७१२ पूंजीवादी उत्पादन . हम यह देख चुके हैं कि उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली और श्रम की उत्पादक शक्ति का विकास, -खो संचय का कारण भी है और परिणाम भी,-पूंजीपति को इस योग्य बना देता है कि वह पहले जितनी ही पस्थिर पूंजी लगाकर, पर हर अलग-अलग भम-शक्ति का पहले से अधिक (विस्तीर्ण या गहन) शोषण करके पहले से अधिक भम को गतिमान बना सकता है। हम यह भी देख चुके हैं कि जैसे-जैसे पूंजीपति निपुण मजदूरों के स्थान पर प्रनिपुण, परिपक्व श्रम-शक्ति के स्थान पर अपरिपक्व, पुरुषों के स्थान पर स्त्रियों को और वयस्कों के स्थान पर लड़के-लड़कियों तवा बच्चों को नौकर रखता जाता है, वैसे-वैसे वह पहले जितनी ही पूंजी लगाकर उत्तरोत्तर श्रम-शक्ति की पहले से बड़ी राशि खरीदता पाता है। इसलिये, एक पोर तो संचय की प्रगति के साथ-साथ पहले से बड़ी अस्थिर पूंजी नये मजदूरों को भर्ती किये बिना ही पहले से प्रषिक श्रम को गतिमान बनाती है। दूसरी ओर, पहले जितनी मात्रा की मस्थिर पूंजी प्रम-शक्ति की पहले जितनी राशि का ही इस्तेमाल करते हुए पहले से अधिक श्रम को गतिमान बना देती है, और, तीसरे, वह ज्यादा ऊंचे दर्जे की मम-शक्ति को जवाब देकर नीचे वर्षे की बम-शक्ति से पहले से बड़ी संख्या में काम लेती है। प्रतः सापेन अतिरिक्त जन-संख्या के उत्पादन को किया, या मजदूरों को बेरोजगार बनाने की मिया, उत्पादन क्रिया की उस प्राविधिक क्रान्ति से भी अधिक तेज गति के साथ चलती है, जो संचय की प्रगति के साथ-साप होती रहती है और जिसकी गति संचय के कारण और तेन हो जाती है। और इस कान्ति के साथ-साथ पूंजी के स्थिर अंश की तुलना में उसका पस्थिर अंश जितनी तेजी से घटता है, सापेक्ष अतिरिक्त जन-संख्या के उत्पादन को किया उससे भी ज्यादा तेजी के साथ चलती है। उत्पादन के साधनों का विस्तार और कार्य क्षमता जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, जैसे-जैसे यदि मजदूरों को नौकर रखने के साधनों के रूप में उनकी ममता घटती जाती है, तो इस चीन में इस तथ्य से फिर यह संशोधन हो जाता है कि श्रम की उत्पादकता जितनी बढ़ जाती है, पूंजी अपनी मजदूरों की मांग की अपेक्षा श्रम की पूर्ति को उतनी ही ज्यादा तेजी से बढ़ा लेती है। मजदूर-वर्ग का काम पर लगा हुमा भाग जो प्रत्यषिक श्रम करता है, उससे रिजर्व भाग की संख्या और बढ़ जाती है। दूसरी ओर, रिजर्व भाग अपनी प्रतियोगिता के द्वारा नौकरी में लगे हुए भाग पर अब पहले से अधिक दबाव गलता है, और उसके फलस्वरूप इस भाग को अत्यधिक श्रम करने तथा चुपचाप पूंजी का हुक्म बनाने के लिये मजबूर कर देता है। महबूर वर्ग के एक भाग से प्रत्यधिक काम कराके दूसरे भाग को सबस्ती बेकार बनाये रखना और एक भाग को सबस्ती बाली हाप बैगकर दूसरे भाग से प्रत्यधिक काम लेना-यह अलग-अलग पूंजीपतियों का धन बढ़ाने का साधन बन जाता है और साथ ही उससे प्रौद्योगिक रिसर्च सेना के उत्पादन में तेजी पाती है, और यह 1 यहां तक कि १८६३ के कपास के अकाल के दिनों में भी हम यह पाते है कि कपास की कताई करने वाले ब्लैकबर्न के कारीगरों की एक पुस्तिका में मजदूरों से प्रत्यधिक काम लेने की प्रथा की सख्त निन्दा की गयी है। फैक्टरी-कानूनों के फलस्वरूप इस प्रथा का बेशक केवल वयस्क पुरुषों पर ही प्रभाव पड़ता था। पुस्तिका में लिखा है : “इस मिल के वयस्क कारीगरों से १२ से १३ घंटे तक रोजाना काम करने के लिये कहा गया है, और उधर सैकड़ों ऐसे पादमी बेकार पड़े है, जो अपने बाल-बच्चों को जिन्दा रखने के लिये और अपने भाइयों को अत्यधिक श्रम के कारण असमय मृत्यु का ग्रास बन जाने से बचाने के लिये हर रोज थोड़े
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७१५
दिखावट