पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७०३ . और तेजी यदि किसी हब तक इस बात से निर्धारित होती है कि पूंजीवादी धन कितना बढ़ गया है और पार्षिक यंत्र श्रेष्ठता के किस स्तर पर पहुंच गया है, तो प्रार्षिक केनीयकरण की प्रगति इस बात पर हरगिव निर्भर नहीं करती कि सामाजिक पूंजी के परिमाण में कितनी सकारात्मक वृद्धि हो गयी है। केन्द्रीयकरण और संकेत्रण की पियानों का यही एक विशिष्ट भेद है, क्योंकि संकेनण केवल परिवर्तित पैमाने के पुनरुत्पादन काही दूसरा नाम है। केनीयकरण महत पहले से मौजूद पूंजियों के वितरण में कुछ परिवर्तन के द्वारा सम्पन्न हो सकता है। यह केवल सामाजिक पूंजी के संघटकों के परिमाणात्मक विन्यास में कुछ परिवर्तनों के द्वारा हो सकता है। ऐसी सूरत बहुत से व्यक्तियों के हाथों से निकलकर पूंजी एक बड़ी राशि में एक हाथ में संचित हो सकती है। यदि उद्योग की किसी खास शाखा में लगी हुई तमाम अलग-अलग पूनियां एक अकेली पूंजी में एकीकृत हो जायें, तो उस शाखा में केन्द्रीयकरण अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। कोई विशेष समाज केनीयकरण की चरम सीमा पर केवल उस बात पहुंचेगा, जब समस्त सामाजिक पूंजी या तो किसी एक प्रकले पूंजीपति के हाथ में, या किसी एक अकेली कम्पनी के हाथ में एकीभूत हो जायेगी। केन्द्रीयकरण प्रौद्योगिक पूंजीपतियों को अपनी कार्रवाइयों का पैमाना बढ़ाने के योग्य बनाकर संचय के कार्य को पूरा करता है। यह लक्ष्य चाहे संचय के द्वारा प्राप्त हो और चाहे केन्द्रीयकरण के द्वारा केन्द्रीयकरण चाहे बलपूर्वक अधिकारकरण की उस क्रिया के द्वारा सम्पन्न हो, जिसमें कुछ पूंजियां अन्य पूंजियों के लिये पाकर्षण का ऐसा केन्द्र बन जाती हैं कि वे उनका व्यक्तिगत संसंजन भंग कर देती हैं और उनके बिखरे हुए टुकड़ों को अपनी पोर खींच लेती है, और चाहे अनेक ऐसी पूंजियों का एकीकरण, जो या तो पहले से मौजूद हैं और या जिनका निर्माण हो रहा है, स्टाक कम्पनियां बनाने के अपेक्षाकृत अधिक सहन मार्ग पर चलकर सम्पन्न हो, बोनों सूरतों में वार्षिक परिणाम एक सा होता है। हर जगह प्रौद्योगिक संस्थापनों का परिवर्तित पैमाना बहुत से संस्थापनों के सामूहिक श्रम का अधिक व्यापक रूप में संगठन करने के लिये, उसकी भौतिक बलक शक्तियों का अधिक व्यापक विकास करने के लिये,-दूसरे शब्दों में, प्रचलित ढंग से कार्यान्वित की जाने वाली अलग-अलग उत्पादन-क्रियाओं को अधिकाधिक सामाजिक रूप से संयुक्त और वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित उत्पादन-क्रियाओं का रूप देने के लिये प्रस्थान-बिंदु का काम . . किन्तु यह बात स्पष्ट है कि संचय की क्रिया, अर्थात् वृत्ताकार रूप से कुन्तलाकार रूप धारण करते हुए पुनवत्पादन के द्वारा पूंजी की कमिक वृद्धि की क्रिया केन्द्रीयकरण की तुलना में बहुत धीमी क्रिया होती है। केन्द्रीयकरण के लिये तो केवल इतना ही प्रावश्यक होता है कि सामाजिक पूंजी के अभिन्न अंगों के परिमाणात्मक समूहन में हेर-फेर कर दे। यदि दुनिया को उस बात का इन्तजार करना पड़ता, जब कि संचय के द्वारा कुछ अलग-अलग पूंजियां रेल बनाने के योग्य हो जाती, तो मान भी दुनिया में रेलों का प्रभाव ही होता। दूसरी ओर, केनीयकरण ने स्टाक-कम्पनियां बनवाकर पान की प्रान में यह काम पूरा कर दिया। इस प्रकार, संचय के 1चीचे बर्मन संस्करण का नोट: इंगलैण्ड और अमरीका के नवीनतम "ट्रस्ट" इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अभी यह प्रयत्न कर रहे है कि उद्योग की किसी एक शाखा में कम से कम तमाम बड़ी कम्पनियों को जोड़कर एक ऐसी विशाल स्टाक कम्पनी कायम कर दी जाये, जिसे व्यावहारिक एकाधिकार प्राप्त हो।-के. ए.
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