पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५२

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स्थायी पूंजी तथा प्रचल पूंजी १५१ में होती हो, उत्पादन साधन श्रम उपकरणों तथा श्रम वस्तुओं में विभाजित होते हैं। किन्तु वे दोनों उत्पादन की पूंजीवादी पद्धति के अन्तर्गत ही पूंजी बनते हैं, जब वे, जैसा कि पिछले भाग में दिखाया जा चुका है, "उत्पादक पूंजी" बनते हैं। इस प्रकार श्रम प्रक्रिया के स्वरूप पर आधारित श्रम उपकरणों तथा श्रम वस्तु का अन्तर एक नये - स्थायी पूंजी और प्रचल पूंजी के - भेद के रूप में प्रतिविम्बित होता है। तभी जो चीज़ श्रम उपकरण का कार्य करती है, वह स्थायी पूंजी वन जाती है। अपने भौतिक गुणों के कारण यदि उसमें श्रम उपकरण के अलावा अन्य कार्यों की क्षमता भी हो, तो वह अपने द्वारा किये जानेवाले विशिष्ट कार्य के अनुसार स्थायी पूंजी हो सकती है अथवा नहीं हो सकती है। जांगर पशुओं के रूप में जानवर स्थायी पूंजी है ; खाद्य पशु के रूप में वे कच्चा माल हैं, जो अन्ततः उत्पाद की हैसियत से परिचलन में प्रवेश करता है ; अतः वे प्रचल पूंजी हैं, स्थायी पूंजी नहीं । 1 20 किसी उत्पादन साधन का ख़ासी लंबी समयावधि के लिए पुनरावृत्त श्रम प्रक्रियाओं में, जो सम्बद्ध और अविच्छिन्न होती हैं और इसलिए उत्पादन काल का, अर्थात किसी उत्पाद को तैयार करने के लिए आवश्यक समयावधि का निर्माण करती हैं, मात्र नियतन ही पूंजीपति को- विल्कुल स्थायी पूंजी की तरह ही - अपना धन न्यूनाधिक काल के लिए पेशगी देने के लिए मजबूर कर देता है, किन्तु उससे उसकी पूंजी स्थायी पूंजी नहीं बन जाती। मिसाल के लिए, वीज स्थायी पूंजी नहीं, वरन केवल कच्चा माल होते हैं, जिसे लगभग एक साल तक उत्पादन प्रक्रिया में रोके रखा जाता है। सभी पूंजी तव तक उत्पादन प्रक्रिया में रुकी रहती है, जब तक वह उत्पादक पूंजी की तरह काम करती है और इसलिए उत्पादक पूंजी के सव तत्व भी रुके रहते हैं, चाहे उनके भौतिक रूप, उनके कार्य, और उनके मूल्यों के परिचलन के ढंग कैसे. भी क्यों न हों। नियतन काल लंबा है या छोटा- जो संवद्ध उत्पादन प्रक्रिया या उद्दिष्ट उपयोगी प्रभाव पर निर्भर करता है - इसका स्थायी तथा प्रचल पूंजी के भेद पर तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता। श्रम उपकरणों का एक भाग , जिसमें श्रम की सामान्य परिस्थितियां भी शामिल हैं, उत्पादन प्रक्रिया में श्रम उपकरण की तरह प्रवेश करने , अर्थात अपने उत्पादक कार्य के लिए प्रस्तुत किये जाने के साथ या तो स्थानबद्ध कर दिया जाता है, जैसे मशीनें अथवा प्रारम्भ से ही अपने निश्चल , स्थानवद्ध रूप में पैदा किया जाता है, यथा मिट्टी का सुधार , कारखानों की इमारतें, भट्ठियां , नहरें, रेलें, वगैरह। जिस उत्पादन प्रक्रिया में श्रम उपकरण को कार्य करना है, उससे उसका निरन्तर संसर्ग यहां उसके अस्तित्व के भौतिक रूप के कारण भी है। दूसरी ओर श्रम उपकरण अपने भौतिक रूप में निरन्तर स्थान परिवर्तन कर सकता है, चल-फिर सकता है, फिर भी उत्पादन प्रक्रिया में लगातार बना रह सकता है ; यथा रेल इंजन , जहाज , लद्द वर, इत्यादि । एक मामले में निश्चलता उसे स्थायी पूंजी का स्वरूप प्रदान नहीं करती, न दूसरे में गतिशीलता उससे यह स्वरूप छीन ही लेती है। किन्तु यह तथ्य कि कुछ श्रम उपकरण स्थानवद्ध होते हैं, जमीन में उनकी जड़ जमी होती है, स्थायी पूंजी के इस भाग को राष्ट्रों के अर्थतंत्र में एक असामान्य भूमिका प्रदान कर देता है। उन्हें विदेश नहीं भेजा जा सकता, मालों की हैसियत से वे विश्व बाजार में परिचलन नहीं कर सकते। इस स्थायी पूंजी पर स्वत्व जान- 20 कौन सी पूंजी स्थायी है और कौन सी प्रचल, यह तय कर पाने की कठिनाई के कारण श्री लोरेंज स्टेइन पोचते हैं कि यह भेद केवल विषय विवेचन की सुविधा के लिए किया गया है।