पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२०९

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पूंजी का प्रावर्त होती है, दिन प्रति दिन काम करना होता है। लेकिन जब हम कार्य अवधि की बात करते हैं, तब हमारा प्राशय तैयार उत्पाद के निर्माण हेतु उद्योग की किसी शाखा में आवश्यक कार्य दिवसों की एक निश्चित संख्या से होता है। वर्तमान प्रसंग में प्रत्येक कार्य दिवस का उत्पाद केवल प्रांशिक है, जिन पर दिन प्रति दिन और काम किया जाता है और जो न्यूनाधिक कार्य काल के बीत जाने पर ही अपना तैयार रूप प्राप्त करता है, तैयार उपयोग मूल्य बनता है। अतः सामाजिक उत्पादन की प्रक्रिया में जो अड़चनें पड़ती हैं, जो व्यवधान आते हैं, यथा संकटों के कारण, उनका विछिन्न प्रकृति के श्रम उत्पादों पर और ऐसे उत्पादों पर, जिनके उत्पादन के लिए एक दीर्य, संवद्ध अवधि दरकार होती है, प्रभाव अत्यंत भिन्न-भिन्न होता है। एक प्रसंग में इतना ही होता है कि आज सूत , कोयले , आदि की जो माता पैदा की गई है, सूत , कोयले, आदि की उसी मात्रा का कल नया उत्पादन न होगा। किंतु जहाजों, मकानों, रेलमार्गों, आदि के प्रसंग में ऐसा नहीं होता। यहां जो व्यवधान पड़ता है, वह केवल एक दिन के श्रम में नहीं, वरन उत्पादन की समस्त संवद्ध क्रिया में पड़ता है। यदि काम चालू न रखा जाये , तो उसके उत्पादन में श्रम और उत्पादन के जो साधन ख़र्च हो चुके हैं, वे बेकार जायेंगे। अगर उसे फिर से भी शुरू किया जाये , तो भी इस वीच अनिवार्यतः ह्रास उत्पन्न हो चुका होगा। समूची कार्य अवधि पर स्थायी पूंजी का प्रति दिन उत्पाद को अंतरित होनेवाला मूल्यांश मानो तब तक तह पर तह इकट्ठा होता रहता है कि जब तक उत्पाद तैयार नहीं हो जाता। और यहां साथ ही स्थायी और प्रचल पूंजी का भेद अपने व्यावहारिक महत्व के साथ प्रकट होता है। स्थायी पूंजी उत्पादन प्रक्रिया में अपेक्षाकृत दीर्घ अवधि के लिए लगाई जाती है, उसका संभवतः अनेक वर्षों की अवधि बीत जाने से पहले नवीकरण करना आवश्यक न होगा। वाप्प इंजन अपना मूल्य किसी सूत को, जो विछिन्न श्रम प्रक्रिया का उत्पाद है, प्रति दिन खंडशः अंतरित करता है, अथवा किसी रेल इंजन को, जो निरंतर उत्पादन क्रिया का उत्पाद है, तीन महीने तक करता है, इसका वाप्प इंजनों को खरीदने के लिए आवश्यक पूंजी व्यय से कोई संबंध नहीं है। एक प्रसंग में उसका मूल्य थोड़ा-थोड़ा करके , यथा प्रति सप्ताह , तो दूसरे प्रसंग में, वह अधिक बड़ी मात्रा में , यथा हर तीसरे महीने , वापस प्रवाहित होता है। किंतु हो सकता है कि दोनों ही स्थितियों में वाप्प इंजन का नवीकरण वीस साल के बाद जाकर ही हो। उत्पाद की विक्री द्वारा वाप्प इंजन के मूल्य के खंडशः प्रत्यावर्तन की प्रत्येक पृथक कालावधि जब तक स्वयं इंजन के जीवन काल से छोटी होती है, तब तक वह इंजन अनेक कार्य अवधियों तक उत्पादन प्रक्रिया में कार्यरत रहता है। पेशगी पूंजी के प्रचल घटकों की स्थिति इससे भिन्न है। एक निश्चित सप्ताह के लिए खरीदी गयी श्रम शक्ति उसी हफ्ते भर में खर्च कर दी जाती है और उत्पाद में मूर्त हो जाती है। हफ्ते के अंत में उसका भुगतान करना होता है। श्रम शक्ति में पूंजी के इस निवेश की तीन महीने तक हर हफ़्ते प्रावृत्ति की जाती है, फिर भी पूंजी के इस अंश के एक हफ्ते में खर्च हो जाने से पूंजीपति इस लायक नहीं रहता कि अगले हफ्ते श्रम की खरीद का भुगतान कर सके। हर हफ़्ते श्रम शक्ति के भुगतान के लिए अतिरिक्त पूंजी खर्च करनी होती है, और उधार का सवाल दरकिनार पूंजीपति को इस लायक़ होना चाहिए कि तीन महीने तक मजदूरी का खर्च उठाता रहे, भले ही वह उसे हफ्तेवार मात्राओं में ही दे। यही बात 1 , 1