पूंजीवादी उत्पादन अनुभाग २-संचय की प्रगति और उसके साथ चलने वाली संकेंद्रण की क्रिया के साथ-साथ पूंजी के अस्थिर अंश की मात्रा में सापेक्ष कमी . स्वयं प्रशास्त्रियों के मतानुसार, मजबूरी में वृद्धि न तो सामाजिक पन के वास्तविक विस्तार के कारण और न ही उस पूंजी के परिमाण के कारण होती है, जो पहले से काम कर रही है, बल्कि वह केवल संचय की निरन्तर प्रगति और इस प्रगति की तेजी के कारण होती है (ऐडम स्मिथ [ राष्ट्रों का धन'], पुस्तक १, अन्याय ८)। अभी तक हमने इस प्रक्रिया की केवल एक विशेष अवस्था पर ही विचार किया है। यह अवस्या यह है, जिसमें पूंजी की संरचना के स्थिर रहते हुए पूंजी की वृद्धि होती है। लेकिन यह प्रक्रिया इस अवस्था से प्रागे बढ़ जाती है। जब एक बार पूंजीवादी व्यवस्था का सामान्य भाषार स्थापित हो जाता है, तो संचय के दौरान में एक ऐसा विंदु पाता है, जब सामाजिक बम की उत्पादकता का विकास संचय का सब से अधिक शक्तिशाली लोवर बन जाता है। ऐग्म स्मिथ ने लिखा है : "जिस कारण से बम की मजदूरी बढ़ जाती है, उसी कारण से,-अर्थात् पूंजी की वृद्धि से,-श्रम की उत्पादक शक्तियां भी बढ़ने लगती है और श्रम की पहले से छोटी मात्रा पहले से अधिक मात्रा में काम निबटाने लगती है।" प्राकृतिक परिस्थितियों के अलावा, जैसे भूमि की उर्वरता मावि, और स्वतंत्र रूप से तथा अलग-अलग काम करने वाले उत्पादकों की निपुणता के अलावा (बो उनकी पैदावार की मात्रा की अपेक्षा उसकी गुणात्मक भेष्ठता में ज्यादा अभिव्यक्त होती है), किसी भी समाज में श्रम की उत्पादकता की मात्रा इस बात में व्यक्त होती है कि एक मजदूर एक निश्चित समय में श्रम-शक्ति के पहले जितने तनाव के साथ काम करते हुए तुलनात्मक दृष्टि से कितने प्रषिक उत्पादन के साधनों को पैदावार में बदल देता है। इस प्रकार, वह उत्पादन के जिन साधनों को पान्तरित कर देता है, उनकी राशि उसके श्रम की उत्पादकता के साथ-साथ बढ़ती जाती है। परन्तु उत्पादन के येसाधन बोहरी भूमिका प्रवाकरते हैं। कुछ साधनों की वृद्धि भम की उत्पादकता के बढ़ने के कारण होती है, कुछ की वृद्धि भम की उत्पादकता के बढ़ने के लिये प्रावश्यक होती है। उदाहरण के लिये, हस्तनिर्माण में श्रम का विभाजन हो जाने और मशीनों के प्रयोग के कारण उतने ही समय में पहले से ज्यादा कच्चा माल इस्तेमाल किया जाता है और इसलिये पहले से ज्यादा मात्रा में कच्चा माल और सहायक पदाश्रम-प्रक्रिया में प्रवेश कर जाते हैं। यह बढ़ती हुईमम- उत्पादकता का परिणाम होता है। दूसरी पोर, अषिक संस्था में मशीनें, बोमा होने के पशु, रासायनिक नार, पानी बाहर निकालने के पाइप प्रावि श्रम की उत्पादकता की वृद्धि के लिये पावश्यक होते हैं। मकानों, भट्ठियों, परिवहन के साधनों मावि में संकेन्नित उत्पादन के साधनों के लिये भी यही बात सच है। परन्तु चाहे उत्पादन के साधनों की वृद्धि भम की उत्पादकता के बढ़ने का कारण हो और चाहे वह उसका परिणाम हो, उत्पादन के साधनों में समाविष्ट होने वाली बम- शक्ति की तुलना में इन साधनों काबो विस्तार होता है, उसके द्वारा मन की बढ़ती हुई उत्पादकता अभिव्यक्त होती है। प्रतएव, उत्पादकता में जो वृद्धि होती है, वह इस रूप में सामने पाती है कि मम की राशि उत्पादन के उन साधनों की राशि की तुलना में घट जाती है, जिनको बह मम गतिमान बनाता है। या यूं कहिये कि वह इस रूप में सामने प्राती है कि भम-प्रक्रिया के बस्तुगत तत्व की तुलना में पक्तिक तत्व में कमी मा जाती है। .
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