पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६८४

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अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण ६८१ मम का समावेश हो जाता है। यह उसी तरह की बात है, जैसे सामाजिक श्रम की उत्पादक शक्तियां पूंजी के नैसर्गिक गुणों का रूप धारण कर लेती हैं और जैसे पूंजीपतियों बारा अतिरिक्त श्रम का निरन्तर हस्तगतकरण पूंजी के निरन्तर विस्तार का रूप धारण कर लेता है। . - हालांकि उसके मूल्य कोई वृद्धि नहीं होती। इस ऐतराज के जवाब में हमारा कहना यह कि जब हम उत्पादन पर एक ऐसे विनिमय के रूप में विचार करते हैं, जिसमें मनुष्य पैदावार प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने श्रम , अपनी भूमि और अपनी पूंजी की उत्पादक सेवाएं दे देता है, और वास्तव में हमें उत्पादन पर इसी रूप में विचार करना चाहिये, - तब यह कठिनाई गायब हो जाती है। दुनिया में जितनी तरह की उत्पादित वस्तुएं हैं, उन सब को हम इन उत्पादक सेवाओं के द्वारा ही प्राप्त करते हैं। प्रब... उत्पादन नामक विनिमय में इन सेवाओं के द्वारा हम उपयोगी वस्तुओं की पहले से जितनी बड़ी मात्रा प्राप्त करने में सफल होते हैं, हम उतने Et afera anit Ta od ") (J. B. Say, “Lettres à M. Malthus”, Paris, 1820, T. १६८, १६६।) से यहां पर जिस “कठिनाई" को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, वास्तव में उसका अस्तित्व केवल से के लिये ही है, रिकार्डों के लिये नहीं,- वह यह है कि जब श्रम की उत्पादक शक्ति के बढ़ जाने के फलस्वरूप उपयोग-मूल्यों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, तब उनके विनिमय-मूल्य में वृद्धि क्यों नहीं हो जाती ? और उनका उत्तर यह है कि उपयोग-मूल्य को विनिमय-मूल्य कहने लगिये, यह कठिनाई दूर हो जायेगी। विनिमय-मूल्य एक ऐसी वस्तु है, जिसका विनिमय से कोई न कोई सम्बंध जरूर होता है। इसलिये , यदि उत्पादन को पैदावार के साथ श्रम तथा उत्पादन साधनों के विनिमय का नाम दे दिया जाये, तो यह बात दिन के प्रकाश की तरह स्पष्ट हो जाती है कि उत्पादन से जितना अधिक उपयोग-मूल्य तैयार होगा, पाप को उतना ही अधिक विनिमय-मूल्य मिल जायेगा। दूसरे शब्दों में, काम के एक दिन में , मिसाल के लिये , मोजे बनानेवाले किसी पूंजीपति को जितना अधिक उपयोग-मूल्य , यानी जितने अधिक मोजे मिलने लगते हैं, मोजों के रूप में उसका धन उतना ही बढ़ जाता है। परन्तु यहां पर यकायक से को यह याद आता है कि जब मोजों की 'पहले से अधिक मात्रा" पैदा होने लगती है, तब उनका "दाम" (जिसका, जाहिर है, उनके विनिमय-मूल्य से कोई सम्बंध नहीं होता! ) गिर जाता है , “parce que la concurrence les (les producteurs) oblige à donner les produits pour ce qu'ils leur coûtent" ("pulfa प्रतियोगिता उत्पादकों को विवश कर देती है कि वे अपनी पैदावार उसकी लागत के बराबर दामों में देवें")। परन्तु यदि पूंजीपति अपना माल लागत पर बेच देता है तो उसका मुनाफ़ा कहां से आता है? उसकी परवाह मत करो! से जवाब देते हैं कि यदि पहले एक निश्चित सम-मूल्य के एवज में एक जोड़ी मोजे मिलते थे, तो अब उत्पादकता के बढ़ जाने के फलस्वरूप हरेक को उसी सम- मूल्य के एवज में दो जोड़ी मोजे मिल जाते हैं। इस तरह वह जिस परिणाम पर पहुंच जाते हैं, वह रिकार्गे की ठीक वही प्रस्थापना है , जिसका वह खण्डन करना चाहते थे। चिन्तन के क्षेत्र में यह महान प्रयास करने के बाद से विजयोल्लास के साथ माल्यूस को सम्बोधन करते हुए कहते हैं : "Telle est, monsieur, la doctrine bienliée, sans laquelle il est impossible, je le déclare, d'expliquer les plus grandes difficultés de l'économie politique, et notamment, comment il se peut qu'une nation soit plus riche lorsque ses produits diminuent . 1