पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४०८

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४०७ साधारण पुनरुत्पादन क्योंकि वह एक अोर क्षेत्र II की स्थिर पूंजी के प्रचल घटक उत्पादित करता है और दूसरी पोर उसके स्थायी घटक । इसकी और बारीकी से छानवीन करने के पहले हमें यह देखना चाहिए कि यदि IIस (१) का शेषांश IIस ( २ ) के शेषांश के वरावर न हो, बड़ा या छोटा हो, तो क्या वात बनती है। आइये , इन दोनों प्रसंगों का क्रमशः अध्ययन करें। प्रथम प्रसंग I. २००३ II. (१) २२°स (द्रव्य रूप में) + (२) २०°स ( माल रूप में)। इस प्रसंग में IIस (१) द्रव्य रूप में २०० पाउंड से २०० I माल खरीदता है और I उसी द्रव्य से २०० IIस (२) माल , अर्थात स्थायी पूंजी का वह भाग ख़रीदता है, जिसका द्रव्य रूप में अवक्षेपण होना है। इस तरह यह भाग द्रव्य में परिवर्तित हो जाता है। किंतु द्रव्य रूप में २० II (१) का स्थायी पूंजी में वस्तुरूप में पुनःपरिवर्तन नहीं हो सकता। ऐसा लगता है कि यह मुसीवत टल सकती है, यदि I का शेषांश २०० के बदले २२० कर दिया जाये, जिससे कि पूर्वोक्त विनिमय के ज़रिये २,००० I में से १,८०० के बदले केवल १,७८० का निपटान होगा। तब स्थिति यह होगी : 1 I. २२० । II. (१) २२°स ( ( द्रव्य रूप में ) + (२) २००स ( माल रूप में ) । IIस , भाग १ द्रव्य रूप में २२० पाउंड से २२० वे ख़रीदता है और तब I २०० पाउंड से माल रूप में २०० IIस (२) खरीदता है। किंतु अब २० पाउंड द्रव्य रूप में I की ओर रह जाते हैं ; वेशी मूल्य के इस अंश को वह उपभोग वस्तुओं पर खर्च किये बिना केवल द्रव्य रूप में रख सकता है। इस तरह कठिनाई IIस ( भाग १) से I को अंतरित मात्र हो जाती है। दूसरी ओर अव हम यह मान लें कि IIस, भाग १ IIA, भाग २ से छोटा है ; तव स्थिति यह होती है: द्वितीय प्रसंग I. २००बे ( माल रूप में )। II. (१) १८०स (द्रव्य रूप में ) + (२) २०°स ( माल रूप में ) । II (भाग १) द्रव्य रूप में १८० पाउंड १८० वे माल खरीदता है। I इस द्रव्य से II ( भाग २) से उसी मूल्य का माल , अतः १८० IIस (२) खरीदता है। अब एक ओर अविक्रेय २० वे शेष हैं और दूसरी ओर भी २० IIस (२)- ४० का माल शेष है, जो द्रव्य में अपरिवर्तनीय है।