पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२१

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कुल सामाजिक पूंजी का पुनरुत्पादन तथा परिचलन गति के न नभी विभिन्न पक्षों को अनुभव से हृदयंगम करने और उन्हें उभारकर प्रस्तुत करने भर की प्राययाता थी। हां व्यवसाय को उन गावाओं, जिनका उत्पादन अन्यया सामान्य परिस्थितियों में उसी माने पर निरंतर चलता रहता है, और उन शाखायों में, जो साल के अलग-अलग दौरों में श्रम गक्ति की विभिन्न मावाएं इस्तेमाल करती हैं, जैसे खेती, अंतर भी शामिल किया जाना नाहिए। . १३. देस्तु द वासी का पुनरुत्पादन सिद्धांत . 11 ग्राम्य , नामाजिक पुनन्त्पादन का विश्लेषण करनेवाले अर्थशास्त्रियों की उलझनभरी और गाय ही दंभपूर्ण विचारहीनता का निदर्शन हम प्रकांड तर्कशास्त्री देस्तु द नासी के उदाहरण से करें ( तुलना के लिए देखें : Buch l, p. 146, Note 30), जिन्हें रिकार्डो तक महत्व देते थे पार प्रति लब्धप्रतिष्ठ लेखक कहते थे (Principles, पृष्ठ ३३३ ) । मामाजिक पुनन्यादन और परिचलन की समूची प्रक्रिया के संदर्भ में यह " लब्धप्रतिप्ठ लेखक" निम्नलिमित व्याख्याएं देते हैं : मुझसे पूछा जायेगा कि ये प्रौद्योगिक उद्यमकर्ता किस तरह ऐसे बड़े मुनाफ़े कमाते हैं और किन लोगों से वे उन्हें बटोरते हैं। मेरा जवाब है कि जो भी चीज़ वे पैदा करते हैं, उमे पंदा करने की लागत से ज्यादा पर बेचकर ; और वे वेचते हैं : "१) एक दूसरे को, अपनी आवश्यकताओं की तुप्टि के लिए उद्दिष्ट अपने उपभोग के समस्त ग्रंण को, जिसकी अदायगी वे अपने मुनाफ़ों के एक अंश से करते हैं; "२) उजरती मजदूरों को, जिन्हें वे खुद पैसा देते हैं और जिन्हें निष्क्रिय पूंजीपति पैसा देते हैं, उन्हें भी ; इन उजरती मजदूरों से वे इस प्रकार संभवतः उनकी थोड़ी सी वचत के सिवा उनकी सारी मजदूरी को खसोट लेते हैं; "३) निष्क्रिय पूंजीपतियों को, जो उनकी अदायगी अपनी प्राय के उस अंश से करते हैं, जो उन्होंने अभी अपने द्वारा प्रत्यक्षतः नियोजित उजरती मजदूरों को नहीं दिया है ; परिणामस्वरूप वे उन्हें प्रति वर्ष जो किराया देते हैं, वह सारा का सारा किसी न किसी तरह उनके पास लौट आता है।" ( देस्तु द वासी , Traité de la volonté et de ses effets, पेरिस, १८२६, पृष्ठ २३६ ।) दूसरे शब्दों में पूंजीपति अपने वेशी मूल्य के उस अंग के विनिमय में एक दूसरे को मात देकर धनी बनते हैं, जिसे वे अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए अलग रखते हैं अथवा प्राय के रूप में उपभोग करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर उनके वेशी मूल्य का अथवा उनके मुनाफ़ों का यह अंश ४०० पाउंड के बराबर है, तो कल्पना यह की गई है कि उसके प्रत्येक अंशधारी द्वारा अपने अंश के दूसरे को २५ प्रतिशत ज्यादा पर वेचने पर ४०० पाउंड की इस राशि को बढ़कर- कहिये कि ५०० पाउंट हो जाना चाहिए। लेकिन चूंकि सभी ऐसा ही करते हैं, इसलिए अगर उन्होंने एक दूसरे को वास्तविक मूल्य, पर बेचा होता, तो भी नतीजा वही होता। उन्हें 1 " पाण्डुलिपि २ से। -फे० एं० • हिंदी संस्करण : पृष्ठ १८७, टिप्पणी ११-सं०