७६४ पूंजीवादी उत्पादन . ... इच्छानुसार उपयोग करते हुए जमीन के जोतने-बोने बालों के साथ विदेशियों जैसा व्यवहार करे और चाहे, तो अपने इलाके से उन्हें जलावतन कर दे,-यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसपर मैं यहां विचार करने की जरूरत नहीं समझता कारण कि बेदखल करने का यह (अधिकार) केवल सैद्धान्तिक ही नहीं है। बहुत बड़े पैमाने पर यह अधिकार अमल में लाया जाता है। और इस तरह अमल में लाया जाता है कि जहां तक रहने के लिये घर का सवाल है, लेतिहर मजदूर का जीवन मुल्यतया इसी अधिकार के प्रयोग पर निर्भर करता है. यह बुराई कितनी फैली हुई है, यह बताने के लिये केवल उस सामग्री का हवाला देना ही काफी है, बो ग. हन्टर ने पिछली जन-गणना से एकत्रित की है। उससे पता चलता है कि स्थानीय रूप से घरों की मांग बहुत बह जाने के बावजूद इंगलेश के ५२१ अलग-अलग गांवों या कस्बों में पिछले बस वर्ष से घर नष्ट किये जा रहे हैं। इसका प्रमाण यह है कि जिन लोगों को (निस गांव या कस्बे में काम करते हैं, उस गांव या कस्बे के लिये) सबर्दस्ती अन्यत्रवासी बना दिया जाता है, वे चाहे जैसे लोग रहे हों, १८६१ में इन गांवों और कस्बों में १८५१ की तुलना में ५ प्रतिशत अधिक प्राबादी ३ प्रतिशत कम निवास स्थान में भरी हुई थी। गक्टर हण्टर का कहना है कि जब २ माबादी को उजाड़ने की क्रिया पूरी हो जाती है, तब उसके फलस्वरूप एक नुमायशी गांव (show-village) तैयार हो जाता है, जिसमें मॉपड़ों की संख्या बहुत कम रह जाती है, और उन लोगों के सिवा, जिनकी गडरियों, मालियों या पालेट-रक्षकों के रूप में जरूरत होती है और जिनके साथ नियमित नौकरों के रूप में अच्छा व्यवहार किया जाता है, वहां पौर कोई नहीं रह पाता। लेकिन जमीन को गोतना-बोना जरूरी होता है, और माप देखेंगे कि अब जो मजदूर इस गांव की जमीन पर काम करने के लिये नौकर रखे गये हैं, वे अपने मालिक के किरायेदार नहीं है, बल्कि पड़ोस के, सम्भवतया तीन मील दूर के किसी खुले गांव से यहां काम करने के लिये पाते हैं। जब बन्द गांवों में इन लोगों के घरों को नष्ट कर दिया गया था, तो इस खुले गांव के छोटे मालिकों ने उन्हें अपने घरों में मामय दिया था। जो गांव उपर्युक्त अवस्था के निकट पहुंच रहे हैं, उनमें जो मोपड़े अभी तक बड़े हैं, वे भी प्रायः अपनी खराब हालत और मरम्मत के प्रभाव के द्वारा यह व्यक्त करते रहते हैं कि अन्त में उनका क्या हाल होने वाला है। इन घरों को प्राकृतिक अपक्षय की विभिन्न अवस्थामों में देखा ४ . इस प्रकार का नुमायशी गांव देखने में बहुत अच्छा लगता है, पर वह उतना ही प्रवास्तविक होता है, जितने प्रवास्तविक वे गांव थे, जिनको कैथेरिन द्वितीय ने क्राइमिया जाते हुए रास्ते में देखा था। हाल ही में अक्सर गड़रियों को भी show-villages (नुमायशी गांवों) से बहिष्कृत कर दिया गया है। मिसाल के लिये, मार्केट हारबोरो के नजदीक ५०० एकड़ का भेड़ों का फार्म है, जहां केवल एक आदमी काम करता है। गड़रिये को इन फैले हुए मैदानों को, लीसेस्टर और नौम्पटन की सुन्दर चरागाहों को, पैदल चलकर न पार करना पड़े, ख्याल से उसे फार्म पर ही एक झोंपड़ा दे दिया जाता था। अब उसे घर किराये पर लेने के लिये १ शिलिंग अलग से मिलता है, और उसकी कुल मजदूरी १२ से १३ शिलिंग हो गयी है; पर उसे घर दूर किसी बुले गांव में लेना पड़ता है। . -
पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/७६७
दिखावट