पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३१४

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भूमिका ३१३ - विभिन्न दीर्घतानों को निर्धारित करती हैं। परिपथ की अवधि और उसके घटकों के विभिन्न अनुपात स्वयं उत्पादन प्रक्रिया के आयामों पर और वेशी मूल्य की वार्षिक दर पर जो प्रभाव डालते हैं, वह बताया गया था। दरअसल , जहां पहले भाग में पूंजी द्वारा अपने परिपथ में निरंतर धारण किये और तजे जानेवाले क्रमिक रूपों का अध्ययन किया गया था, वहां दूसरे भाग में यह दिखाया गया था कि एक दिये हुए परिमाण की पूंजी किंस तरह एक ही समय पर, यद्यपि विभिन्न अनुपातों में, रूपों के इस प्रवाह और क्रमानुसरण में विभिन्न रूपों में- उत्पादक पूंजी, द्रव्य पूंजी या माल पूंजी में-विभाजित होती है, जिससे कि उनमें परस्पर क्रमांतरण ही नहीं होता, वरन कुल पूंजी मूल्य के विभिन्न अंश भी निरंतर एक दूसरे के साथ विद्यमान रहते हैं और इन विभिन्न अवस्थानों में कार्य करते हैं। ख़ास तौर से द्रव्य पूंजी ऐसे विशेष लक्षणों के साथ सामने आई ; जो खंड १ में नहीं प्रकट किये गये थे। कुछ ऐसे नियमों का पता चलाया गया, जिनके अनुसार दी हुई पूंजी के विभिन्न बड़े घटकों को-आवर्त की परि- स्थितियों के अनुरूप -- द्रव्य पूंजी के रूप में निरंतर पेशगी देना और नवीकृत करना होता है, जिससे कि दिये हुए परिमाण की उत्पादक पूंजी को निरंतर कार्यशील रखा जा सके। किंतु पहले और दूसरे दोनों ही भागों में प्रश्न सदा किसी वैयक्तिक पूंजी का , सामाजिक पूंजी के किसी व्यक्तिकृत भाग की गति का ही रहता था। किंतु वैयक्तिक पूंजियों के परिपथ अंतर्ग्रथित होते , एक दूसरे को पूर्वापेक्षित करते और आवश्यक बनाते हैं और इस अंतग्रंथन से ही कुल सामाजिक पूंजी की गति बनाते हैं। जैसे साधारण माल परिचलन में माल का समग्र रूपांतरण पण्य जगत के रूपांतरणों की श्रृंखला की कड़ी वनकर प्रकट हुआ था, वैसे ही अब वैयक्तिक पूंजी का रूपांतरण सामाजिक पूंजी के रूपांतरणों की शृंखला की कड़ी बनकर प्रकट होता है। किंतु जहां साधारण माल परिचलन में पूंजी परिचलन समाहित होना किसी भी प्रकार अनिवार्य नहीं है, क्योंकि वह गैरपूंजीवादी उत्पादन के आधार पर भी हो सकता है, वहां कुल सामाजिक पूंजी के परिपथ में, जैसा कि बताया जा चुका है, वैयक्तिक पूंजी के परिपथ के बाहर का माल परिचलन भी, अर्थात उन पण्य वस्तुओं का परिचलन भी समाहित होता है, जो पूंजी नहीं हैं। अव हमें वैयक्तिक पूंजियों की परिचलन प्रक्रिया का ( जो अपनी समग्रता में पुनरुत्पादन प्रक्रिया का एक रूप है ) कुल सामाजिक पूंजी के घटकों के रूप में, अर्थात कुल सामाजिक पूंजी की परिचलन प्रक्रिया का अध्ययन करना है। + २. द्रव्य पूंजी की भूमिका 1 , [ यद्यपि निम्नलिखित का संबंध इस भाग के एक अगले परिच्छेद से है, फिर भी हम उसका, यानी कुल सामाजिक पूंजी के घटक रूप में द्रव्य पूंजी का विश्लेषण अभी ही करेंगे।] वैयक्तिक पूंजी के आवर्त के अध्ययन में द्रव्य पूंजी के दो पक्ष प्रकट हुए थे। पहली बात , यह वह रूप है, जिसमें प्रत्येक वैयक्तिक पूंजी मंच पर प्रकट होती है और पूंजी के रूप में अपनी प्रक्रिया शुरू करती है। इसलिए वह primus motor [आदि प्रेरक]. वनकर प्रकट होती है और सारी प्रक्रिया को उत्प्रेरित करती है। दूसरी वात, पेशगी पूंजी मूल्य के जिस भाग को निरंतर द्रव्य रूप में पेशगी देना और नवीकृत करना होता है, वह आवर्त अवधि की विशेष दीर्घता और उसके दोनों संघटक अंशों कार्य अवधि और परिचलन अवधि - के विशेष अनुपात के अनुसार उस उत्पादक पूंजी से ,