पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६८६

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अतिरिक्त मूल्य का पूंजी में रूपान्तरण ६५३ . पादि की शकल में एक खास उजरत मिलनी चाहिये। इसलिये, उत्पादन के साधनों के रूप में भूतकालिक भम बीवित भम-पिया को जो बोरवार और निरन्तर बढ़ती जाने वाली सहायता देता है, उसके बारे में कहा जाता है कि यह भूतकालिक श्रम के उस प का विशेष गुण है, जिस रूप में वह प्रवेतन श्रम की तरह खुब मजदूर से अलग कर दिया जाता है, अर्थात् कहा जाता है कि यह भूतकालिक श्रम के पूंजीवावी रूप का विशेष गुण है। जिस प्रकार वासों का मालिक यह नहीं सोच सकता कि कभी कोई ऐसा मजदूर भी हो सकता है, जो बास न हो, उसी प्रकार पूंजीवावी उत्पादन के व्यावहारिक अभिकर्ता और बाल की खाल निकालने वाले उनके विचारक यह नहीं सोच सकते कि उत्पादन के कुछ साधन ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्होंने यह विग्रहपूर्ण सामाजिक चेहरा न लगा रखा हो। यदि प्रम-क्ति के शोषण की मात्रा पहले से निश्चित हो, तो जो अतिरिक्त मूल्य पैदा होगा, उसकी कुल राशि इस बात से निर्धारित होगी कि कितने मजदूरों का एक साप शोषण किया गया है। और मजदूरों की संख्या परिवर्तनशील अनुपात में ही सही, पर वह पूंजी के परिमाण के अनुरूप होती है। इसलिये, उत्तरोत्तर सम्पन्न होने वाली संचय-क्रियामों के द्वारा पूंजी जितनी बढ़ जाती है, उतना ही वह कुल मूल्य बढ़ जाता है, जो उपभोग-कोष और संचय- कोष में विभाजित किया जाता है। इसलिये तब पूंजीपति प्यावा मानन्द का जीवन बिता सकता है और साथ ही पहले से अधिक "परिवर्जन" का प्रमाण दे सकता है। और अन्तिम बात यह है कि पेशगी लगायी गयी पूंजी की राशि के साथ-साथ उत्पादन का पैमाना जितना विस्तार करता जाता है, उत्पादन की सारी कमानियां पहले की अपेक्षा उतनी ही स्यावा लबक के साप काम करने लगती है। अनुभाग ५- तथाकथित श्रम-कोष . इस अन्वेषण के दौरान में यह बताया जा चुका है कि पूंजी का कोई स्थायी परिमाण नहीं होता, बल्कि वह सामाजिक धन का एक ऐसा लचकदार भाग होती है, जिसका परिमाण नये अतिरिक्त मूल्य का प्राय तथा अतिरिक्त पूंजी में विभाजन होने के साथ-साथ लगातार बदलता रहता है। इसके अलावा, यह बात भी साफ हो चुकी है कि जब कार्यरत पूंजी का परिमाण पहले से निश्चित होता है, तब भी पूंजी में निहित श्रम-शक्ति, विज्ञान और भूमि (प्रार्षिक दृष्टि से भूमि हमारा मतलब भन के लिये पावश्यक उन तमाम तत्वों से है, जो मनुष्य से स्वतंत्र प्रकृति से मिल जाते हैं) उसकी ऐसी लोचदार शक्तियां बन जाती है, जो कुछ सीमानों के भीतर उसे एक ऐसा कार्य-क्षेत्र प्रदान कर देती है, जिसका विस्तार स्वयं पूंजी के अपने परिमाण से स्वतंत्र होता है। इस अन्वेषण में हमने परिवलन की पिया के उन तमाम प्रभावों को अनदेखा कर रखा है, जिनके कारण पूंजी की एक सी राशि में बहुत भिन्न- मिन्न मात्रा की कार्य क्षमता पैदा हो सकती है। और चूंकि हम पूंजीवादी उत्पादन की सीमामों था, 1 जिस समय सीनियर ने "wages of abstinence" ("परिवर्जन की मजदूरी") के अपने प्राविष्कार का एकस्वकरण कराया उसके बहुत दिन पहले मैक्कुलक "wages of past labour" ("भूतकालिक श्रम की मजदूरी") के अपने प्राविष्कार का एकस्वकरण करा चुके थे।