पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूंजी का प्रावत है। बारह हफ्ते पर फैली ६०० पाउंड की राशि ७५ पाउंड प्रति सप्ताह होगी। पहली वात तो यह है कि यह स्पष्ट है कि व्यवसाय का इतना घटा हुआ पैमाना स्थायी पूंजी के बदले हुए पायाम की और इसलिए समूचे तौर पर व्यवसाय के घट जाने की पूर्वापेक्षा करता है। दूसरी वात यह कि यह विवादास्पद है कि ऐसी घटती हो भी सकती है, क्योंकि प्रत्येक व्यवसाय में, उसके उत्पादन के विकास के अनुरूप , उसकी प्रतिद्वंद्विता करने की क्षमता को बनाये रखने के लिए आवश्यक निवेशित पूंजी का एक सामान्य न्यूनतम अंश बना रहता है। पूंजीवादी उत्पादन के विकास के साथ यह सामान्य न्यूनतम अंश निश्चित गति से बढ़ता जाता है, अतः वह स्थायी नहीं होता। किसी विशेष समय पर सामान्य न्यूनतम अंश तथा निरंतर बढ़ते हुए सामान्य अधिकतम अंश के वीच बहुत से मध्यवर्ती स्तर होते हैं। इस मध्यस्तर में पूंजी निवेश के अनेक भिन्न-भिन्न पैमाने संभव हैं। इस मध्यस्तर की सीमाओं के भीतर घटती का होना संभव है और उसकी निम्नतम सीमा उस समय प्रचलित सामान्य न्यूनतम अंश होता है। जव उत्पादन में अटकाव आ जाता है, जब बाज़ार में माल का अतिसंचय हो जाता है और जब कच्चे माल का भाव चढ़ता जाता है, इत्यादि, तव स्थायी पूंजी के स्वरूप के स्थापित हो जाने के साथ कार्य काल को घटाकर, यथा आधा करके प्रचल पूंजी के सामान्य परिव्यय को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। इसके विपरीत समृद्धि के समय, जिसमें स्थायी पूंजी का स्वरूप निश्चित होता है, अंशतः कार्य काल के प्रसार द्वारा और अंशतः उसके तीव्रण द्वारा प्रचल पूंजी का असामान्य प्रसार होता है। जिन व्यवसायों में प्रारंभ से ही ऐसे उतार-चढ़ावों को ध्यान में रखना होता है, अंशतः उपर्युक्त उपायों को अपनाकर और अंशतः आरक्षित स्थायी पूंजी- यथा रेल मार्गों पर प्रारक्षित इंजन , वगैरह - के उपयोग के साथ-साथ एकसाथ ज्यादा मजदूर लगाकर परिस्थिति को सुधारा जाता है। किंतु हमने यहां सामान्य परिस्थितियों की ही कल्पना की है, अतः ऐसे असामान्य उतार-चढ़ावों पर यहां विचार नहीं किया जा रहा है। अतः उत्पादन को अविच्छिन्न वनाने के लिए उसी प्रचल पूंजी के व्यय को यहां दीर्घतर अवधि पर-नौ के वदले वारह हफ़्तों पर- फैला दिया गया है। फलतः प्रत्येक काल खंड में घटी हुई उत्पादक पूंजी कार्य कर रही है। उत्पादक पूंजी के प्रचल भाग को सी से घटाकर पचहत्तर , यानी एक चौथाई , कर दिया गया है। नी हफ्ते की कार्य अवधि में कार्यशील उत्पादक पूंजी से जो कुल राशि घटायी जाती है, वह २५ का नौगुना अथवा २२५ पाउंड , या ६०० पाउंड का एक चौथाई भाग है। किंतु आवर्त काल से परिचलन काल का अनुपात भी इसी प्रकार ३/१२, यानी एक चौथाई है। अतः इससे यह नतीजा निकलता है : अगर माल पूंजी में परिवर्तित उत्पादक पूंजी के परिचलन की अवधि में उत्पादन को अविच्छिन्न रखना है, अगर उसे एकसाथ और लगातार हफ़्ता दर हफ्ता चालू रखना है, और अगर इस कार्य के लिए कोई विशेष प्रचल पूंजी सुलभ नहीं है, तो ऐसा उत्पादक कार्य को कम करके , कार्यशील उत्पादक पूंजी के प्रचल घटक को घटाकर ही किया जा सकता है। इस प्रकार परिचलन काल में उत्पादन के लिए प्रचल पूंजी का जो भाग मुक्त होता है, उसका कुल पेशगी प्रचल पूंजी से अनुपात वही होता है, जो परिचलन काल का आवर्त की अवधि से होता है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, यह वात उत्पादन की उन्हीं शाखाओं पर लागू होती है जहां श्रम प्रक्रिया हप्ता दर हप्ता एक ही पैमाने पर चालू रखी जाती है, अतः जहां विभिन्न कार्य अवधियों में पूंजी का वि- भिन्न राशियों में निवेश दरकार नहीं होता , यथा कृपि में। दूसरी ओर, यदि हम मान लें कि व्यवसाय का स्वरूप ऐसा है कि उत्पादन का पैमाना .. .