माल ७१ . . होती है। इसलिये वो कोट ४० गज कपड़े के मूल्य की मात्रा को तो व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन वे खुद अपने मूल्य की मात्रा को कभी व्यक्त नहीं कर सकते। इस तस्य को सतही तौर पर समझने के कारण कि मूल्य के समीकरण में सम-मूल्य सदा केवल किसी वस्तु के, किसी उपयोग- मूल्य के, साधारण परिमाण के रूप में ही सामने प्राता है, बेली, अपने अनेक पूर्वगामियों तथा अनुगामियों की तरह, इस गलतफहमी में फंस गये हैं कि मूल्य की अभिव्यंजना में केवल एक परिमाणात्मक सम्बंध ही प्रकट होता है। सचाई यह है कि जब कोई माल सम-मूल्य का काम करता है, तब उसका अपना मूल्य परिमाणात्मक ढंग से निर्धारित नहीं होता। सम-मूल्य के रूप पर विचार करते हुए जो पहली विलक्षणता हमारा ध्यान खींचती है, वह यह है कि उपयोग मूल्य अपनी उल्टी चील-मूल्य -को अभिव्यक्ति का रूप बन जाता है, यह मूल्य का इन्द्रिय-गम्य रूप बन जाता है। माल का शारीरिक रूप उसका मूल्य-रूप बन जाता है। लेकिन यह बात अच्छी तरह समझ लीजिये कि 'ख' नामक किसी भी माल के साथ यह quld pro quo (प्रवल-सबल) केवल उसी वक्त होता है, जब 'क' नामक कोई दूसरा माल उसके साथ मूल्य का सम्बंध स्थापित करता है। और तब भी वह अदल-बदल केवल इस सम्बंध की सीमानों के भीतर ही होता है। कोई भी माल चूंकि खुद अपने सम-मूल्य का काम नहीं कर सकता और इस तरह खुद अपने शारीरिक रूप को अपने मूल्य की अभिव्यंजना में नहीं बदल सकता, इसलिये हरेक माल को अपने सम-मूल्य के रूप में किसी और माल को चुनना पड़ता है और उस दूसरे माल के उपयोग मूल्य को, अर्थात् उसके शारीरिक रूप को, अपने मूल्य के रूप में स्वीकार करना पड़ता है। भौतिक पदार्थों के रूप में, यानी उपयोग-मूल्यों के रूप में, मालों के लिये हम जिन मापों का प्रयोग करते हैं, उनमें से एक के उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायेगी। मिनी का कूजा चूंकि एक वस्तु है, इसलिये वह भारी होता है और उसमें वजन होता है। लेकिन इस बबन को हम न तो देख सकते हैं और न छू सकते हैं। तब हम लोहे के कुछ ऐसे टुकड़े इस्तेमाल करते हैं, जिनका बबन पहले से निर्धारित कर लिया गया है। जैसे मिनी का कूजा बजन की अभिव्यक्ति का रूप नहीं है, वैसे ही लोहा भी लोहे के तौर पर वखन की अभिव्यक्ति का रूप नहीं है। फिर भी अब हम मिनी के कूजे को एक निश्चित वजन के रूप में व्यक्त करना चाहते है, तब हम उसका लोहे के साथ वजन का सम्बंध स्थापित कर देते हैं। इस सम्बंध में लोहा एक ऐसी वस्तु का काम करता है, जो बबन के सिवा और किसी चीज का प्रतिनिधित्व नहीं करता। इसलिये लोहे की एक निश्चित मात्रा मिनी के वजन की माप का काम करती है और मिनी के कूजे के सम्बंध में मूर्तिमान बनन-अपवा वचन की अभिव्यक्ति के रूप प्रतिनिधित्व करती है। लोहा यह भूमिका केवल इस सम्बन्ध के भीतर ही प्रदा करता है, जो मिनी या कोई और ऐसी वस्तु, जिसका बबन मालूम करना हो, लोहे के साथ स्थापित करती है। यदि ये दोनों वस्तुएं वजनदार न होतीं, तो वे पापस में यह सम्बंध स्थापित नहीं कर सकती थी, और इसलिये तब एक वस्तु दूसरी के बदन को व्यक्त करने का काम नहीं कर सकती थी। जब हम इन दोनों वस्तुओं को तराबू के पलड़ों पर रख देते हैं, तब हम देखते हैं कि सचमुच बबन के रूप में वे दोनों एक ही है और इसलिए जब उनको सही अनुपात में लिया जाता है, तब दोनों का एक सा बदन होता है। जिस प्रकार 'लोहा' नामक पदार्य, बबन की माप के म में, मिली के फूजे के सम्बंध में केवल पवन का ही प्रतिनिधित्व करता है, क उसी प्रकार . , -
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