पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२११

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२१० पूंजी का प्रावर्त का नवीकरण शीघ्रतापूर्वक होता है और वही क्रिया दोहराई जा सकती है, जब कि दूसरी जगह पूंजी का नवीकरण अपेक्षाकृत धीमा होता है, जिससे नवीकरण के समय तक पूंजी की नई मात्राएं पुरानी मात्रा में निरंतर जोड़ते जाना पड़ता है। फलतः पूंजी के निश्चित भागों के नवीकरण काल की दीर्घता में ही अथवा पूंजी के पेशगी दिये जाने के समय को दीर्घता में ही नहीं, वरन श्रम प्रक्रिया की अवधि के अनुसार पेशगी दी जानेवाली पूंजी की मात्रा में भी अंतर होता है ( यद्यपि प्रति दिन या प्रति हफ्ते काम में लाई जानेवाली पूंजियां बराबर हैं)। यह बात इसलिए ध्यान देने योग्य है कि जैसा कि हम अगले अध्याय में विवेचित मामलों में देखेंगे, पेशगी की अवधि बढ़ सकती है, किंतु इससे यह जरूरी नहीं हो जायेगा कि पूंजी की पेशगी दी जानेवाली राशि में भी तदनुसार वृद्धि की जाये। पूंजी को अधिक समय के लिए पेशगी देना होता है और पूंजी की और भी बड़ी राशि उत्पादक पूंजी के रूप में बंध जाती है। पूंजीवादी उत्पादन की कम विकसित मंजिलों में सड़कों, नहरों के निर्माण , आदि जैसे लंबी कार्य अवधि और इसलिए पूंजी के बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक निवेश की अपेक्षा करनेवाले कार्यों को, खास तौर से जब वे बड़े पैमाने पर ही किये जा सकते हैं, या तो पूंजीवादी आधार पर किया ही नहीं जाता, बल्कि सामुदायिक या राजकीय खर्च से किया जाता है (प्राचीन काल में जहां तक श्रम शक्ति का संबंध था, आम तौर पर बेगार से ही), या फिर जिन चीज़ों के उत्पादन के लिए लंबी कार्य अवधि ज़रूरी होती है, स्वयं पूंजीपति के निजी साधनों के उपयोग से उनका अल्पतम भाग ही बनाया जाता है। मिसाल के लिए, मकान बनाने में, जिस ख़ास व्यक्ति के लिए वह बनाया जाता है, वह ठेकेदार को कई अांशिक पेशगियां देता जाता है। इसलिए वह वास्तव में मकान के लिए खंडशः उत्पादक प्रक्रिया जिस अनुपात में बढ़ती जाती है, उसी अनुपात में भुगतान करता है। किंतु उन्नत पूंजीवादी युग में, जिसमें एक ओर निजी तौर पर कुछ व्यक्तियों के हाथ में विशाल पूंजियां संकेंद्रित हो गयी हैं, दूसरी ओर अलग-अलग पूंजीपति के साथ-साथ सहचारी पूंजीपति (संयुक्त पूंजी कंपनियां) प्रकट हो गया है और साथ ही उधार व्यवस्था विकसित की जा चुकी है, पूंजीवादी निर्माण ठेकेदार आपवादिक मामलों में ही अलग-अलग व्यक्तियों के आर्डरों पर निर्माण करता है। आजकल उसका व्यवसाय है वाज़ार के लिए इमारतों की पूरी-पूरी क़तारों और शहरों के पूरे महल्लों को बनाना, ठीक वैसे ही , जैसे कि ठेकेदार की हैसियत से रेलमार्गों का निर्माण करना अलग-अलग पूंजीपतियों का व्यवसाय है। पूंजीवादी उत्पादन ने लंदन के भवन निर्माण कार्य में कैसा आमूल परिवर्तन कर दिया है, यह १८५७ में बैंकिंग समिति के सामने एक भवन निर्माता के वयान से पता चलता है। उसने बताया कि जब वह जवान था, तव आम तौर से मकान आर्डर पर वनाये जाते थे और ठेकेदार को निर्माण की अवस्थाओं के पूरा होने के साथ-साथ किस्तों में पैसा मिलता जाता था। सट्टेबाज़ी के आधार पर निर्माण कार्य बहुत कम होता था। ठेकेदार ऐसे कामों के लिए मुख्यतः अपने आदमियों को बराबर रोजगार से लगाये रखने और इस तरह साथ रखने के लिए ही तैयार होते थे। पिछले चालीस साल में यह सव बदल गया है। अव आर्डर पर बहुत कम ही बनाया जाता है। जिसे नया मकान चाहिए, वह सट्टे के आधार पर बने हुए मकानों में से या जो अभी वन ही रहे हैं, उनमें से छांट लेता है। निर्माता अव अपने ग्राहकों के लिए नहीं, बाजार के लिए बनाता है। अन्य सभी प्रौद्योगिक पूंजीपतियों की तरह वह भी वाज़ार में तैयार माल ले जाने के लिए बाध्य है। जहां पहले कोई निर्माता एकसाथ मुश्किल से तीन-चार मकान