७६२ पूंजीवादी उत्पादन ग. साइमन ने अपनी स्वास्थ्य सम्बंधी सरकारी रिपोर्ट में कहा है: "हमारे तिहर मजदूरों के पास रहने का स्थान कितना कम और कैसा खराब है, इसका प्रमाण ग. हन्टर की रिपोर्ट के प्रत्येक पृष्ठ पर मिल जाता है। और अनेक वर्षों से इस मामले में मजदूर की हालत धीरे-धीरे बिगड़ती ही जा रही है। अब घर के वास्ते स्थान पाने में उसको जितनी अषिक कठिनाई होती है, उतनी कठिनाई उसे शायर कई सदियों से नहीं हुई थी, और अब यदि उसे कोई स्थान मिलता भी है, तो उसकी पावश्यकतामों को देखते हुए वह इतना के कच्चे फर्श पर बैठा हुमा या लेटा हुमा मजदूर अपने बीवी-बच्चों के साथ बाना बाता है और सोता है। उसकी एकमात्र पोशाक उसकी पीठ पर ही सूखती है। जिन दाइयों या डाक्टरों ने बच्चे पैदा करने के लिये इन झोंपड़ों में रात का कोई हिस्सा बिताया है, उन्होंने बताया है कि किस तरह उनके पैर फ़र्श के कीचड़ में धंस गये थे और किस तरह उनको सांस लेने के लिये दीवार में सूरा करना पड़ा था (जो, जाहिर है, बहुत मासान काम था)। जीवन के विभिन्न स्तरों से सम्बंध रखने वाले अनेक गवाहों ने यह बताया कि अपर्याप्त पोषण पाने वाले (underfed) किसान को हर रात इस गंदे वातावरण में बितानी पड़ती है। और इसका जो नतीजा होता है, उसके फलस्वरूप क्षीणदेह तथा रोगी लोगों की जो भावादी देहात में नजर पाती है, उसके अस्तित्व के प्रमाणों का कोई प्रभाव नहीं है ... कारमानशायर और कार्डिगनशायर के सहायता-अधिकारियों के बयानों से भी बिल्कुल इसी तरह की हालत जाहिर होती है। इसके अलावा वहां “एक और भी भयंकर महामारी फैली हुई है, वह यह कि वहां मूों की तादाद बहुत बड़ी है"। अब जलवायु के बारे में भी कुछ बता दिया जाये। “साल में ८ या ६ महीने पूरे देश में तेज दक्षिण-पश्चिमी हवा चलती है, जो अपने साथ मूसलाधार पानी लाती है। यह पानी मुख्यतया पहाड़ियों की पश्चिमी ढालों पर बरसता है। कुछ परिरक्षित स्थानों को छोड़कर पेड़ बहुत कम है, और जहां उनकी रक्षा करने के लिये कोई चीज नहीं है, वहां हवा उनको एकदम तोड़-मरोड़ गलती है। झोंपड़े माम तौर पर किसी पुश्ते की गोद में या किसी घाटी या गढ़े में दुबके रहते है, और हद दर्जे की छोटी भेड़ों तया देशी गायों के अलावा और कोई पशु चरागाहों पर नहीं ठहर पाता... लड़के-लड़कियां पूर्व के ग्लामौर्गन और मौनमाउथ के खानों वाले डिस्ट्रिक्टों को चले जाते हैं। कारमानशायर ही वह जगह है, जहाँ बानों में काम करने वालों का जन्म होता है, और पंगु हो जाने पर भी वे यहीं रहते हैं। इसलिये, यहां की माबादी बहुत मुश्किल से ही अपनी तादाद को कायम रख पाती है। चुनांचे कार्डिगनशायर की प्राबादी के मांकड़े देखिये: . १८५१ १८६१ ४५,१५५ ४४,४४६ ५२,४५९ . . . . . ५२,९५५ स्त्रियां १७,६१४ ९७४०१" (ग • हण्टर की रिपोर्ट, "Public Health. Seventh Report, 1865" ["सार्वजनिक स्वास्थ्य की सातवीं रिपोर्ट, १८६५'], London, 1865, पृ. ४६८-५०२, विभिन्न स्थानों पर।)
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