पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४०७

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कुन नामाजिक पूंजी का पुनरूत्पादन तथा परिवलन . 11 होना जरा नया II के बीच माल र ४०० के इस विनिमय में परिचालित सारा द्रव्य या II - उनके पान लोट साता है, जिसने से पेशगी दिया था, अतः यह द्रव्य I तया 11 के बीच विनिमय का एक तत्व होने के कारण दरअसल उस समस्या का तत्व नहीं है, जिसमें हम यहां उनले हुए हैं। अथवा बात दूसरे ढंग से कहें, तो : मान लीजिये , २०० 1 ( माल का में) और २०० II ( II, भाग १ के माल रूप में ) के बीच विनिमय में द्रव्य अदायगी के माधन का कार्य करता है, ऋय साधन का नहीं और इसलिए शब्दों के सही-सही अयं में "परिननन माध्यम का भी काम नहीं करता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि चूंकि २०० 11 और २०० II, (भाग १) माल मूल्य परिमाण में समान हैं, इसलिए २०० के उत्पादन माधनों का विनिमय २०० मूल्य की उपभोग वस्तुओं से होता है और द्रव्य यहां केवल अधिकल्पित का में कार्य करता है और किसी भी पक्ष को किसी भी भुगतान शेप की अदायगी के लिए परिचलन में कुछ भी द्रव्य डालना नहीं होता। इसलिए समस्या अपने विशुद्ध रूप में तभी प्रस्तुत होती है, जब हम I तवा II दोनों पक्षों की ओर २०० वे माल और उसका समतुल्य , २०० II- (भाग १) माल को निकाल दें। समान मूल्य की इन दोनों माल राशियों ( I तया II ) के, जो एक दूसरे को संतुलित करती हैं, विलोपन के बाद विनिमय के लिए एक शेषांश रह जाता है, जिसमें समस्या अपना विशुद्ध रूप प्रदर्शित करती है, अर्थात I. माल रूप में २००३। II. (१) द्रव्य रूप में २००+ (२) २००स माल रूप में। यहां स्पष्ट है कि II , भाग १ द्रव्य रूप २०० से अपनी स्थायी पूंजी के संघटक अंश २०० । वरीदता है। इससे II, भाग १ की स्थायी पूंजी का वस्तुरूप में नवीकरण होता है और I का २०० का वेगी मूल्य पण्य रूप ( उत्पादन साधनों अथवा और भी सटीक रूप में स्थायी पूंजी के तत्वों) ने द्रव्य रूप में परिवर्तित होता है। I इस द्रव्य से II , भाग २ से उपभोग वस्तुएं खरीदता है और II के लिए परिणाम यह हुअा है कि भाग १ के लिए उसकी स्थिर पूंजी के एक स्थायी संघटक अंश का वस्तुरूप में नवीकरण हो गया है और भाग २ के लिए अन्य संघटक अंश ( जो उसकी स्थायी पूंजी के ह्रास की क्षतिपूर्ति करता है ) का द्रव्य रूप में अवक्षेपण हो गया है। और यह प्रति वर्ष तब तक होता रहता है कि जब इस अंतिम संघटक ग्रंश का भी वन्तुरूप में नवीकरण करना पड़ जाता है। यहां प्राथमिक शतं स्पप्टतः यह है कि स्थिर पूंजी II का यह स्थायी संघटक अंश , जो अपने मूल्य की पूरी सीमा तक द्रव्य में पुनःपरिवर्तित होता है और इसीलिए जिसका प्रति वर्ष (भाग १) वस्तुरूप में नवीकरण करना होता है, स्थिर पूंजी II के अन्य स्थायी संघटक अंश के वार्षिक मूल्य ह्रास के बराबर हो , जो अपने पुराने दैहिक रूप में कार्य करता रहता है और जिसकी छीजन-मूल्य ह्रास , जो वह उन मालों को अंतरित करता है, जिनके उत्पादन वह लगा है- की पहले द्रव्य रूप में अतिपूर्ति करनी होती है। ऐसा संतुलन उसी पैमाने पर पुनरुत्पादन का नियम प्रतीत होता है। यह कथन यह कहने के बराबर है कि वर्ग I में, जो उतादन साधन प्रस्तुत करता है, समानुपातिक श्रम विभाजन अपरिवर्तित बना रहना चाहिए,