पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम ७४६ , . एक बड़े पत्थर पर बैठा हुमा पा और एक बड़े हथौड़े से बर्फ जमे हुए प्रेनाइट पर दुकड़े-टुकड़े होने तक चोट करता जाता था। बरा ध्यान दीजिये कि उसे पांच बुशेल गिट्टी तैयार करनी पड़ती थी, तब कहीं उसका दिन भर का काम समाप्त होता था और उसे एक दिन की मजदूरी मिलती पो-तीन पेंस और कुछ साने का सामान । प्रांगन के एक दूसरे हिस्से में एक छोटा और लकड़ी का कमखोर सा मकान था। जब हमने उसका दरवाजा खोला, तो देखा कि उसके अन्दर कुछ लोग एक दूसरे के कंधे से कंधा सटाये हुए बैठे हैं, ताकि उन्हें एक दूसरे के बबन और सांस से गरमी मिलती रहे। ये लोग पुराने रस्सों का सन चुन रहे थे और साथ ही इसपर बहस करते जा रहे थे कि भोजन की विशिष्ट मात्रा के सहारे सब से पयादा देर तक कौन काम कर सकता है, क्योंकि इन लोगों के बीच सहन-शक्ति सम्मान की चीज थी। इस एक मुहताजलाने में... सात हबार प्रादमियों को... सहायता मिलती थी... पता लगा कि छः या पाठ महीने पहले इनमें से सैंकड़ों प्रादमी... सब से ऊंची मजदूरी पाने वाले कारीगर थे... इन लोगों की संख्या दुगनी हो जाती, यदि हम इनके साथ उन लोगों को और शामिल कर लेते, जिनका बचाया हुमा पैसा तो सारा खतम हो गया है, पर फिर भी वो सार्वजनिक सहायता नहीं लेना चाहते, क्योंकि अभी उनके पास गिरवी रखने के लिये कुछ सामान है। मुहताजलाने से निकलकर मैं उन सड़कों का चक्कर लगाने लगा, जहां अधिकतर छोटे-छोटे इकमंजिले मकान थे, जो पोपलर के पास- पास बहुत बड़ी संख्या में है। मेरा पप-प्रदर्शक बेकारों की समिति का एक सदस्य या... पहले मैं लोहे का काम करने वाले एक मजदूर के घर पर गया, जो सत्ताईस हफ्ते से बेकार था। यह व्यक्ति अपने परिवार के साथ पीछे के एक नन्हे से कमरे में बैग हुमा था। कमरे में कोई भी फर्नीचर न हो, ऐसा नहीं था। प्राग भी जल रही थी। यह इसलिये खहरी पी कि छोटे बच्चों के नंगे पैर पाले के शिकार न हो जायें, क्योंकि उस रोज बोरों की ठप थी। पाग के सामने एक ट्रे में पुराने रस्सों का सन पड़ा हुआ था, जिसे इस पावनी की बीवी और बच्चे सार्वजनिक कोष से मिलने वाली सहायता के एवज में चुन रहे थे। पुरुष खुद मुहताजखाने के प्रांगन में पत्थर तोड़ता था, जिसके बदले में उसे कुछ भोजन और तीन पेन्स प्रति दिन मिलते थे। वह रात के खाने के लिये घर लौटा था और , जैसा कि उसने हमें उदास ढंग से मुस्कराते हुए बताया, उसे खूब भूल लगी हुई थी। और उसका रात का खाना वा खल रोटी के टुकड़े और परवी और बिना दूध की एक प्याली चाय... हमने अगले दरवाजे पर दस्तक दी, तो उसे एक प्रौढ़ महिला ने खोला, जो चुपचाप हमें पीछे की पोर एक छोटी बैठक में ले गयी, जहां उसका पूरा परिवार खामोश बैठा हुमा तेजी से बुनती हुई पाग को टकटकी बांधकर देख रहा था। इन लोगों के चेहरों पर और उनके इस छोटे से कमरे में ऐसी घोर निराशा और हताशा छापी हुई थी, जिसे मैं दोबारा देखना पसन्द नहीं करूंगा। महिला ने अपने लड़कों की मोर इशारा करके कहा: 'छब्बीस हफ्ते से इन लोगों को काम नहीं मिला है, जनाव, और हमारा सारा पैसा खर्च हो गया है। जब समय अच्छा था, तब इनके बाप ने और मैंने बीस पॉर बचाये थे; सोचाया, जब हम काम करने के योग्य नहीं रहेंगे, तब यह पैसा काम प्रायेगा; पर वह भी सब खर्च हो गया । देखिये इसे,'- उसने तीन स्वर में कहा और बैंक की पासबुक निकालकर हमारे सामने कर दी, जिसमें जमा की गयी और निकाली गयी सारी रातमें बहुत साफ-साफ दिलायी गयी थी और जिससे हम देख सकते थे कि यह थोड़ा सा धन पहले-पहल कैसे पांच शिलिंग जमा करने के साथ शुरू हुमा वा और किस तरह वह धीरे-धीरे बढ़कर बीस पौर हो गया था, और फिर वह किस तह खत्म होने लगाया, और यहां तक कि रामें पोज . .