पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६८५

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६८२ पूंजीवादी उत्पादन पूंजी की वृद्धि हो जाने पर व्यवसाय में लगी हुई पूंजी और सर्च कर दी गयी पूंजी का अन्तर पहले से बढ़ जाता है। दूसरे शब्दों में, मन के ऐसे प्रोवारों के मूल्य में और भौतिक राशि में वृद्धि हो जाती है, जैसे मकान , मशीनें, नालियों के पाइप, काम करनेवाले पा और ऐसा हर उपकरण, जो बार-बार दुहरायी जानेवाली उत्पादन-क्रियाओं में कम या ज्यादा समय तक इस्तेमाल होता है या जो किसी खास ढंग का उपयोगी प्रभाव पैदा करने के काम में प्राता है, पर जो खुद केवल धीरे-धीरे ही घिसता है और इसलिये जो अपना मूल्य सिर्फ घोडा-पोसा करके ही सोता है और इसलिये इस मूल्य को केवल पोड़ा-थोड़ा करके ही पैदावार में स्थानांतरित करता है। श्रम के ये पौधार जिस अनुपात में पैदावार में नया मूल्य जोड़े बगैर ही मूल्य के निर्माताओं का काम करते हैं, अर्थात् जिस अनुपात में वे पूरे के पूरे इस्तेमाल में पाते हैं, पर खर्च केवल प्रांशिक रूप में होते हैं, उस अनुपात में वे उसी प्रकार की मुफ्त सेवा करते हैं, जिस प्रकार की मुफ्त सेवा प्राकृतिक शक्तियो-पानी, भाप, हवा, बिजली प्रावि-करती हैं। भूतकालिक श्रम पर जब जीवित श्रम अधिकार कर लेता है और उसमें प्रात्मा का संचार कर बेता है, तब वह इस प्रकार की मुफ्त सेवा करने लगता है, और संचय की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई प्रवस्थानों के साथ-साथ इस मुफ्त की सेवा में भी वृद्धि होती जाती है। भूतकालिक भम चूंकि सदा पूंजी का भेस धारण किये रहता है, अर्थात् चूंकि 'क', 'ख', 'ग' पावि का निष्क्रिय श्रम गैर-मजदूर 'क' के हाथों में पहुंचकर सक्रिय बन जाता है, इसलिये पूंजीवादी लोग और प्रर्षशास्त्री सबा भूतकालिक मृत श्रम की सेवामों की प्रशंसा किया करते हैं। स्कोटलंग की महान प्रतिमा मैक्कुलक के मतानुसार तो उसको ब्यान, मुनाने - . .. - de valeur, quoique la richesse soit de la valeur." [" सो जनाब , यह है वह सुगठित सिद्धान्त, जिसके प्रभाव में,-मैं कहता हूं,-अर्थशास्त्र की मुख्य कठिनाइयों को स्पष्ट करना असम्भव है, और सबसे बड़ी बात यह कि जिसके प्रभाव में इस प्रश्न का उत्तर देना असम्भव है कि हालांकि धन मूल्य होता है, फिर भी यह कैसे सम्भव होता है कि किसी राष्ट्र की पैदावार का मूल्य गिर जाने पर भी उसका धन बढ़ जाता है।"] (उप० पु०, पृ० १७०।) से ने अपनी रचना "Lettres' में इस प्रकार की कुछ और भी हाथ की सफ़ाई दिखायी है। उसपर टिप्पणी करते हुए एक अंग्रेज अर्थशास्त्री ने लिखा है : “जिसे मोसिये से अपना सिद्धान्त कहते हैं और जिसे हेर्टफ़ोर्ड में पढ़ाने के लिये उन्होंने माल्यूस पर जोर डाला है, क्योंकि योरप के अनेक भागों में वह पहले ही से पढ़ाया जा रहा है, उसमें माम तौर पर बस इसी बनावटी ढंग से बातें ("those affected ways of talking") कही गयी हैं । से ने लिखा है : 'Si vous trouvez une physionomie de paradoxe à toutes ces propositions, voyez les choses qu'elles expriment, et j'ose croire qu'elles vous paraîtront fort simples et fort raisonnab- les' ('यदि तुम्हारा यह विचार है कि इन तमाम प्रस्थापनामों में विरोधाभास झलकता है, तो मैं कहूंगा कि जरा उन वस्तुओं पर गौर कीजिये, जिनको ये प्रस्थापनाएं व्यक्त करती हैं, और मेरा ख़याल है कि पापको हर चीज अत्यन्त सरल और अत्यन्त विवेक-संगत प्रतीत. होगी')। निस्सन्देह, पौर इसी क्रिया के फलस्वरूप ये सारी प्रस्थापनाएं और कुछ भी प्रतीत होने लगें, पर मौलिक नहीं प्रतीत होंगी।" ("An Inquiry into those Principles Respecting the Nature of Demand, &c." ["मांग के स्वभाव तथा उपभोग की पावश्यकता के विषय में उन सिद्धान्तों का विवेचन , इत्यादि'], पृ० ११६, ११०१) .. .