पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/६९४

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम . कम एक भाग को तो निरन्तर काम में लगाये रखना चाहिये। कुछ और लोग हैं, जो हालांकि 'म तो मेहनत और न कताई करते है, फिर भी उद्योग की उपज के मालिक होते हैं। इन लोगों को केवल सम्यता और व्यवस्था के कारण ही मेहनत करने से छुटकारा मिला हमा है ये लोग विशिष्ट रूप से नागरिक संस्थानों की सृष्टि होते हैं, जिन्होंने यह सिद्धान्त मान रखा है कि विभिन्न व्यक्ति श्रम करने के अलावा कुछ अन्य उपायों से भी सम्पत्ति प्राप्त कर सकते हैं जिन व्यक्तियों के पास स्वतंत्र प्राय के साधन हैं उनको यह विशेष सुविधा जुद अपने किसी गुण से प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि वह लगभग पूर्णतया ... दूसरों के परिश्रम से उनको मिली है। समाज के सम्पन्न भाग और श्रमजीवी भाग के बीच जो विशेष अन्तर पाया जाता है, वह यह नहीं है कि सम्पन्न भाग भूमि या मुद्रा का स्वामी होता है, बल्कि वह यह है कि उसे दूसरों से श्रम कराने का अधिकार ("the command of labour") प्राप्त होता है... यह योजना (ईन द्वारा अनुमोदित योजना) सम्पत्तिवान व्यक्तियों का उन लोगों पर, जो... उनके लिये काम करते हैं, पर्याप्त प्रभाव और अधिकार कायम कर देगी (परन्तु वह बहुत ज्यादा प्रषिकार उनको हरगिज नहीं देगी), और यह योजना मजदूरों को निकृष्ट वास नहीं बना देगी, बल्कि उनको ऐसी सहज एवं उदार प्रवीनता की स्थिति ("a state of easy and liberal dependence") में रखेगी, जो जैसा कि मानव-स्वभाव और उसके इतिहास का मान रखने वाले सभी लोग मानेंगे, उनके अपने सुख के लिये पावश्यक है।" यहां चलते-चलते यह भी कह दिया जाये कि ऐडम स्मिथ के मारहवीं सदी के शिष्यों में से एक सर एक० एम० ईडेन ही ऐसे हैं, जिन्होंने कोई महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है। . 1 . .. यहां पर ईडेन को खुद अपने से यह प्रश्न करना चाहिये था कि फिर ये “नागरिक संस्थाएं" किसकी सृष्टि हैं ? उनका दृष्टिकोण क़ानूनी भ्रम का दृष्टिकोण है । इसलिये वह कानून को उत्पादन के भौतिक सम्बंधों की उपज नहीं मानते, बल्कि, इसके विपरीत, उत्पादन के सम्बंधों को कानून की उपज मानते हैं। मोंतेस्क्यू की भ्रांतिमूलक "Esprit des lois" ("कानून की प्रात्मा") को लिंगुएत ने एक वाक्य से पराजित कर दिया था। उसने कहा था : “L'esprit des lois, cest la propriéte" ("कानून की प्रात्मा तो सम्पत्ति है")। Eden: "The State of the Poor, or an History of the Labouring Classes in England" (ईडेन, "ग़रीबों की हालत , या इंगलैण्ड के श्रमजीवी वर्गों का इतिहास'), खण्ड १, पुस्तक १, मध्याय १, पृ० १, २, और भूमिका, पृ० Xx (बीस)। 'यदि पाठक इस बात पर मुझे माल्यूस की याद दिलायेंगे, जिनकी रचना "Essay on Po- pulation" ('जन-संख्या पर निबंध') १७९८ में प्रकाशित हो गयी थी, तो मैं उनको यह याद दिलाऊंगा कि यह पुस्तिका अपनी पहली शकल में दे फ़ो, सर जेम्स स्टीवर्ट, टाउनसेण्ड, फ्रैंकलिन, वैलेस मादि की स्कूली लड़कों जैसी , बहुत सतही ढंग की नकल के सिवा और कुछ नहीं है और उसमें एक भी ऐसा वाक्य नहीं है, जो माल्यूस के दिमाग की उपज हो। इस पुस्तिका के प्रकाशन से जो सनसनी पैदा हुई थी, उसका एकमात्र कारण दलगत स्वार्थ थे। ब्रिटेन में अनेक व्यक्तियों ने बड़े जोश के साथ फ्रांसीसी क्रान्ति का समर्थन किया था। इसलिये , जब अठारहवीं सदी में धीरे-धीरे "जन-संख्या के सिद्धान्त" को विकसित किया गया और उसके बाद जब एक सामाजिक संकट के काल में ढोल पीटकर और तुरही बजाकर यह घोषणा की गयी कि यह . . 44