पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रम-शक्ति के मूल्य (मौर क्रमशः दाम) का मजदूरी में रूपान्तरण ६०१ . . यह बात इसलिए और भी बेतुकी है कि किसी भी माल का मूल्य उस बम की मात्रा से नहीं निर्धारित होता, जिसने सचमुच उसमें मूर्त रूप धारण किया है, बल्कि वह उस जीवन्त श्रम की मात्रा के द्वारा निर्धारित होता है, जो इस माल के उत्पादन के लिये पावश्यक होता है। माम लीजिये कि कोई माल काम के ६ घण्टों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि कोई ऐसा प्राविष्कार हो जाये, जिससे वह ३ घण्टे में तैयार होने लगे, तो वो माल पहले तैयार हो चुका है, उसका मूल्य भी पहले का भाषा रह जायेगा। यह माल पहले ६ घन्टे के पावश्यक माने जाने वाले सामाजिक श्रम की जगह प्रब ३ घन्टे का प्रतिनिधित्व करता है। किसी भी माल के मूल्य की मात्रा उसके उत्पादन के लिये प्रावश्यक मम की मात्रा से, न कि उस मन के मूर्त रूप से निर्धारित होती है। मन्दी में मुद्रा के मालिक का जिससे सीधे तौर पर सामना होता है, वह असल में श्रम नहीं, बल्कि मजदूर होता है। मजदूर को बीच बेचता है, वह उसकी मम-शक्ति होती है। जैसे ही उसका श्रम सचमुच प्रारम्भ होता है, वैसे ही वह मजदूर की सम्पत्ति नहीं रह जाता और इसलिये तब मजदूर उसे नहीं बेच सकता। श्रम मूल्य का सार और उसकी अन्तर्भूत माप होता है, पर जुब उसका कोई मूल्य नहीं होता।' श्रम का मूल्य" शब्दों का प्रयोग करते हैं, तब मूल्य का भाव न केवल पूरी तरह खतम हो जाता है, बल्कि वास्तव में उलट दिया जाता है। ये शब पृथ्वी के मूल्य की चर्चा करने के समान काल्पनिक है। किन्तु इस प्रकार की काल्पनिक अभिव्यंजनाएं स्वयं उत्पादन के सम्बंधों से उत्पन्न होती हैं। ये परिकल्पनाएं मौलिक सम्बंधों के इत्रियगम्य मों के लिये है। प्रशास्त्र के सिवा प्रत्येक विज्ञान में यह बात काफी सुविदित है कि अपने विशावटी रूप में चीखें अक्सर उल्टी नबर पाती है।' जब हम " 1 " au premier (le travailleur)" ["सब को यह मानना पड़ा है" (यह एक नये ढंग का contrat social" [" सामाजिक करार"] है ! ) "कि जहां कहीं कार्यान्वित श्रम का ऐसे श्रम के साथ विनिमय किया जाता है, जो भविष्य में किया जाने वाला है, वहां पहला (पूंजीपति) दूसरे (मजदूर) से अधिक मूल्य प्राप्त करेगा"]। (Simonde de Sismondi, "De la Richesse Commerciale", Geneve, 1803, ग्रंथ १, पृ० ३७१) मूल्य का एकमात्र मापदण्ड-श्रम... • हर प्रकार के धन का जनक होता है, वह माल नहीं होता।" (Th. Hodgskin, "Popul. Polit. Econ." [टोमस होजस्किन , 'सरल अर्थशास्त्र'], पृ० १८६) 'दूसरी पोर, इस प्रकार के शब्दों को केवल कवियोचित अनियमितता बताना महज अपने विश्लेषण के निकम्मेपन को साबित करना है। इसीलिये जब घूधों ने यह लिखा कि ,Le travail- est dit valoir, non pas en tant que marchandise lui-même, mais en vue des vale- urs qu'on suppose renfermées puissanciellement en lui. La valeur du travail est une expression figuree" ("हम जो यह कहते हैं कि श्रम का मूल्य होता है, वह इसलिये नहीं कि श्रम बुद विक्री की चीज होता है, बल्कि हम यह उन मूल्यों का खयाल करके कहते है, जो सम्भावित रूप में श्रम में निहित समझ जाते हैं। श्रम का मूल्य एक लाक्षणिक अभिव्यक्ति है"), इत्यादि,-तो मैंने जवाब में यह कहा था कि .Dans le travail-marchandise qui est d'une réalité effrayante, il (Proudhon) ne voit qu'une ellipse grammati-