पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७४७ .. . ग. साइमन में अपनी सरकारी रिपोर्ट में कहा है: "रहने के मकानों की जो बहुत ही जराब व्यवस्था है, उसकी सफाई में... यह कहा जाता है किसान पाम तौर पर ठेके पर उन वी जाती है और ठेकेदार की दिलचस्पी की मियाद (जो कोयला-सानों में ग्राम तौर पर २१ साल होती है) इतनी कम होती है कि अपने मजदूरों के लिये और व्यापारियों तथा विभिन्न धन्वों के अन्य लोगों के लिये, जो खानों की मोर सिंच पाते हैं, रहने का अच्छा प्रबंध करने में वह अपना कोई हित नहीं देखता। कहा जाता है कि यदि ठेकेदार इस मामले में थोड़ी उदारता विताना भी चाहे, तो भी वह कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि समीन की सतह के ऊपर एक साफ-सुथरा और पारामदेह गांव बसाने के अधिकार के एवज में, जिसमें बीवार की जमीन की सतह के नीचे से धन बाहर लाने वाले मजदूर रह सकें, खीवार भूमि के लगान के तौर पर ठेकेदार से इतना अधिक अतिरिक्त पैसा मांग लेता है कि गांव बसाना उसके बूते के बाहर हो जाता है। और यदि ठेकेदार के अलावा कोई और भावमी मजदूरों के वास्ते मकान बनाना चाहे, तो (यदि जमींदार साफ़-साफ इसकी मनाही नहीं कर देता, तो) यह अत्यधिक ऊंचा बाम उसे भी कुछ नहीं करने देता। इस बलील का गुण-दोष विवेचन करना इस रिपोर्ट की सीमामों से बाहर जाना होगा। न ही यहां इस प्रश्न पर विचार करने की ही पावश्यकता है कि यदि मजदूरों के वास्ते रहने का अच्छा प्रबंध किया जाये, तो उसका खर्चा... अन्त में किसके-समीदार के, ठेकेदार के, मजदूर के या समाज के - मत्वे पड़ेगा। परन्तु इस रिपोर्ट के साथ वो और रिपोर्ट (म० हण्टर, ग. स्टीवेन्स प्रादि की रिपोर्ट) नवी है, उनमें ऐसे लन्माजनक तन्य दिये गये हैं कि इस परिस्थिति का इलाज करना जरूरी है... खमींवारी के हक का एक ऐसा बेजा फायदा उठाया जा रहा है, जिससे एक बहुत बड़ी सार्वजनिक बुराई पैदा हो गयी है। सान के मालिक के म में जमींदार पहले एक प्रौद्योगिक बस्ती को अपनी जमीन पर मेहनत करने के लिये बुलाता है, और फिर वह पुर जिन मजदूरों को वहां इकट्ठा करता है, उनके लिये जमीन की सतह के मालिक के रूप में अच्छे मकानों में रहना असम्भव बना देता है। उपर ठेकेदार (पूंजीवादी शोषक) का भी इसमें कोई प्रार्षिक हित नहीं है कि वह इस अजीब सौदे का विरोध करे, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता है कि यदि यह सौदा बहुत महंगा पड़ता है, तो उसके लिये नहीं, बल्कि मजदूरों के लिये महंगा पड़ता है, और मजदूरों में इतनी शिक्षा नहीं है कि वे अपने स्वास्थ्य सम्बंधी अधिकारों के महत्व को जान पायेंगे, और उनको चाहे गंदे से गंदा रहने का स्थान दिया जाये पौर चाहे कीचड़ सा पानी पिलाया जाये, वे इस के कारण कमी हड़ताल करने को तैयार . नहीं होंगे।" (ब) मरवर्ग के सबसे अच्छी मजदूरी पाने वाले हिस्से पर संकटों का प्रभाव . नियमित डंग के खेतिहर मजदूरों की चर्चा करने के पहले मैं एक उदाहरण द्वारा यह विताना चाहता हूं कि सबसे अच्छी मजबूरी पाने वाले मजदूरों पर भी, अर्थात् मजदूरवर्ग के अभिजात स्तर पर भी, पांचोगिक संकटों का क्या असर होता है। पाठकों को याद होगा कि १८५७ में एक बहुत बड़ा संकट माया पा। यह इस प्रकार का संकट था, जिसके साथ एक नियत अवधि पूरी हो जाने पर पायोगिक सम्पूर्ण हो जाता है। अगला प्रौद्योगिक वा १८६६ . 1 उप. पु., पृ० १६॥
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