समयानुसार मजदूरी ६११ असर नहीं पड़ता, जो मशीनों की प्रतियोगिता के कारण, काम पर लगे हुए मजदूरों स्तर में परिवर्तन हो जाने के फलस्वरूप और पांशिक अथवा सामान्य संकटों से पैदा होती है। यह मुमकिन है कि वैनिक या साप्ताहिक मजदूरी के बढ़ते जाने पर भी श्रम का नाम नाम मात्र के लिये स्थिर बना रहे और फिर भी अपने सामान्य स्तर के नीचे गिर जाये। जब कभी श्रम का (फ्री घण्टे के हिसाब से ) वाम स्थिर रहते हुए काम का दिन प्रचलित सीमा श्रम-शक्ति का दैनिक मूल्य से अधिक लम्बा कर दिया जाता है, तब हर बार यही चीख होती है। यदि काम का दिन - इस भिन्न में हर बढ़ता है, तो अंश और भी तेजी से बढ़ता है। श्रम-शक्ति का मूल्य चूंकि उसकी घिसाई पर निर्भर करता है, इसलिये जब अम-शक्ति से काम लेने की अवधि बढ़ती है, तो यह मूल्य भी बढ़ जाता है, और वह उस अवषि की तुलना में अधिक द्रुत अनुपात के साथ बढ़ता है। इसलिये उद्योग की बहुत सी ऐसी शालाओं में, जिनमें पाम तौर पर समयानुसार मजदूरी का नियम है, पर काम के समय की कोई कानूनी सीमा नहीं है, स्वयंस्फूर्त ढंग से यह प्रथा प्रचलित हो गयी है कि काम के दिन को एक खास बिन्दु तक, मिसाल के लिये, बसवें घण्टे के पूरे होने तक ही सामान्य दिन समझा जाता है ( उसके लिये “normal working-day" ["काम का सामान्य दिन"], "the day's work* ["दिन भर का काम"] या “the regular hours of work" ["काम के नियमित घण्टे"] नामों का प्रयोग किया जाता है)। इस बिन्दु के पागे का समय भोवरटाइम माना जाता है, और माप की इकाई के रूप में घण्टे का प्रयोग करते हुए इस समय के लिये कुछ बेहतर मजदूरी (extra pay) दी जाती है, हालांकि अक्सर वह सामान्य मजदूरी से बहुत थोड़ी ही अधिक होती है। यहां काम का सामान्य दिन काम के वास्तविक दिन के एक भाग के रूप में होता है। और अक्सर पूरे साल यही हालत रहती है कि वास्तविक दिन सामान्य दिन से लम्बा होता है। काम के 1"( लैस बनाने के उद्योग में) ओवरटाइम काम की उजरत की दर ! पेनी और पेनी से लेकर २ पेंस प्रति घण्टा तक होती है। इस तरह के काम से मजदूरों के स्वास्थ्य तथा. कार्य-शक्ति को जो हानि पहुंचती है, उसकी तुलना में यह दर बहुत ही कम होती है... इस. प्रकार जो थोड़ी सी रकम मिलती है, वह अक्सर अतिरिक्त भोजन पर खर्च कर देनी पड़ती है।" ("Child. Empl. Com. II. Rep." ['बाल-सेवायोजन आयोग की दूसरी रिपोर्ट], पृ० XVI [सोलह ], नोट ११७।) मिसाल के लिये , कागज की रंगीन छपाई के धंधे में उसपर फ़ैक्टरी-कानून के लागू होने के पहले यही स्थिति थी। उसपर अभी हाल में ही फैक्टरी-कानून लागू हुआ है । Children's Employment Commission (बाल-सेवायोजन आयोग) के सामने बयान देते हुए मि० स्मिथ ने कहा था: 'हम खाने के लिये नहीं रुकते और बराबर काम करते चले जाते हैं, जिससे १ घण्टे का दिन भर का काम तीसरे पहर के साढ़े चार बजे तक पूरा हो जाता है। और उसके बाद का सारा काम प्रोवरटाइम का काम होता है। और ऐसा बहुत कम होता है, जब ६ बजने के पहले हमने काम बन्द कर दिया हो। इस तरह , असल में हम पूरे साल भोवरटाइम काम करते रहते हैं।" ("Child. Emp. Com. I Rep." [' ["बाल-सेवायोजन पायोग की पहली रिपोर्ट'], पृ० १२५।) 11 . . १० 390
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