पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी १.djvu/८८

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माल . दूसरे मालों के साथ-साथ एक विशिष्ट सम मूल्य की भांति सम-मूल्य का काम करने की योग्यता पी। धीरे-धीरे यह कभी संकुचित और कभी विस्तृत सीमानों के भीतर सार्वत्रिक सम- मूल्य का काम करने लगा। जैसे ही मालों दुनिया के लिये उसने मूल्य की अभिव्यंजना में इस स्थान पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया, वैसे ही वह मुद्रा-माल बन गया और फिर, मगर उसके पहले नहीं, -रूप 'घ' प 'ग' से साफ तौर पर अलग हो गया और मूल्य का सामान्य रूप मुद्रा-रूप में बदल गया। अब कपड़े से किसी एक माल का सापेक्ष मूल्य सोने जैसे किसी माल के रूप में, जो मुद्रा की भूमिका अदा करता है, प्राथमिक अभिव्यंजना प्राप्त करता है, तब वह अभिव्यंजना उस माल का बाम-रूप होती है। प्रतएव, कपड़े का वाम-रूप है: २० गन कपड़ा=२ प्रॉस सोना, अपवा, यदि २ प्रॉस सोना सिपके के रूप में ढलने पर २ पार हो जाता है, तो २० गन कपड़ा-२ पौड । मुद्रा-रूप को साफ़ तौर पर समझने में कठिनाई इसलिये होती है कि सार्वत्रिक सम-मूल्य आप को और उसके एक अनिवार्य उप-प्रमेय के रूप में मूल्य के सामान्य रूप को-यानी रूप 'ग' को-साफ़-साफ़ समझना कठिन होता है। आप 'ग' को रूप 'ख' से-यानी मूल्य के विस्तारित रूप से-निगमन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, और, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, म 'ख' का प्रावश्यक अंग रूप 'क' है, जिसमें २० गड कपड़ा-१ कोट, या 'क' माल का 'प' परिमाण-'ख' माल का 'फ' परिमाण। प्रतएव साधारण माल- रूप मुद्रा-रूप का बीजाणु होता है। . अनुभाग ४-मालों की जड़-पूजा और उसका रहस्य पहली दृष्टि में माल बहुत अदना सी और प्रासानी से समझ में पाने वाली चीन मालूम होता है। उसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि वास्तव में यह एक बहुत अजीब चीच है, जो प्रतिभौतिकवादी समतामों और धर्मशास्त्र की बारीकियों से प्रोत-प्रोत है। जहां तक बह उपयोग मूल्य है, यहां तक, चाहे हम उसपर इस दृष्टिकोण से विचार करें कि वह अपने गुणों से मानव-मावश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ है, और चाहे इस दृष्टिकोण से कि ये गुण मानव-मन की पैदावार है, उसमें रहस्य की कोई बात नहीं है। यह बात दिन के प्रकाश की तरह स्पष्ट है कि मनुष्य अपने उद्योग से प्रकृति के दिये हुए पदापों के म को इस तरह बबल देता है कि उसके लिये उपयोगी बन जायें। उदाहरण के लिये, सकरी का म उसकी एक मेख बनाकर बदल दिया जाता है। पर इस परिवर्तन के बावजूद भी मेख बही रोजमर्रा की साधारण बीच-सकड़ी-ही रहती है। लेकिन जैसे ही वह माल केस में सामने माती है, वैसे ही वह मानो किसी इलियातीत वस्तु में बदल जाती है। तब यह न सिर्फ अपने पैरों के बल पड़ी होती है, बल्कि दूसरे तमाम मालों के सम्बंध में सिर के बल सड़ी हो जाती है और अपने काठ के दिमाग से ऐसे-ऐसे अजीबोगरीब विचार निकालती है कि उनके सामने मेव पर हाव रखवाकर मृतात्मानों को बुलाने पाली प्रेत-विना भी मात ला पाती है। .