पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३२४

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३२३ . 11 इसके बाद ऐडम स्मिथ हमें बताते हैं कि शुद्ध आय से , अर्थात अपने विशिष्ट अर्थ में पाय से, सारी स्थायी पूंजी निकाल देनी चाहिए और प्रचल पूंजी का वह समग्र भाग भी निकाल देना चाहिए, जो स्थायी पूंजी अनुरक्षण और प्रतिकार के लिए और उसके नवीकरण के लिए आवश्यक होता है, वस्तुतः वह सारी पूंजी , जो उपभोग निधि हेतु दैहिक रूप में नहीं है। 'स्थायी पूंजी के अनुरक्षण के सारे ख़र्च को स्पष्ट ही समाज की शुद्ध प्राय से निकाल देना होगा। न तो समाज की उपयोगी मशीनों और श्रम के उपकरणों के अवलंबन के लिए यावश्यक सामग्री और न इस सामग्री को उचित रूप देने के लिए आवश्यक श्रम ही उसका अंग बन सकते हैं। उस श्रम की क़ीमत अवश्य उसका अंग बन सकती है, क्योंकि इस प्रकार काम में लगाये मजदूर अपनी मजदूरी का सारा मूल्य तात्कालिक उपभोग के लिए आरक्षित अपने स्टॉक में डाल सकते हैं। किंतु श्रम के अन्य प्रकारों में कीमत" [अर्थात इस श्रम के लिए दी मजदूरी] " और उत्पाद " [जिसमें यह श्रम निहित है] "दोनों ही इस स्टॉक में जाते हैं : कीमत मजदूरों के स्टॉक में और उत्पाद दूसरे लोगों के स्टॉक में, जिनके निर्वाह , सुख-सुविधा और मनोरंजन साधनों में उन मजदूरों के श्रम की बदौलत वृद्धि होती है।" ( खंड २, अध्याय २, पृष्ठ १६०, १६१)। ऐडम स्मिथ यहां एक बहुत ही महत्वपूर्ण भेद पर पहुंच जाते हैं - उत्पादन साधनों के उत्पादन में लगाये जानेवाले और उपभोग वस्तुओं के तात्कालिक उत्पादन में लगाये जानेवाले मजदूरों का भेद। प्रथमोक्त मजदूर पण्य वस्तुओं का जो मूल्य पैदा करते हैं, उसका एक संघटक अंश मजदूरी के योग के वरावर , अर्थात श्रम शक्ति की खरीद में निवेशित पूंजी अंश के मूल्य के बरावर होता है। मूल्य का यह भाग मजदूरों द्वारा उत्पादित उत्पादन साधनों के एक निश्चित अंश के रूप में दैहिक रूप में विद्यमान होता है। उन्हें मजदूरी के रूप में मिला धन उनकी आय है, किंतु उनकी मेहनत ने ऐसे सामान का उत्पादन नहीं किया है, जो उनके या दूसरों के लिए उपभोज्य हो। इसलिए यह उत्पाद वार्षिक उत्पाद के उस अंश का तत्व नहीं है, जो सामाजिक उपभोग निधि के निर्माण के लिए उद्दिष्ट होता है, सिर्फ़ जिसमें ही “शुद्ध प्राय का सिद्धिकरण हो सकता है। ऐडम स्मिथ यहां यह जोड़ना भूल जाते हैं कि जो बात . मजदूरी पर लागू होती है, वही उत्पादन साधनों मूल्य के उस घटक पर भी लागू होती है, जो वेशी मूल्य होने के नाते किराये और मुनाफ़े के संवर्गों के अंतर्गत (सर्वोपरि) प्रौद्यो- गिक पूंजीपति की प्राय बनता है। ये मूल्य घटक भी इसी प्रकार उत्पादन साधनों में ऐसी वस्तुओं में विद्यमान होते हैं, जिनका उपभोग नहीं हो सकता। वे द्रव्य में परिवर्तित हुए विना अपनी कीमत के अनुरूप मात्रा में अंतोक्त प्रकार के मजदूरों द्वारा उत्पादित उपभोग वस्तुओं को मुहैया नहीं कर सकते , केवल तब जाकर ही वे इन वस्तुओं को उत्पादन साधनों के मालिकों की वैयक्तिक उपभोग निधि को अंतरित कर सकते हैं। किंतु इससे ऐडम स्मिथ को यह और भी दीख जाना चाहिए था कि प्रति वर्ष उत्पन्न उत्पादन साधनों के मूल्य का एक भाग इस उत्पादन क्षेत्र में कार्यशील उत्पादन साधनों-वे उत्पादन साधन, जिनसे उत्पादन साधनों का निर्माण किया जाता है - के मूल्य के वरावर होता है। इसलिए यहां नियोजित स्थिर पूंजी के मूल्य वरावर मूल्यांश का न केवल उसके दैहिक रूप के कारण ही, जिसमें वह विद्यमान होता है, वरन उसके पूंजी रूप में कार्यशील होने के कारण भी आय का निर्माण करनेवाला मूल्य घटक बनना संभव नहीं है। , 21.