ के बीच के काल में इंगलंग में जाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ माने के कारण मजबूरी में नामचारे की बढ़ती हो गयी पी, हालांकि जीवन के लिये प्रावश्यक बस्तुओं के प में मसल मजदूरी में कमी मा गयी थी।इस तव्य से पेस्ट और रिकार्ग दोनों ने यह निष्कर्ष निकाला कि खेतिहर श्रम की उत्पादकता घट जाने के कारण अतिरिक्त मूल्य की दर में गिरावमा गया है ।इस तथ्य का केवल उनकी कल्पना में ही मस्तित्वयां, परन्तु उन्होंने उसे मजदूरी, मनाक्रों और लगान के सापेक्ष परिमाणों की अपनी छानबीन का प्रस्थान-बिंदु बना गला। मगर वास्तव में उस काल में भम की तीव्रता बढ़ जाने और काम का विन लम्बा कर दिये जाने के कारण अतिरिक्त मूल्य का सापेक्ष परिमान और निरपेक्ष परिमाल दोनों बढ़ गये । यह यह काल पा, पब मम के घण्टों को बर्बरता की हर तक बढ़ा देने.का.अधिकार स्वीकार किया
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