पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/२३९

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पूंजी का आवर्त इस प्रसंग में यदि हम कहें कि ५०० पाउंड की पूंजी वर्ष में ५ वार आवर्तित हुई है, तो यह साफ़ और स्पष्ट होगा कि हर आवर्त अवधि के आधे भाग में ५०० पाउंड की इस पूंजी ने उत्पादक पूंजी की हैसियत से कार्य किया ही नहीं ; उसने कुल मिलाकर केवल आधे साल अपना कार्य किया, किंतु शेप आधे साल उसने कार्य किया ही नहीं। हमारे उदाहरण में ५०० पाउंड की प्रतिस्थापन पूंजी उन पांच परिचलन अवधियों के दौरान सामने आती है और इस प्रकार आवर्त २,५०० पाउंड से बढ़कर ५,००० पाउंड हो जाता है। किंतु अव पेशगी पूंजी ५०० पाउंड के बदले १,००० पाउंड है। ५,००० को १,००० से भाग देने पर ५ आता है। इसलिए दस के बदले पांच आवर्त हुए। और लोग ठीक इसी ढंग से हिसाब लगाते हैं। लेकिन जब यह कहा जाता है कि १,००० पाउंड की पूंजी का साल में ५ वार यावर्त हुअा है, तब पूंजीपतियों की खोखली खोपड़ी से परिचलन काल की याद गायव हो जाती है और यह उलझन भरी धारणा पैदा हो जाती है कि इस पूंजी ने पांचों क्रमिक आवों के दौरान उत्पादन प्रक्रिया में निरंतर काम किया है। किंतु यदि हम कहें कि १,००० पाउंड की पूंजी ५ वार प्रावर्तित हुई है, तो इसमें परिचलन काल और उत्पादन काल दोनों शामिल होते हैं। वस्तुतः, यदि १,००० पाउंड उत्पादन प्रक्रिया में सचमुच निरंतर सक्रिय रहे हों, नो उत्पाद हमारी कल्पना के अनुसार ५,००० पाउंड के बदले १०,००० पाउंड का होगा। किंतु उत्पादन प्रक्रिया में १,००० पाउंड निरंतर बनाये रखने के लिए २,००० पाउंड पेशगी देने होंगे । अर्थशास्त्री, जिनके पास आम तौर पर आवर्त की क्रियाविधि के बारे में साफ़-साफ़ कहने को कुछ नहीं होता, इस मुख्य वात को हमेशा नज़रंदाज़ कर जाते हैं और वह यह कि अगर उत्पादन को अविच्छिन्न चलते रहना है, तो प्रौद्योगिक पूंजी का केवल एक भाग उत्पादन प्रक्रिया में यथार्थतः संलग्न रह सकता है। एक भाग जव उत्पादन अवधि में होता है, तव दूसरे भाग को हमेशा परिचलन अवधि में रहना होगा अथवा दूसरे शब्दों में एक भाग उत्पादक पूंजी का कार्य इसी शर्त पर कर सकता है कि दूसरा भाग माल पूंजी या द्रव्य पूंजी के रूप में वास्तविक उत्पादन से निकाल लिया जाये। इसे नज़रंदाज़ करने से द्रव्य पूंजी का महत्व और उसकी भूमिका पूर्णतः अनदेखी रह जाती है। अब हमें यह पता लगाना है कि यदि आवर्त अवधि के दो हिस्से-कार्य अवधि और परिचलन अवधि-बरावर हों अथवा यदि कार्य अवधि परिचलन अवधि से बड़ी या छोटी हो, तो इससे पावर्त में क्या अंतर पैदा होते हैं ; और इसके अलावा द्रव्य पूंजी के रूप में पूंजी के वंध जाने पर इसका क्या असर होता है। हम मान लेते हैं कि प्रति सप्ताह पेशगी पूंजी सभी प्रसंगों में १०० पाउंड है और पावर्त अवधि नो हफ़्ते है, जिससे आवर्त की प्रत्येक अवधि में पेशगी दी जानेवाली पूंजी ६०० पाउंड है। , १. परिचलन अवधि के वरावर कार्य अवधि यद्यपि वास्तव में यह प्रसंग अाकस्मिक अपवाद की तरह ही सामने आता है, फिर भी हम इसे इस अनुसंधान में अपना प्रस्थान विंदु मानेंगे, क्योंकि यहां संवंध सवसे सादे और सबसे सुबोध तरीके से आकार ग्रहण करते हैं।