पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६०२

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भाग ६ मज़दूरी उन्नीसवां अध्याय श्रम-शक्ति के मूल्य (ौर क्रमशः वाम) का मजदूरी में रूपान्तरण . पूंजीवादी समाज को सतही नबर से देखिये, तो मजदूर की मजदूरी उसके श्रम का बाम प्रतीत होती है। लगता है जैसे श्रम की एक निश्चित मात्रा के एवज में मुद्रा की एक निश्चित मात्रा के पी जाती है। इसीलिये लोग पाम तौर पर मम के मूल्य की बात करते हैं और मुद्रा के म में इस मूल्य की अभिव्यंजना को उसका प्रावश्यक अथवा स्वाभाविक दाम कहते हैं। दूसरी मोर, वे भम के बाबार-भाव का, अर्थात् नामों का भी जिक्र करते हैं, वो भम स्वाभाविक राम के ऊपर-नीचे पढ़ते-उतरते रहते हैं। लेकिन माल का मूल्य पया होता है ? उसके उत्पादन में खर्च होने वाले सामाजिक बम का बस्तुगत मापौर इस मूल्य की मात्रा को हम नापते कैसे हैं ? उसमें निहित मम की मात्रा के द्वारा। तब, मिसाल के लिये, १२ घन्टे के काम के दिन का मूल्य कैसे से होगा? घन्टे के काम के दिन में निहित १२ काम के घण्टों से।पर यह तो बिल्कुल बेतुकी पुनक्ति है।' . - 1"मि० रिकार्गे, काफ़ी चतुराई का परिचय देते हुए, उस कठिनाई से बच जाते हैं, जो पहली दृष्टि में लगता था कि उनके सिद्धान्त के लिये एक रोड़ा बन जायेगी,-वह यह कि मूल्य उस श्रम की मात्रा पर निर्भर करता है, जो उत्पादन में लगा है। यदि इस सिद्धान्त को दृढ़ता के साथ माना जाये, तो हम इस नतीजे पर पहुंच जाते है कि श्रम का मूल्य श्रम की उस मात्रा पर निर्भर करेगा, जो उसको पैदा करने में लगा है, जो कि, जाहिर है, एक बेतुकी बात है। इसलिये, हाप की एक अच्छी सफ़ाई दिखाते हुए, मि० रिकार्गे श्रम के मूल्य को मजदूरी के उत्पादन के लिये पावश्यक श्रम की मात्रा पर निर्भर बना देते है ; या, यदि स्वयं उनकी भाषा का प्रयोग किया जाये, तो वह यह कहते हैं कि श्रम के मूल्य का अनुमान लगाने के लिये यह देखना होगा कि मजदूरी पैदा करने के लिये श्रम की कितनी मात्रा चाहिये, जिससे उनका मतलब यह है कि मजदूर को जो मुद्रा या जो माल दिये जाते है, उनको पैदा करने के लिये कितने श्रम की भावश्यकता है। यह तो उसी तरह की बात है, जैसे कोई यह कहे कि कपड़े का मूल्य उसके उत्पादन में लगाये गये श्रम की मात्रा से नहीं, बल्कि जिस चांदी के साथ कपड़े का विनिमय होता है, उसके उत्पादन में लगाये गये श्रम की मात्रा से निर्धारित होता है। ("A Critical Dissertation on the Nature, &c., of Value” [ ' you of Frey unft is विषय में एक पालोचनात्मक प्रबंध'], पृ. ५०, ५१.) "