पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४१८

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साधारण पुनरुत्पादन ४१७ 4 .. जायें दूकानदारों और दुकानदारों के बीच लेन-देनों की कुल राशि को अंततोगत्वा दुकान- दारों और उपभोक्ताओं के बीच लेन-देनों की राशि के द्वारा ही निर्धारित और सीमित होना होगा। यदि यह अंतिम वाक्य अलग होता, तो सोचा जा सकता था कि टूक ने केवल यह तथ्य वयान किया है कि दुकानदारों के बीच विनिमयों में और दुकानदारों और उपभोक्ताओं के बीच विनिमयों में, दूसरे शब्दों में कुल वार्षिक आय के मूल्य और जिस पूंजी द्वारा इसका उत्पादन होता है, उसके मूल्य के बीच एक निश्चित अनुपात होता है। किंतु बात ऐसी नहीं है। वह ऐडम स्मिथ के मत का स्पष्टतया अनुमोदन करते हैं। इसलिए उनके परिचलन सिद्धांत की विशेषकर आलोचना करना वेकार है। २) अपनी जीवन यात्रा शुरू करते समय प्रत्येक औद्योगिक पूंजी परिचलन में अपने संपूर्ण स्थायी संघटक अंश के बदले एकबारगी द्रव्य डालती है, जिसे वह अपने वार्षिक उत्पाद की विक्री के ज़रिये ही धीरे-धीरे, वर्षों के दौरान पुनः प्राप्त करती है। इस प्रकार वह परिचलन में पहले उससे ज्यादा धन डालती है, जितना उससे निकालती है। समस्त पूंजी के वस्तुरूप में हर नवीकरण के समय इसकी पुनरावृत्ति होती है। कुछेक उद्यमों के प्रसंग में इसकी आवृत्ति प्रति वर्ष होती है, जिनमें स्थायी पूंजी का नवीकरण वस्तुरूप में करना होता है। हर मरम्मत के समय, हर वार स्थायी पूंजी के केवल आंशिक नवीकरण के समय इसकी अंशतः पुनरावृत्ति होती है। इसलिए जहां एक ओर परिचलन में जितना पैसा डाला जाता है, उससे ज्यादा निकाला जाता है, वहां दूसरी ओर इसका उलटा होता है। उद्योग की उन सभी शाखाओं में, जिनमें उत्पादन अवधि-कार्य अवधि से भिन्न - दीर्घकालीन होती है, इस अवधि में पूंजीपति उत्पादक निरंतर परिचलन में द्रव्य डालते रहते हैं , अंशतः नियोजित श्रम शक्ति की अदायगी के लिए और अंशत: उपमुक्त होनेवाले उत्पादन साधनों की खरीद के लिए। इस प्रकार उत्पादन साधन वाज़ार से प्रत्यक्षतः निकाले जाते हैं और उपभोग वस्तुओं को अपनी मजदूरी ख़र्च करनेवाले मजदूरों द्वारा अंशतः अप्रत्यक्षतः और पूंजीपतियों द्वारा अंशतः प्रत्यक्षतः निकाला जाता है, जो अपना उपभोग ज़रा भी स्थगित नहीं करते , यद्यपि वे साथ ही बाज़ार में माल के रूप में कोई समतुल्य भी नहीं डालते। इस अवधि में उनके द्वारा परिचलन में डाला द्रव्य माल मूल्य को, उसमें निहित वेशी मूल्य समेत द्रव्य में बदलने के काम आता है। यह बात पूंजीवादी उत्पादन की विकसित अवस्था में संयुक्त पूंजी कंपनियों आदि द्वारा चलाये जानेवाले लंबे चलनेवाले उद्यमों में बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, जैसे रेलमार्गों, नहरों, गोदियों, बड़े नगरीय भवनों, लोहे के जहाजों का निर्माण , ज़मीन की बड़े पैमाने पर जलनिकासी, इत्यादि। ३) जहां अन्य पूंजीपति-स्थायी पूंजी में निवेश के अलावा-परिचलन में जितना पैसा डालते हैं, श्रम शक्ति तथा प्रचल तत्वों के क्रय में उससे ज्यादा निकालते हैं, वहां सोना-चांदी उत्पादक पूंजीपति, वहुमूल्य धातु के अलावा, जो कच्चे माल का काम देती है, परिचलन में केवल द्रव्य डालते हैं, जब कि उससे केवल माल निकालते हैं। ह्रासित अंश के सिवा स्थिर पूंजी , अधिकांश परिवर्ती पूंजी और संचय को छोड़कर , जो स्वयं उनके ही हाथों में संचित हो सकता है, समस्त वेशी मूल्य - सभी द्रव्य रूप में परिचलन में डाल दिये जाते हैं। ४) एक ओर भांति-भांति की चीजें मालों के रूप में परिचालित होती हैं, जिनका उत्पादन दिये हुए वर्ष के दौरान नहीं हुआ था, जैसे भूखंड, भवन , आदि ; इनके अलावा - . 9-1150