पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३१२

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३११ भाग ३ कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन अध्याय १८० भूमिका १. अन्वेषण का विषय ... . पूंजी की प्रत्यक्ष उत्पादन प्रक्रिया उसकी श्रम तथा स्वप्रसार प्रक्रिया है, वह प्रक्रिया है, जिसका परिणाम माल उत्पाद है और जिसका प्रेरक हेतु वेशी मूल्य का उत्पादन है। पूंजी की पुनरुत्पादन प्रक्रिया में यह प्रत्यक्ष उत्पादन प्रक्रिया तथा वास्तविक परिचलन प्रक्रिया के दोनों दौर समाहित होते हैं, अर्थात वह समूचा परिपथ , जो एक आवर्ती प्रक्रिया के रूप में- ऐसी प्रक्रिया के रूप में, जो निश्चित अंवधियों में निरंतर अपनी प्रावृत्ति करती है -- पूंजी आवर्त का निर्माण करता है। इस परिपथ का अध्ययन हम चाहे द्र द्र' रूप में करें, चाहे उ :.. उ रूप स्वयं प्रत्यक्ष उत्पादन प्रक्रिया उ हमेशा इस परिपथ की सिर्फ़ एक कड़ी होती है। एक रूप में वह परिचलन प्रक्रिया की संवर्धक बनकर आती है, दूसरे में परिचलन प्रक्रिया उसकी संवर्धक बनकर प्रकट होती है। दोनों ही स्थितियों में उसका निरंतर नवीकरण , उत्पादक पूंजी रूप में पूंजी का लगातार पुनरागमन परिचलन प्रक्रिया में उसके रूपांतरणों द्वारा निर्धारित होता है। दूसरी ओर निरंतर नवीकृत उत्पादन प्रक्रिया उन रूपांतरणों की, जिनसे पूंजी परिचलन क्षेत्र में वारंवार गुज़रती है, उसके वारी-बारी से द्रव्य पूंजी और माल पूंजी के रूप में प्रकट होने की शर्त है। किंतु प्रत्येक वैयक्तिक पूंजी कुल सामाजिक पूंजी का केवल व्यक्तिकृत अंश मात्र होती है, ऐसा अंश , जो मानो वैयक्तिक जीवन से युक्त हो, जैसे प्रत्येक पूंजीपति वैयक्तिक रूप में पूंजीपति वर्ग का केवल एक पृथक तत्व होता है। सामाजिक पूंजी के संचलन में उसके व्यक्तिकृत भिन्नांशों के संचलनों की समग्रता, वैयक्तिक पूंजियों के आवर्त समाहित होते हैं। जैसे वैयक्तिक माल का रूपांतरण पण्य जगत के रूपांतरणों की-पण्य परिचलन की-शृंखला की एक कड़ी है, वैसे ही वैयक्तिक पूंजी का रूपांतरण, उसका पावर्त सामाजिक पूंजी के परिपथ की एक कड़ी है। 3 3 पाण्डुलिपि २ से। -फ़े० एं०