पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७२६

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पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७२३ की है, हालांकि ये लोग उसे बहुषा ऐसी घटनाओं के साथ गड़बड़ा देते हैं, जो कुछ हद तक तो पर इस बीच से मिलती-जुलती है, पर फिर भी वो बुनियादी तौर पर बिल्कुल भिन्न कोटि की घटनाएं होती हैं और जिनका सम्बंध पूंजीवाद से पहले की उत्पादन-प्रणालियों वेनिस का संन्यासी मोर्तेस १८ वीं शताब्दी के महान प्रशास्त्रियों में गिना जाता है। वह पूंजीवादी उत्पादन के इस प्रात्म-विरोधी स्वल्प को सामाजिक धन का सामान्य एवं स्वाभाविक नियम मानता है। उसने लिखा है : “किसी भी राष्ट्र की पर्व-व्यवस्था में अच्छी बातें और बुरी बातें सदा एक-दूसरे का संतुलन कायम रखती हैं (il bene ed il male economico In una nazione sempre all, istessa misura); कुछ लोगों के पास धन की जितनी बहुतायत होती है, दूसरों के पास धन का ठीक उतना ही प्रभाव होता है (la copia del beni in alcuni sempre eguale alla mancanza di essi in altri); aita artit के पास यदि बेशुमार बोलत होती है, तो उसके साथ-साथ सदा बहुत से अन्य लोगों के पास जीवन की बुनियादी अावश्यकताओं का भी सर्वथा प्रभाव होता है। किसी भी राष्ट्र का धन उसकी जन-संख्या के अनुपात में होता है, और उसकी गरीबी उसके धन के अनुपात होती है। कुछ लोगों की मेहनत दूसरों को काहिल बना देती है। गरीब और बेकार लोग धनी और सक्रिय लोगों का लाखिमी नतीजा होते हैं," इत्यादि, इत्यादि पोर्तेस के यह लिखने के . .. rapports dans lesquels il y a développement des forces productives, il y a une force productive de répression; que ces rapports ne produisent la richesse bour- geoise, c'est-à-dire la richesse de la classe bourgeoise, qu'en anéantissant conti- nuellement la richesse des membres intégrants de cette classe et en produisant un prolétariat toujours croissant." ["दिन-ब-दिन यह बात अधिकाधिक स्पष्ट होती जाती है कि उत्पादन के जिन सम्बंधों के भीतर पूंजीपति-वर्ग घूमता रहता है, उनका न तो कोई प्रखण्ड और न ही सरल स्वरूप होता है, बल्कि उनका दोहरा स्वरूप होता है ; जितना अधिक धन पैदा होता है , उतनी ही अधिक गरीबी भी पैदा होती जाती है, और जितना उत्पादन की शक्तियों का विकास होता है, उतना ही दमन पैदा करने वाली एक शक्ति का विकास होता जाता है ; ये सम्बंध पूंजीवादी धन का, अर्थात् पूंजीपति-वर्ग के धन का उत्पादन करते हैं, तो केवल इसी तरह कि वे इस वर्ग के अलग-अलग सदस्यों के व्यक्तिगत धन को लगातार नष्ट करते चलते हैं और एक ऐसे सर्वहारा को जन्म देते हैं, जिसकी संख्या लगातार बढ़ती जाती है।"] (Karl Marx, “Misere de la Philosophie", पृ० ११६) 1G. Ortes, "Della Economia Nazionale libri sei, 1777"; Custodia The में; देखिये उसका Parte Moderna (माधुनिक भाग), ग्रंथ २१ (XXI), पृ. ६, ६, २२, २५ इत्यादि। इसी पुस्तक के पृ० ३२ पर पोर्तेस ने लिखा है : “In luoco di progettar sistemi inutili per la felicità de'popoli, mi limiterò a investigare la ragione: della loro infelicita" ("काल्पनिक व्यवस्थाएं गढ़ने के बजाय , जिनसे लोगों को सुखी बनाने में जरा भी सहायता नहीं मिलेगी, मैं अपने को केवल उनके दुःखों के कारणों काः अध्ययन करने तक ही सीमित रबूंगा")। 46.