७२ पूंजीवादी उत्पादन मूल्य की हमारी अभिव्यंजना में 'कोट' नामक भौतिक वस्तु कपड़े के सम्बंध में केवल मूल्य का ही प्रतिनिधित्व करती है। किन्तु यह सावृत्य यहां समाप्त हो जाता है। मिनी के कूजे के वचन को व्यक्त करते हुए लोहा दोनों वस्तुओं में समान रूप से पाये जाने वाले एक स्वाभाविक गुण का-अर्थात् बचनका- प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन कपड़े के मूल्य को व्यक्त करते हुए कोट दोनों वस्तुओं के एक प्रस्वाभाविक गुण का, एक विशुद्ध सामाजिक चोर का-प्रति उनके मूल्य का-प्रतिनिधित्व करता है। किसी भी माल के उदाहरण के लिये, कपड़े के - मूल्य का सापेक्ष रूप चूंकि उस माल के मूल्य को इस तरह व्यक्त करता है, जैसे वह उसके शारीरिक तत्व तथा गुणों से सर्वथा भिन्न हो, यानी जैसे वह, मिसाल के लिये, कोट के समान हो, इसलिये खुब, इस प्रकार की अभिव्यंजना से भी हमें यह संकेत मिलता है कि उसकी तह में कोई सामाजिक सम्बंध विद्यमान है। सम-मूल्य रूप में इसकी ठीक उल्टी बात होती है। इस रूप का सार-तत्त्व ही यह है कि भौतिक माल जुद,-मिसाल के लिये, कोट,-जिस हालत में वह है, उसी हालत में मूल्य को व्यक्त करता है, और स्वयं प्रकृति ने उसे मूल्य का रूप दे रखा है। बाहिर है, यह बात केवल तभी तक सब रहती है, जब तक मूल्य का वह सम्बंध कायम रहता है, जिसमें कोट कपड़े सम-मूल्य की स्थिति में है। लेकिन किसी भी चीन के गुण चूंकि दूसरी चीजों के साथ उसके सम्बंधों का फल नहीं होते, बल्कि इन सम्बंधों द्वारा केवल अपने को प्रकट करते हैं, इसलिये ऐसा मालूम होता है कि जिस तरह कोट को वचनदार होने या हमें गरम रखने का गुण प्रकृति से मिला है, उसी तरह उसका सम-मूल्य स्प-यानी दूसरे मालों के साथ सीषा विनिमय हो जाने का गुण-भी उसे प्रकृति से प्राप्त हुमा है। इसीलिये सम-मूल्य रूप की शकल एक पहेली जैसी है, जिसे पूंजीवादी अर्थशास्त्री उस वक्त तक नहीं देख पाता, जब तक कि यह रूप पूरी तरह विकसित होकर मुद्रा की शकल में उसके सामने नहीं खड़ा हो जाता। तब वह सोने और चांदी के रहस्यमय रूप को उनकी जगह पर प्रांतों को कम चकाचौंध करने वाले मालों की प्रतिस्थापना करके और ऐसे तमाम सम्भव मालों की सूची नित नये भात्मसंतोष के साथ गिनाकर एका-बक्रा करने की कोशिश करता है, जिन्होंने कभी न कभी सम-मूल्य की भूमिका अदा की है। उसे इस बात का लेश मात्र भी पाभास नहीं होता कि मूल्य की सबसे सरल अभिव्यंजना ने - मसलन २० गव कपड़ा-१ कोट के समीकरण ने-सम-मूल्य रूप की पहेली को पहले ही से हमारे चूमने के लिये पेश कर दिया है। सम-मूल्य का काम करने वाले माल का शरीर अमूर्त मानव-श्रम के मूर्त रूप के तौर पर सामने पाता है और उसके साथ-साथ वह किसी विशिष्ट रूप से उपयोगी मूर्त श्रम की पैदावार होता है। अतः यह मूर्त श्रम प्रमूर्त मानव-श्रम को व्यक्त करने का माध्यम बन जाता है। यदि, एक पोर, कोट की गिनती इसके सिवा और किसी रूप में नहीं होती कि वह प्रमूर्त मानव-वन का मूर्त स्म है, तो दूसरी भोर, कोट में सिलाई का बो बम सचमुच संचित हुमा . .. . सम्बंधों की इस प्रकार की अभिव्यंजनाएं साधारणतया बहुत अजीब ढंग की होती है। हेगेल ने उनको “प्रतिजनित परिकल्पनाएं" कहा है। उदाहरण के लिये, एक मादमी यदि राजा है, तो केवल इसीलिये कि दूसरे भादमियों का उसके साथ प्रजा का : सम्बंध है। वे लोग, इसके विपरीत , अपने को इसलिये प्रजा समझते हैं कि वह एक पादमी राजा है।
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