कृषि-क्रांति की उद्योग में प्रतिक्रिया ८३६ वा, उन्हीं घटनामों ने पूंजी के लिये एक घरेलू मन्जी भी तैयार कर पीवी। पहले किसान का परिवार बीवन-निर्वाह के साधन प्रौर कच्चा माल तयार करता था, और इन चीजों के अधिकतर भाग का उपभोग भी प्रायः किसान और उसके परिवार के लोग ही कर गलते । पर अब इस कच्चे माल मे और बीवन-निर्वाह के इन साधनों ने मालों का म धारण कर लिया है। इन पीचों को बड़े-बड़े काश्तकार बेचते हैं। उनकी मण्डी है हस्तनिर्माणशालायें। सूत, लिनेन, ऊन का मोटा सामान -के तमाम चीजें, जिनका कच्चा माल पहले हर किसान परिवार की पहुंच के भीतर था और जिनको प्रत्येक किसान परिवार अपने निजी इस्तेमाल के लिये कात-पुनकर तैयार कर लिया करता था, अब हस्तनिर्माणशालामों की बनी चीजों में स्पान्तरित हो गयीं, और बेहाती इलाके इन हस्तनिर्माणशालामों के लिये तुरन्त मण्डियों का काम करने लगे। पहले स्वयं अपने हित में उत्पादन करने वाले छोटे-छोटे कारीगर अपनी बनायी हुई चीजें बहुत से विखरे हुए प्राहकों के हाथ बेच दिया करते थे। अब वे प्राहक एक बड़ी मण्डी में केनित हो जाते हैं, जिसकी पावश्यकताओं की पूर्ति प्रौद्योगिक पूंजी करती है। इस प्रकार, जहाँ एक मोर प्रात्मनिर्भर किसानों की सम्पत्ति का अपहरण किया जाता है और उनको उनके उत्पादन के साधनों से अलग कर दिया जाता है, वहीं, दूसरी मोर, इसके साथ-साथ देहात के घरेलू उद्योग को भी नष्ट कर दिया जाता है और इस प्रकार हस्तनिर्माण और खेती का सम्बद्ध-विच्छेद करने की क्रिया सम्पन्न की जाती है। और केवल देहात के घरेलू उद्योग के विनाश से ही किसी देश की अन्दरूनी मण्डी को वह विस्तार तथा वह स्थिरता प्राप्त हो सकती है, जिनकी उत्पादन की पूंजीवादी प्रणाली को पावश्यकता होती है। फिर भी जिसे सचमुच हस्तनिर्माण का काल कहा जा सकता है, वह इस स्मान्तरण को मूलभूत रूप से तथा पूरी तरह कार्यान्वित करने में सफल नहीं होता। पाठकों को याद होगा कि जिसे सचमुच हस्तनिर्माण कहा जा सकता है, वह राष्ट्रीय उत्पादन के सारे क्षेत्र पर केवल मांशिक स्म से ही प्रषिकार कर पाता है, और वह अपने अन्तिम मापार के रूप में सदा शहरी बस्तकारियों और देहाती इलाक़ों के घरेलू उद्योग पर ही निर्भर करता है। यदि वह इन बस्तकारियों और इस घरेलू उद्योग को एक रूप में, कुछ खास शालाओं में या कुछ खास बिंदुओं पर नष्ट कर देता है, तो अन्यत्र वह उनको पुनः जन्म दे देता है, क्योंकि एक खास बिंदु तक उसको कच्चा माल तैयार करने के लिये इनकी पावश्यकता होती है। प्रतएव, हस्तनिर्माण प्रामवासियों के एक नये वर्ग को उत्पन्न कर देता है, जो खेती तो एक सहायक के रूप में करता है, पर जिसका मुख्य पंचा प्रौद्योगिक श्रम करना होता है, जिसकी पैदावार वह सीधे-सीधे या सौदागरों के माध्यम से हस्तनिर्माण कराने वाले कारखानेदारों को बेच देता है। यह बात एक ऐसी घटना का कारण बन जाती है, हालांकि वह उसका मुख्य कारण नहीं है, जो इंगलब के इतिहास के विद्यार्थी . . "जब मजदूर का परिवार अपने अन्य कामों के बीच-बीच में खुद अपने उद्योग से बीस पौण्ड ऊन को चुपचाप अपने वर्ष भर के कपड़ों में बदल गलता है, तब उसको लेकर कोई खास माउम्बर नहीं किया जाता। लेकिन इसी ऊन को जरा मण्डी में ले भाइये और उसे फैक्टरी में और वहां से पाढ़ती के पास और उसके यहां से दूकानदार के पास तक पहुंचने भर दीजिये कि विशाल व्यापारिक क्रियाएं प्रारम्भ हो जायेंगी और इस ऊन के मूल्य की बीस-गुनी अभिहित पूंजी कार्य-रत हो जायेगी... इस प्रकार मजदूर-वर्ग को लूटकर फैक्टरियों से सम्बंधित एक प्रभागी मावादी को, मुफ्तबोर दूकानदार वर्ग को और वाणिज्य, मुद्रा और वित्त की एक झूठी व्यवस्था को जीवित रखा जाता है।" (David Urquhart, उप० पु०, पृ० १२०।)
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