पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३४४

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विषय के पूर्व प्रस्तुतीकरण ३४३ - " (4 संभाव्य अंतर पड़ जाता है कि इसका उपभोग वे लोग करते हैं, जो एक अन्य मूल्य का पुनरुत्पा- दन करते हैं अथवा वे लोग, जो इसका पुनरुत्पादन नहीं करते। जब हम कहते हैं कि प्राय बच जाती हैं और पूंजी में जुड़ जाती है, तब हमारा आशय यह होता है कि आय का जो हिस्सा पूंजी में जुड़ता बताया जाता है, उसका उपभोग अनुत्पादक श्रमिकों के बदले उत्पादक श्रमिक करते हैं।" (Principles [सिद्धांत], पृष्ठ १६३१) वस्तुतः रिकार्डो ऐडम स्मिथ के मालों की कीमत के मज़दूरी और वेशी मूल्य (अथवा परिवर्ती पूंजी तथा वेशी मूल्य ). में वियोजन विषयक सिद्धांत को पूर्णतः स्वीकार करते थे। उनके लिए वहसतलव नुक्ते ये हैं : १) वेशी मूल्य के संघटक अंश : वह किराया ज़मीन को उसका आवश्यक तत्व नहीं मानते ; २) रिकार्डो माल की कीमत इन संघटक अंशों में विभाजित कर देते हैं। इसलिए मूल्य का परिमाण prius [सर्वोपरि] है। संघटक अंशों के योग को एक दिया हुना परिमाण मान लिया जाता है, यही प्रारंभ विंदु है, जब कि ऐडम स्मिथ माल मूल्य के परिमाण को उसके संघटक अंशों के योग से post festum निकालकर अक्सर इसके विपरीत अपने ही श्रेष्ठतर विवेक के प्रतिकूल चलते हैं। रैमजे रिकार्डो के विरुद्ध यह टिप्पणी करते हैं : वह सारे उत्पाद को सदैव मजदूरी और लाभ में विभाजित मानते प्रतीत होते हैं, और स्थायी पूंजी के प्रतिस्थापन के लिए आवश्यक भाग को भूल जाते हैं।" (An Essay on the Distribution of Wealth, ऐडिनवरा, १८३६, पृष्ठ १७४ । ) स्थायी पूंजी से रैमजे का वही आशय है; जो मेरा स्थिर पूंजी से है : 'स्थायी पूंजी ऐसे रूप में विद्यमान होती है, जिसमें वह भावी माल को पैदा करने में सहायक तो होती है, पर मजदूरों का भरण-पोषण नहीं करती।" (वही, पृष्ठ ५६ 1 ) ऐडम स्मिथ ने मालों के मूल्य के , अतः सालाना सामाजिक उत्पाद के मजदूरी और वेशी मूल्य और इसलिए मात्र आय में अपने वियोजन के अनिवार्य निष्कर्ष का- यह निष्कर्ष कि ऐसी स्थिति में सारा सालाना उत्पाद उपभुक्त हो सकता है- विरोध किया। मौलिक विचारक कभी वेसिर पैर के निष्कर्ष नहीं निकालते। यह काम वे सेय और मैक-कुलोच जैसे लोगों के लिए छोड़ देते हैं। सेय सचमुच सारे मसले को बड़ी आसानी से हल कर डालते हैं। एक के लिए जो पूंजी की पेशगी है, वह दूसरे के लिए आय , शुद्ध उत्पाद है या था। सकल उत्पाद और शुद्ध उत्पाद का अंतर विशुद्धतः आत्मगत है, और "इस प्रकार समस्त उत्पाद का समग्र मूल्य समाज में आय के रूप में बांट दिया गया है।" ( सेय, Traité d Economie Politique, १८१७ , २, पृष्ठ ६४ । ) "प्रत्येक उत्पाद का समग्न मूल्य भूस्वामियों, पूंजीपतियों और प्रौद्योगिक कारवार करनेवाले उन सभी लोगों के लाभों से संरचित होता है, जिन्होंने उसके उत्पादन में योगदान किया है।" ( मजदूरी को यहां profits des industrieux [उद्योगपतियों का लाभ] कहा गया है ! ) "इससे समाज की आय सकल उत्पादित मूल्य के वरावर हो जाती है, न कि भूमि के शुद्ध उत्पाद के वरावर, जैसा कि अर्थशास्त्रियों के संप्रदाय (प्रकृतितंत्रवादियों) का विश्वास था" (पृष्ठ ६३।) औरों के अलावा प्रूदों ने भी सेय की इस खोज को प्रात्मसात कर लिया है। किंतु स्तोर्ख, जो इसी प्रकार ऐडम स्मिथ का मत सिद्धांततः स्वीकार करते हैं, यह मानते हैं कि सेय का उसका व्यावहारिक उपयोग तर्कसंगत नहीं है। “यदि यह मान लिया जाये कि किसी राष्ट्र की प्राय उसके कुल उत्पाद के वरावर है, अर्थात उसमें से कोई भी पूंजी"