६५२ पूंजीवादी उत्पादन . . मिल जायेंगी, जिनका मूल्य उनके मालिक ने उनको पेशगी दे दिया है। उसके बाद २,००० पौग की नयी पूंजी कताई की मिल में काम करने लगेगी, और अब उससे ४०० पौड का अतिरिक्त मूल्य प्राप्त होगा। पूंजी-मूल्य शुरू में मुद्रा-रूप में लगाया गया था। इसके विपरीत, अतिरिक्त मूल्य शुरू में कुल पैदावार के एक खास हिस्से का मूल्य होता है। यदि यह कुल पैदावार बेच दी जाती है और मुद्रा में बदल दी जाती है, तो पूंजी-मूल्य पुनः अपना मूल रूप प्राप्त कर लेता है। इसके प्रागे पूंजी-मूल्य और अतिरिक्त मूल्य दोनों मुद्रा की दो रकमें होते हैं और उनको हू-ब-हू एक ही ढंग से पूंजी में बदला जाता है। पूंजीपति इन दोनों ही रकमों को उन मालों की जीव पर खर्च करता है, जिनकी सहायता से वह नये सिरे से अपने सामान का निर्माण शुरू कर सकता है और इस बार जिनकी सहायता से वह पहले से बड़े पैमाने पर सामान तैयार कर सकता है। लेकिन वह इन मालों को तभी खरीद सकता है, जब वे उसे मण्डी में तैयार मिल जायें। खुद उसके सूत का केवल इसलिये परिचलन होता है कि साल भर में उसकी जितनी मात्रा तैयार होती है, वह उसे मण्डी में ले जाता है, जिस तरह बाकी तमाम पूंजीपति भी अपना- अपना माल वहां ले जाते हैं। लेकिन मन्डी में पाने के पहले ये तमाम माल उस सामान्य वार्षिक पैदावार के हिस्से थे, वे हर किस्म की वस्तुओं की उस कुल राशि के भाग थे, जिसमें अलग-अलग पूंजियों का गोड़, अर्थात् समान की कुल पूंजी वर्ष भर के अन्दर रूपान्तरित कर दी गयी थी पौर जिसका हर अलग-अलग पूंजीपति के हाथ में केवल एक प्रशेषभाजक भाग ही था। मण्डी में जो सौदे होते हैं, उनसे केवल इस वार्षिक पैदावार के अलग-अलग हिस्सों की अदला-बदली ही सम्पन्न होती है, वे एक हाथ से निकलकर दूसरे हाथ में चले जाते हैं, लेकिन उनसे न तो कुल वार्षिक पैदावार में कोई वृद्धि हो सकती है और न ही उत्पादित वस्तुओं के स्वरूप में कोई परिवर्तन हो सकता है। अतएव, कुल वार्षिक पैदावार का क्या उपयोग किया जा सकता है, यह पूरी तरह केवल उसकी अपनी संरचना पर ही निर्भर करता है और परिचलन पर किसी तरह भी निर्भर नहीं करता। वार्षिक पैदावार से सबसे पहले तो वे तमाम वस्तुएं (उपयोग-मूल्य) मिलनी चाहिये, जिनके द्वारा पूंजी के उन भौतिक संघटकों का स्थान भर जाना है, जो साल भर में खर्च हो गये हैं। इनको घटा देने पर शुद्ध अपवा अतिरिक्त पैदावार बच जाती है, जिसमें प्रतिरिक्त मूल्य निहित होता है। और इस प्रतिरिक्त पैदावार में कौनसी ची शामिल होती हैं? क्या उसमें केवल वे ही पीयें शामिल होती हैं, जिनका काम पूंजीपति-वर्ग की पावश्यकताओं और इच्छामों को पूरा करना होता है और इसलिये वो पूंजीपतियों के उपभोग-कोष का भाग होती है? यदि ऐसा होता, तो अतिरिक्त मूल्य का प्याला एकदम खाली हो जाता और उसमें तलछट तक न बचती, और साधारण पुनरुत्पादन के सिवा और कुछ कमी न होता। संचय करने के लिये अतिरिक्त पैदावार के एक भाग को पूंजी में बदलना प्रावश्यक होता है। लेकिन, कोई अलौकिक चमत्कार हो जाये, तो बात दूसरी है, वरना केवल उन्हीं वस्तुनों को पूंजी में बदला जा सकता है, जिनको मम-निया में इस्तेमाल किया जा सकता है (अर्थात् जो वस्तुएं उत्पादन के साधन होती है), और इसके अलावा उन वस्तुओं को भी पूंची में बदला जा सकता है, जो मजदूर के भरण-पोषण के लिये उपयुक्त है (अर्थात् जो वस्तुएं बीवन- निर्वाह के साधन होती है)। चुनाचे, शुरू में लगायी गयी पूंजी का स्थान भरने के लिये उत्पादन तथा बीवन-निबाह के साधनों की जिस मात्रा का उत्पादन करना आवश्यक पा, . -
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