पूंजीवादी संचय का सामान्य नियम . 1 अनुपयुक्त होता है, जितना अनुपयुक्त स्थान शायर उसे कई सदियों से नहीं मिला था। पिछले बीस या तीस वर्षों में खास तौर पर यह पुराई बहुत बढ़ गयी है, और घर के मामले में सेत-मजदूर की हालत इस समय बहुत ही शोचनीय है। उसका मन जिन लोगों को दौलतमंद बनाता है, वे ही भले कमी-कभार उसपर थोड़ी बया विक्षा, पर बैसे मवर इस मामले में बिल्कुल असहाय होता है। यह जिस समीन को जोतता है, उसपर उसे रहने के लिये कोई स्थान मिलेगा या नहीं, वह स्थान मनुष्यों के रहने के लायक होगा या सुपरों के, और वह अपने घर के पास एक छोटा सा बग्रीचा लगा पायेगा या नहीं, जो कि उसके गरीबी के बोने को बहुत हल्का कर देता है,-यह सब इसपर निर्भर नहीं करता कि वह जिस प्रकार का अच्छा स्थान चाहता है, उसका उचित किराया देने की उसमें इच्छा तवा योग्यता है या नहीं, बल्कि यह सब दूसरों की इच्छा पर निर्भर करता है। उनको अधिकार मिला हुआ है कि "वे अपनी सम्पत्ति के साथ वो चाहें, कर सकते है।" यह सब इसपर निर्भर करता है कि दूसरे लोग अपने इस अधिकार का किस प्रकार प्रयोग करते हैं। कोई फार्म कितना भी बड़ा क्यों न हो, ऐसा कोई कानून नहीं है कि उसके पाकार के अनुपात में मजदूरों के रहने के लिये घर बनवाना बरी हो (पच्छे घरों की तो बात ही जाने बीजिये); न ही कोई कानून यह कहता है कि जिस धरती के लिये मजबूर की मेहनत उतनी ही प्रावश्यक है, जितनी धूप और बारिणा, उसपर मजबूर का भी किंचित मात्र अधिकार होता है... एक बाहरी तत्व हमेशा उसके विरोधी पल को भारी रखता है ... वह बाहरी तत्व है गरीबों कानून की बस्ती तथा प्रमार्यता सम्बंधी धाराएं।' इन धाराओं के प्रभाव का यह फल होता है कि प्रत्येक गांव या कस्बे का पार्षिक हित यही होता है कि अपने यहां बसे हुए मखदूरों की संख्या को कम से कम रखे। कारण कि दुर्भाग्यवश कठोर परिश्रम करने वाले मजदूर तवा उसके परिवार को खेतों पर काम करके सुरक्षित भविष्य तथा स्थायी स्वाधीनता नहीं प्राप्त होती, बल्कि यह उसके लिये प्रायः पन्त में मुहताजी की स्थिति में पहुंच देने का छोटा या लम्बा रास्ता साबित होता है, -इस पूरे रास्ते के दौरान में मुहताबी की यह मंखिल उनके इतनी नजदीक होती है कि कोई भी बीमारी या पोड़ी देर की बेकारी पाती है, तो मजदूर को फौरन सार्वजनिक सहायता मांगनी पड़ती है, और इसलिये प्रत्येक गांव या कस्बे के लिये खेतिहर मजदूरों के यहां बसने का मतलब यह होता है कि उसे मुहताबों की सहायता के कोष के वास्ते स्यावा कर देना पड़ता है समीन के बड़े-बड़े मालिक' ..यदि बस इतना है कर लेते हैं कि उनकी समीनों पर मजदूरों के मकान नहीं बनने पायेंगे, तो उनकी बीमारियां उसी समय से मुहताजों की सहायता करने की मापी जिम्मेवारी से मुक्त हो जाती हैं। अंग्रेजी विधान और कानून की दृष्टि से जमीन पर इस प्रकार का प्रतिबंधरहित स्वामित्व कहां तक उचित है और वे इस बात की कहाँ तक अनुमति देते हैं कि समीदार अपनी सम्पत्ति का ... , 1१८६५ में इस कानून में कुछ सुधार किया गया। पर शीघ्र ही अनुभव से यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि इस तरह के पवंद लगाने से कोई लाभ नहीं है। 'इसके मागे जो कुछ लिखा है, उसको समझने के लिये हमें यह याद रखना चाहिये कि close villages (बन्द गांव) ये है, जिनके मालिक एक या दो बड़े जमींदार है, और open villages (बुले गांव ) वे है, जिनके मालिक बहुत से छोटे-छोटे जमींदार है। मकानों का व्यवसाय करने वाले लोग इन बुले गांवों में ही झोंपड़े और सराय मादि बनवा सकते है। -
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