पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३१

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१३० पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ - का उपयोग मूल्य बढ़ाये विना उसकी कीमत बढ़ाती है, इसलिए जिसे जहां तक समाज का सम्बन्ध है, faux frais की कोटि में रखना होगा, वह किसी अलग पूंजीपति के लिए समृद्धि का स्रोत हो सकती है। दूसरी ओर, चूंकि माल की कीमत में यह वृद्धि परिचलन लागत महज़ वरावर वांट देती है, इसलिए उसका अनुत्पादक स्वरूप ख़त्म नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए, बीमा कम्पनियां अलग-अलग पूंजीपतियों का घाटा पूंजीपति वर्ग में वांट देती हैं। किन्तु समान रूप में वांटे जाने से ऐसा नहीं हो जाता कि जहां तक कुल सामाजिक पूंजी का सम्बन्ध है, उसे घाटा न माना जाये। . १) पूर्ति का सामान्यतः निर्माण माल पूंजी के रूप में अपने अस्तित्व काल में अथवा बाजार में बने रहने की अवधि में , दूसरे शब्दों में, जिस उत्पादन प्रक्रिया से वह निकलती है और जिस उपभोग प्रक्रिया में वह प्रवेश करती है, इन दोनों के अन्तराल में उत्पाद माल पूर्ति रहता है। वाज़ार में माल की तरह और इसलिए पूर्ति की शकल में माल पूंजी प्रत्येक परिपथ में दोहरी हैसियत से प्रकट होती है - एक बार उस पूंजी के माल उत्पाद की तरह जो प्रक्रिया में है और जिसके परिपथ का परीक्षण किया जा रहा है ; किन्तु दूसरी वार किसी अन्य पूंजी के माल उत्पाद की तरह , जिसे वाजार में ख़रीदे जाने और उत्पादक पूंजी में परिवर्तित किये जा सकने के लिए उपलब्ध होना चाहिए। वस्तुतः यह सम्भव है कि यह अंतोक्त माल पूंजी तव तक निर्मित न हो, जब तक इसके लिए प्रार्डर न दिया जाये। उस हालत में उसका उत्पादन किये जाने तक एक व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। किन्तु उत्पादन और पुनरुत्पादन प्रक्रिया का प्रवाह यह अपेक्षा करता है कि मालों की एक राशि ( उत्पादन साधन ) हमेशा वाज़ार में रहे और इस प्रकार पूर्ति का निर्माण करे। इसी तरह उत्पादक पूंजी में श्रम शक्ति, की खरीद समाहित होती है और यहां द्रव्य रूप उन निर्वाह साधनों का मूल्य रूप मात्र है, जिनका अधिकांश मजदूर को वाज़ार में तत्काल सुलभ होना चाहिए। हम इसका इसी पैराग्राफ़ में आगे अधिक विस्तार से विवेचन करेंगे। किन्तु निम्नलिखित वात अभी भी स्पप्ट हो चुकी है। जहां तक प्रक्रियांतर्गत पूंजी. मूल्य का सम्बन्ध है, जो माल में परिवर्तित हो चुका है और जिसे अव वेचना अथवा द्रव्य में पुनः- परिवर्तित करना होगा, अत: जो इस समय बाजार में माल पूंजी का कार्य कर रहा है, जिस अवस्था में वह पूर्ति बनता है, उसे वहां असमीचीन , अनैच्छिक प्रवास..ही कहना होगा। विक्रय जितना ही जल्दी संपन्न होता है, उतना ही पुनरुत्पादन प्रक्रिया आसानी से बढ़ चलती है। मा' -द्रः के रूप परिवर्तन में विलम्ब से उस वास्तविक माल विनिमय में वाधा पड़ती है , जिसे पूंजी के 'परिपथ में होना चाहिए और उसके उत्पादक पूंजी की हैसियत से आगे कार्यशील होने में भी बाधा पड़ती है। दूसरी ओर, जहां तक द्र-मा'का सम्बन्ध है, बाज़ार मालों की निरन्तर विद्यमानता, माल पूर्ति, माल पुनरुत्पादन प्रक्रिया के प्रवाह के लिए और नई अथवा अतिरिक्त पूंजी के निवेश के लिए जरूरी शर्त की तरह प्रकट होती है। बाजार में माल पूर्ति की हैसियत से माल पूंजी वनी. रहे, इसके लिए इमारतें , भण्डार, गोदाम , कोठियां दरकार होती हैं , दूसरे शब्दों में स्थायी पूंजी का व्यय दरकार होता है; फिर मालों को गोदाम में रखने के लिए श्रम शक्ति को पैसा देना होता है। इसके अलावा वर्वाद होते हैं और उन पर प्राकृतिक कारकों का हानिकर प्रभाव भी पड़ता है। मालों को इस 1 माल