पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/३७२

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माधारण पुनत्पादन ३७१ 1 द्रव्य में पुनःपरिवर्तित कर लिया है। द्रव्य में परिवर्तित इस मूल्यांश से वह फिर मालों के अन्य विक्रेताओं से अपने उत्पादन साधन खरीदता है अथवा अपने उत्पाद का स्थिर मूल्यांश ऐसे दैहिक रूप में रूपांतरित करता है, जिसमें वह अपना उत्पादक स्थिर पूंजी का कार्य फिर शुरू कर सकता है। किंतु अब यह कल्पना असंभव हो जाती है। I के पूंजीपति वर्ग के अंतर्गत उत्पादन साधन पैदा करनेवाले पूंजीपति समग्र रूप में आ जाते हैं। इसके अलावा ४,००० का जो पण्य उत्पाद उनके पास रह जाता है, वह सामाजिक उत्पाद का वह अंश है, जिसका विनिमय किसी और अंश से नहीं हो सकता , क्योंकि वार्पिक उत्पाद का ऐसा अन्य कोई अंश शेप नहीं रहता है। इन ४,००० को छोड़कर शेष सवका निपटान हो गया है। एक भाग सामा- जिक उपभोग निधि में समेट लिया गया है और दूसरे को क्षेत्र II की स्थिर पूंजी को प्रति- स्थापित करना होगा, जो क्षेत्र I से जिस किसी का भी विनिमय कर सकता था, पहले ही कर चुका है। यदि हम याद रखें कि अपने दैहिक रूप में समस्त I पण्य उत्पाद उत्पादन साधनों से ही, अर्थात स्वयं स्थिर पूंजी के भौतिक तत्वों से ही निर्मित होता है, तो कठिनाई बहुत आसानी से दूर हो जाती है। यहां हम उसी परिघटना को देखते हैं, जिसे पहले II के अंतर्गत देख चुके हैं, केवल उसका दूसरा पक्ष सामने होता है। II के प्रसंग में समस्त माल उत्पाद उपभोग वस्तुएं था। अतः इस उत्पाद में समाविष्ट वेशी मूल्य तथा मजदूरी के योग के अनुरूप उसका एक अंश स्वयं उसके उत्पादकों के उपभोग में आ सकता था। यहां, I के प्रसंग में समस्त उत्पाद उत्पादन साधन- इमारतें, मशीनें, जहाज़ , कच्ची और सहायक सामग्री, वगैरह है। अतः इसका एक अंश , यानी वह , जो इस क्षेत्र में नियोजित स्थिर पूंजी को प्रतिस्थापित करता है, अपने दैहिक रूप में उत्पादक पूंजी के घटक की तरह तुरंत फिर से कार्य कर सकता है। जहां तक वह परिचलन में जाता है, वह वर्ग I के भीतर परिचालित होता है। II में पण्य उत्पाद के एक भाग का उसके उत्पादकों द्वारा वस्तुरूप में वैयक्तिक उपभोग किया जाता है, जब कि I में उत्पाद के एक अंश का उसके पूंजीवादी उत्पादकों द्वारा वस्तुरूप में उत्पादक उपभोग किया जाता है। पण्य उत्पाद I के ४,००० के बरावर हिस्से में इस संवर्ग में उपभुक्त स्थिर पूंजी मूल्य पुनः प्रकट होता है और ऐसे दैहिक रूप में कि जिसमें वह अपना उत्पादक स्थिर पूंजी का कार्य तुरंत फिर शुरू कर सकता है। II में ३,००० के माल उत्पाद का मज़दूरी तथा वेशी मूल्य (१,००० के बरावर) के योग के वरावर मूल्य का अंश सीधे II पूंजीपतियों और मजदूरों के व्यक्तिगत उपभोग में पहुंच जाता है, जव कि दूसरी ओर इस पण्य उत्पाद का स्थिर पूंजी मूल्य (२,००० के बरावर ) II पूंजीपतियों के उत्पादक उपभोग में फिर दाखिल नहीं हो सकता, बल्कि उसका I से विनिमय द्वारा प्रतिस्थापन करना होता है। इसके विपरीत I में ६,००० के उसके माल उत्पाद का वह अंश , जिसका मूल्य मजदूरी तथा वेशी मूल्य (२,००० के वरावर ) के योग के वरावर है, अपने उत्पादकों के व्यक्तिगत उपभोग में नहीं जाता, और ऐसा वह अपने दैहिक रूप के कारण नहीं कर सकता। उसका पहले II से विनिमय करना होता है। दूसरी ओर इस उत्पाद के मूल्य का ४,००० के वरावर स्थिर ग्रंश ऐसे दैहिक रूप में होता है - समग्रतः I पूंजीपति वर्ग के विचार से - कि वह उस वर्ग की स्थिर पूंजी का अपना कार्य फिर से तुरंत शुरू कर सकता है। दूसरे शब्दों में क्षेत्र स