पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०४

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२०३ स्थायी तथा प्रचल पूंजी के सिद्धांत। रिकार्डो . रख . .

प्रत्येक अलग मामले में श्रम शक्ति की अनुबंध द्वारा नियत क़ीमत चाहे नक़द अदा की जाती है या निर्वाह साधनों के रूप में, इससे उसके स्थायी क़ीमत होने के चरित्र में कुछ भी तबदीली नहीं पाती। लेकिन नक़द मजदूरी के प्रसंग में यह स्पष्ट है कि स्वयं द्रव्य उस तरह उत्पादन प्रक्रिया में नहीं पहुंच जाता जैसे मूल्य और उत्पादन साधनों की सामग्री भी पहुंच जाते हैं। लेकिन इसके विपरीत मजदूर अपनी मजदूरी से जो निर्वाह साधन ख़रीदता है, अगर उन्हें कच्चे माल , वगैरह के साथ प्रचल पूंजी के भौतिक रूप की तरह सीधे एक ही संवर्ग दिया जाये और वे श्रम उपकरणों के प्रतिमुख हों, तो वात दूसरी ही शक्ल ले लेती है। यदि इन चीज़ों का, उत्पादन साधनों का मूल्य श्रम प्रक्रिया के दौरान उत्पाद को अंतरित हो जाता है, तो उन दूसरी चीज़ों, निर्वाह साधनों का मूल्य उनको ख़र्च करनेवाली श्रम शक्ति में पुनः प्रकट होता है और वह भी इस शक्ति की कार्यशीलता द्वारा उत्पाद को फिर से अंतरित हो जाता है। इन दोनों ही मामलों में यह समान रूप से उत्पादन के दौरान पेशगी दिये मूल्यों के उत्पाद में पुनः प्रकट होने भर का प्रश्न है। (प्रकृतितंत्रवादी इसे महत्वपूर्ण समझते थे और इसलिए इससे इन्कार करते थे कि प्रौद्योगिक श्रम वेशी मूल्य का निर्माण करता है। ) वेलैंड से पूर्वोद्धृत अंश* इस प्रकार है : " किंतु रूप का कोई महत्व नहीं है ... मनुष्य के अस्तित्व तथा सुख के लिए जिन नाना प्रकार के खाद्य पदार्थों , कपड़े और प्राश्रय की आवश्यकता होती है, वे भी बदल जाते हैं। उनका समय-समय पर उपभोग किया जाता है, और उनका मूल्य पुनः प्रकट होता है।" (Elements of Political Economy, पृष्ठ ३१, ३२ 1) उत्पादन साधनों तथा निर्वाह साधनों, दोनों के ही रूप में उत्पादन के लिए पेशगी किये गये पूंजी मूल्य यहां उत्पाद के मूल्य में समान रूप से पुनः प्रकट होते हैं। इस प्रकार उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया को पूर्ण रहस्य बना देने का काम मजे में संपन्न हो जाता है तथा उत्पाद में विद्यमान वेशी मूल्य का मूल पूर्णतः अदृश्य हो जाता है। इसके अलावा इससे पूंजीवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र की लाक्षणिक जड़पूजा भी परिणति पर पहुंच जाती है, वह जड़पूजा जो सामाजिक उत्पादन प्रक्रिया के दौरान चीज़ों पर अंकित हुए सामाजिक , आर्थिक चरित्र को उन चीज़ों को भौतिक प्रकृति से उद्भूत प्राकृतिक चरित्र में रूपांतरित कर देती है। उदाहरण के लिए " श्रम उपकरण स्थायी पूंजी हैं" - एक रूढ़िवादी परिभाषा है, जो उलझाव तथा अंतर्विरोध पैदा करती है। जिस प्रकार श्रम प्रक्रिया के सिल- सिले में यह दिखाया गया था (Buch I, Kap. V)** कि यह पूर्णतः इस पर निर्भर करता है कि भौतिक घटक किसी श्रम प्रक्रिया विशेष में क्या भूमिका अदा करते हैं, क्या कार्य करते हैं- पाया कि श्रम उपकरणों का, या श्रम सामग्री का, या उत्पाद का -कि जिससे श्रम उपकरण उसी हालत में स्थायी पूंजी होते हैं कि अगर उत्पादन प्रक्रिया दरअसल उत्पादन की पूंजीवादी प्रक्रिया हो और इसलिए उत्पादन साधन दरअसल पूंजी हों और उनमें आर्थिक निश्चयात्मकता, पूंजी का सामाजिक स्वरूप हो। दूसरी वात यह कि वे स्थायी पूंजी उसी हालत में होते हैं कि अगर वे अपना मूल्य एक विशेष प्रकार से उत्पाद को अंतरित करते हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो वे स्थायी पूंजी न होकर श्रम के उपकरण बने रहेंगे। इसी तरह यदि खाद जैसी सहायक सामग्री उसी विशेष प्रकार से अपना मूल्य तजती है, जिस प्रकार . . कार्ल मार्क्स , 'पूंजी', हिन्दी संस्करण , खंड १, पृष्ठ २३३-२३४, पादटिप्पणी ३}-सं० हिंदी संस्करण : अध्याय ७।-सं० .