५६६ पूंजीवादी उत्पादन . - ये व्युत्पन्न सूत्र असल में केवल उस अनुपात को व्यक्त करते हैं, जिसके अनुसार काम का दिन या उसके दौरान उत्पादित मूल्य पूंजीपति और मजदूर के बीच बंट जाता है। यदि इन सूत्रों को पूंजी के प्रात्म-विस्तार की मात्रा की प्रत्यन अभिव्यंजनाएं समझा जाये, तो यह गलत नियम लागू हो जायेगा कि अतिरिक्त भम या अतिरिक्त मूल्य १०० प्रतिशत तक पहुंच सकता है। चूंकि अतिरिक्त श्रम काम के दिन का एक प्रशेषमानक मात्र होता है, या कि अतिरिक्त मूल्य उत्पादित मूल्य का एक प्रशेषभावक मात्र होता है, इसलिये यह अनिवार्य है कि अतिरिक्त श्रम सबा काम के दिन से कम होगा, या यूं कहिये कि अतिरिक्त मूल्य सदा कुल उत्पादित मूल्य से कम होगा। किन्तु १००:१०० के अनुपात पर पहुंचने के लिये दोनों को बराबर होना पड़ेगा। और पनि प्रतिरिक्त श्रम को पूरा दिन (मर्थात् किसी भी सप्ताह या वर्ष का एक प्रासत दिन) हबम कर लेना है, तो पावश्यक श्रम को शून्य हो जाना पड़ेगा। परन्तु यदि पावश्यक बम नहीं रहेगा, तो अतिरिक्त मम भी गायब हो जायेगा, क्योंकि वह पावश्यक अतिरिक्त श्रम १०० भम का ही एक मित है। इसलिये अनुपात कमी की सीमा काम का दिन १०० १००+क तक नहीं पहुंच सकता, और उसका तक पहुंचना तो और भी कठिन है। परन्तु या अतिरिक्त मूल्य उत्पादित मूल्य १०० 1 fuerat fort, dfert „Dritter Brief an 0. Kirchmann von Rodbertus. Widerlegung der Ricardo' schen Lehre von der Grundrente und Begründung einer neuen Rententheorie", Berlin, 18511मैं इस पत्र का बाद में जिक्र करूंगा। इसका लगान का सिद्धान्त तो ग़लत है, पर उसके बावजूद पन का लेखक पूंजीवादी उत्पादन के स्वरूप को समझने में सफल हुआ है। [तीसरे जर्मन संस्करण में जोड़ा गया फूटनोटः इससे यह भी देखा जा सकता है कि जब कभी माक्स को अपने पूर्वजों में वास्तविक प्रगति या नये और सही विचारों की थोड़ी सी भी झलक दिखाई देती थी, तो वह उनके बारे में कितनी अच्छी राय व्यक्त करते थे। बाद को रु. मेयर के नाम रोबर्टस के पत्रों के प्रकाशित होने पर भात हुमा कि मार्क्स ने रोबर्टस की ऊपर जो प्रशंसा की है, उसमें कुछ काट-छांट करनी होगी। इन पत्रों का एक अंश इस प्रकार है : “पूंजी को न केवल श्रम से, बल्कि खुद अपने पाप से भी बचाना होगा, और इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रौद्योगिक पूंजीपति की कार्रवाइयों को कुछ ऐसी पार्षिक तथा राजनीतिक जिम्मेदारियां समझा जाये, जो उसको पूंजी के साथ-साथ सौंप दी गयी है, और उसके मुनाफे को एक तरह की तनखाह समझा जाये, क्योंकि अभी तक हम किसी और सामाजिक संगठन से परिचित नहीं है। लेकिन तनवाहों का नियमन किया जा सकता है, और यदि उनके कारण मजदूरी में बहुत प्यादा कमी हो जाती है, तो उनमें कटौती भी की जा सकती है। समाज पर मार्क्स की चढ़ाई- उनकी पुस्तक को यह नाम दिया जा सकता है -से बचना ही पड़ेगा... कुल मिलाकर मार्क्स की पुस्तक में पूंजी का इतना विवेचन नहीं, जितना पूंजी के वर्तमान रूप पर हमला किया गया है। इस रूप को उन्होंने स्वयं पूंजी की अवधारणा के साथ गह-महु कर दिया है।" ("Briefe, &c., von Dr. Rodbertus-Jagetzow, herausgg. oon Dr. Rud. Meyer", Berlin, 1881, बण्ड १, पृ० १११, रोबर्टस का ४८ वा पत्र ।) अपने “सामाजिक पत्रों" में रोबर्टस ने जो साहसी प्रहार किये थे, वे सिकुड़ते-सिकुड़ते अन्त में इस तरह की पिटी-पिटायी बातें बनकर रह गये थे।-के०ए०] . ।
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