पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१३५

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१३४ पूंजी के रूपांतरण और उनके परिपथ में अंतर्हित हो सकती है, अथवा पूर्ति का निर्माण कर सकती है। मिसाल के लिए, इस वात से बड़ा फ़र्क पड़ता है कि कताई मिल-मालिक को कपास या कोयले की पूर्ति तीन महीने के लिए तत्काल सुलभ है या एक महीने के लिए। जाहिर है , यह पूर्ति जहां निरपेक्ष रूप में बढ़ती है, वहां सापेक्ष रूप में घट भी सकती है। यह सव विभिन्न शर्तों पर निर्भर करता है, और व्यवहारतः इन सभी का आशय कच्चे माल की आवश्यक मात्रा का अधिक शीघ्रतापूर्वक , नियमिततापूर्वक और विश्वसनीयतापूर्वक जुटाया जाना है, जिससे कि व्यवधान कभी न पड़े। इन शर्तों को जितना ही कम पूरा किया जायेगा - अतः पूर्ति जितना ही कम शीघ्रतापूर्वक , नियमिततापूर्वक और विश्वसनीयतापूर्वक जुटाई जायेगी- उतना ही उत्पादक पूंजी का अंतर्हित भाग वड़ा होगा, अर्थात उत्पादक हाथ में कच्चे माल, आदि की पूर्ति , जो उपयोग में लाये जाने के लिए पड़ी है, अधिक होगी। ये शर्ते पूंजीवादी उत्पादन के , अतः सामाजिक श्रम की उत्पादक शक्ति के विकास स्तर के व्युत्क्रमानुपात में होती हैं। इसलिए इस रूप में पूर्ति पर भी यही वात लागू होती है। फिर भी जो चीज़ यहां पूर्ति की घटती जान पड़ती है (यथा, लैलोर की कृति में ), वह अंशत: केवल माल पूंजी के रूप में पूर्ति की अथवा वास्तविक माल पूर्ति की घटती है; फलतः वह उसी पूर्ति का रूप परिवर्तन मान है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश में नित्य उत्पादित कोयले की मात्रा, और इसलिए कोयला उद्योग को चलाने के कार्य का पैमाना और प्रोजस्विता अधिक हैं, तो कताई मिल-मालिक के लिए अपने उत्पादन की निरंतरता को बनाये रखने के वास्ते कोयले का बड़ा मंडार रखना जरूरी नहीं है। कोयला पूर्ति का सतत और निश्चित नवीकरण इसे अनावश्यक बना देता है। दूसरी बात यह कि उत्पादन साधनों की हैसियत से एक प्रक्रिया का उत्पाद दूसरी प्रक्रिया में कितनी जल्दी स्थानान्तरित किया जाता है, यह परिवहन और संचार की सुविधाओं के विकास पर निर्भर है। इस मामले में परिवहन का सस्ता होना बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए , खान से कताई मिल तक कोयले का निरंतर नवीकृत परिवहन कोयले की उस समय ज्यादा वक़्त के लिए पूर्ति जमा कर लेने की वनिस्वत महंगा होगा कि जव परिवहन अपेक्षाकृत सस्ता है। अब तक विवेचित ये दोनों शर्ते स्वयं उत्पादन प्रक्रिया से उत्पन्न होती हैं। तीसरी बात यह कि उधार पद्धति का विकास भी काफ़ी प्रभाव डालता है। कताई मिल-मालिक कपास , कोयला, आदि की. अपनी पूर्ति के नवीकरण के लिए अपने सूत की प्रत्यक्ष विक्री पर जितना ही कम निर्भर होगा- और यह प्रत्यक्ष निर्भरता उतना ही कम होगी, जितना उधार पद्धति विकसित होगी- उनकी ये पूर्तियां उतना ही अपेक्षाकृत अल्प होंगी और फिर भी एक दिये हुए पैमाने पर सूत का निरन्तर उत्पादन , सूत की विक्री में जोखिमों से स्वतंत्र उत्पादन सुनिश्चित कर सकेंगी। लेकिन चौथी बात यह है कि बहुत से कच्चे मालों, अधतैयार सामानों, वगैरह के उत्पादन के लिए ज़रा लम्वे वक़्त की ज़रूरत होती है। कृपि द्वारा प्रदत्त सभी कच्चे मालों पर यह वात ख़ास तौर से लागू होती है। यदि उत्पादन प्रक्रिया में कोई व्यवधान नहीं आना है, तो कच्चे माल की एक निश्चित माना उस समूची अवधि के लिए पास होनी चाहिए, जिसमें कोई नया उत्पाद पुराने उत्पाद का स्थान नहीं ले सकता। यदि यह पूर्ति औद्योगिक पूंजीपति के हाथ में घटती है, तो इससे यही सावित होता है कि माल पूर्ति के रूप में वह व्यापारी के हाथ में बढ़ी है। उदाहरण के लिए, परिवहन का विकास यह सम्भव बना देता है कि मान लीजिये - लिवरपूल के आयात-गोदामों में पड़ी कपास को शीघ्रता से मैनचेस्टर पहुंचा दिया जाये , जिससे कि कारखानेदार जरूरत पड़ने - . .