७२० पूंजीवादी उत्पादन . - स्यादा देर तक काम करना पड़ता है और कम से कम मजदूरी मिलती है। इसके प्रधान रूम का हम 'घरेलू उद्योग' शीर्षक से पहले ही परिचय प्राप्त कर चुके हैं। इस हिस्से में माधुनिक उद्योग और खेती के फालतू मजदूर बराबर भर्ती होते रहते हैं, उसमें खास तौर पर उद्योग की उन पतनोन्मुल शाखामों के मखदूर भर्ती होते हैं, जिनमें बस्तकारी हस्तनिर्माण के सामने मिटती जा रही है और हस्तनिर्माण को मशीनें कुचलती जा रही है। जैसे-जैसे संचय के विस्तार पौर तेजी के साथ अतिरिक्त जन-संख्या बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह हिस्सा भी बढ़ता जाता है। परन्तु इसके साथ-साथ मजबूर-वर्ग का यह एक ऐसा तत्व है, जो अब अपना पुनवत्पादन करता रहता है, जो अपने को हमेशा जिन्दा रखता है और जो मजदूर-वर्ग की सामान्य वृद्धि में उसके अन्य तत्वों की अपेक्षा ज्यादा बड़ा हिस्सा लेता है। सच पूछिये, तो न सिर्फ जन्म और मृत्यु की संख्या का, बल्कि परिवारों के निरपेक्ष प्राकार का भी मजदूरी की बर की ऊंचाई के साथ प्रतिलोम अनुपात होता है, अर्थात् उनका अलग-अलग कोटि के मजदूरों को बीवन- निर्वाह के जो साधन मिलते हैं, उनकी मात्रा के साथ प्रतिलोम अनुपात होता है। पूंजीवादी समाज का यह नियम बंगलियों के सम्बन्ध में और यहां तक कि सम्य उपनिवेशियों के सम्बन्ध में भी बिल्कुल बेतुका प्रतीत होगा। उससे उन पशुओं के अंधाधुंध और सीमाहीन पुनरुत्पादन की याद पाती है, जिनमें से हरेक अलग-अलग बहुत कमखोर होता है और इसलिये जो हमेशा दूसरे पशुमों के शिकार बनते रहते हैं।' अन्त में हम सापेन अतिरिक्त जन-संख्या की सबसे नीचे की तलछट पर पाते है, जो कंगाली की दुनिया में रहती है। पावारा लोगों, अपराधियों, वेश्याओं और एक शब में कहें, तो "खतरनाक" वर्गों के अलावा समाज के इस स्तर में तीन प्रकार के लोग होते हैं। एक, बे, जो काम कर सकते हैं। इंगलैग में कंगालों के प्रांकड़ों पर एक सतही नबर गलने पर भी यह बात साफ हो जाती है कि कंगालों की संख्या हर संकट के साथ बढ़ जाती है और व्यवसाय में नयी जान पड़ने पर हर बार घट जाती है। दूसरे, इस स्तर में मनाप और मुहताज बच्चे शामिल होते हैं। ये प्रौद्योगिक रिसर्च सेना में भर्ती होने के उम्मीदवार होते हैं, और जब बहुत समृद्धि का काल पाता है, जैसा, मिसाल के लिये, १८६० में पाया था, तब ये बहुत जल्दी से और बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों की सक्रिय सेना में भर्ती हो जाते हैं। तीसरे, इस स्तर में वे लोग पाते हैं, जिनका मनोबल टूट चुका है, जो पतन के गर्त में बहुत गहरे गिर गये हैं और जो काम करने के प्रयोग्य हैं। ये बहुधा वे लोग होते हैं, जिनमें प्रम-विभाजन के कारण यह क्षमता नहीं . . "गरीबी प्रजनन के लिये अनुकूल प्रतीत होती है" (ऐडम स्मिथ) । बल्कि रसिक और परिहास-प्रिय पादरी गालियानी का तो यह तक विचार है कि यह एक विशेष रूप से बुद्धिमत्तापूर्ण ईश्वरीय विधान है। "Iddio af che gli uomini che esercitano mestieri di prima utilita nascono abbondantemente" ["इसी का यह नतीजा है कि जो लोग प्राथमिक उपयोगिता के धंधों में काम करते हैं, वे खूब बच्चे पैदा करते है"] (Galiani, उप० पु०, पृ. ७८)। "तबाही यदि अकाल और महामारी की चरम सीमा तक बढ़ जाये', तो भी प्राबादी का बढ़ना रुकता नहीं, बल्कि उल्टे वह और बढ़ जाती है।" (S. Laing, "National Distress" [एस. लैंग, 'राष्ट्रीय विपत्ति'], 1844, पृ० ६९।) अपने कथन को प्रांकड़ों से प्रमाणित करने के बाद मैंग ने आगे लिखा है : “यदि सभी लोगों को सुख और चैन से रहने का अवसर मिले, तो पृथ्वी शीघ्र ही जनहीन हो जायेगी।' - »
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