पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/१५५

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१५४ पूंजी का आवर्त उसके मूल्य के इस प्रकार के प्रावर्त में श्रम शक्ति की उनसे समानता है। उत्पादक पूंजी के ये घटक- श्रम शक्ति और उत्पादन साधनों में निविष्ट उसके मूल्य के अंश , जो स्थायी पूंजी के अंगीभूत नहीं होते - अपनी सामान्य आवर्त विशेषताओं के कारण त्यायी पूंजी के सामने प्रचल अथवा अस्थिर पूंजी के रूप में आते हैं। हम पहले ही दिखा चके हैं कि श्रमिक को उसकी श्रम शक्ति के उपयोग के लिए पूंजीपति जो पैसा देता है, वह श्रमिक के आवश्यक निर्वाह साधनों के सामान्य समतुल्य रूप के अलावा और कुछ नहीं है। इस सीमा तक परिवर्ती पूंजी भी तत्वतः निर्वाह साधन होती है। किन्तु इस प्रसंग में, जहां हम आवर्त पर विचार कर रहे हैं, प्रश्न रूप का है। पूंजीपति श्रमिक के निर्वाह साधन नहीं, उसकी श्रम शक्ति ख़रीदता है। जो चीज़ उसकी पूंजी के परि- वर्ती भाग का निर्माण करती है, वह श्रमिक के निर्वाह साधन नहीं, उसकी कार्यरत श्रम शक्ति है। श्रम प्रक्रिया में पूंजीपति जिस चीज़ की उत्पादक खपत करता है, वह स्वयं श्रम शक्ति है, श्रमिक के निर्वाह साधन नहीं। स्वयं श्रमिक ही अपनी श्रम शक्ति के लिए प्राप्त धन को निर्वाह साधनों में परिवर्तित करता है, ताकि उन्हें जीवित रहने के लिए श्रम शक्ति में पुनःपरिवर्तित कर सके, ठीक जैसे, उदाहरणतः, पूंजीपति पैसा लेकर जो माल वेचता है . उनके वेशी मूल्य के एक भाग को वह अपने निर्वाह साधनों में बदल लेता है और इसके लिए इस कथन को प्रमाणित नहीं करना होता कि उसके मालों का खरीदार उसे उसके निर्वाह साधन देता है। यदि श्रमिक को उसकी मजदूरी का एक भाग निर्वाह साधनों के रूप में, वस्तुरूप में भी दिया जाये, तो अाज के लिहाज से यह दूसरा लेन-देन ही होगा। वह अपनी श्रम शक्ति एक निश्चित कीमत पर यह समझकर वेचता है कि इस कीमत का एक भाग उते निर्वाह साधनों के रूप में मिलेगा। इससे केवल अदायगी का रूप बदलता है, यह तथ्य नहीं कि दरअसल वह जो कुछ वेच रहा है, वह उसकी श्रम शक्ति है। यह दूसरा लेन-देन है, जो श्रमिक और पूंजीपति के बीच नहीं, बल्कि मालों के ग्राहक के रूप में श्रमिक और मालों के विक्रेता के रूप में पूंजीपति के वीच होता है, जब कि पहले लेन-देन में श्रमिक एक माल (अपनी श्रम शक्ति) का विक्रेता और पूंजीपति उसका ग्राहक होता है। यह बात ठीक वैसी ही है, जैसे कोई पूंजी- पति अपना कोई माल , मसलन मशीन , लोहा कारखाने को बेचने के वाद उसे किसी दूसरे माल , मसलन, लोहे से प्रतिस्थापित कर लेता है। इसलिए स्थायी पूंजी के विरुद्ध प्रचल पूंजी का निश्चित स्वरूप श्रमिक के निर्वाह साधन नहीं ग्रहण करते , न उसकी श्रम शक्ति हो, वल्कि उत्पादक पूंजी का वह मूल्यांश करता है, जो श्रम शक्ति में लगाया जाता है और जो अपने आवर्त के रूप के कारण स्थिर पूंजी के कुछ संघटक अंशों के समान और कुछ के विपरीत यह स्वरूप प्राप्त करता है। श्रम शक्ति में तथा उत्पादन साधनों में प्रचल पूंजी का मूल्य उसी अवधि के लिए जिसके दौरान उत्पाद उत्पादन प्रक्रिया में होता है और स्थायी पूंजी के परिमाण द्वारा निर्धारित उत्पादन के पमाने के अनुपात में पेशगी दिया जाता है। यह मूल्य उत्पाद में पूर्णतः प्रवेश करता है, अतः उसकी विक्री से वह परिचलन क्षेत्र से पूर्णतः वापस आ जाता है, और उसे नये सिरे से पेशगी दिया जा सकता है। पूंजी का प्रचल घटक जिस श्रम शक्ति और जिन उत्पादन साधनों में विद्यमान होता है, वे तैयार उत्पाद के निर्माण और उसकी विक्री के लिए आवश्यक सीमा कार्ल मार्क्स , 'पूंजी', हिन्दी संस्करण , खंड १, अध्याय ६, पृष्ठ १६१-२०२। - सं०