पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/४२५

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पुन सामाजिक पूंजी का पुनल्पादन तथा परिचलन 7 . 1 कार हम देव नुके हैं कि प्रोद्योगिक पूंजीपति "अपने मुनाफ़ों के एक अंग से अपनी पावसातामों की तुष्टि के लिए उद्दिष्ट अपने उपभोग के समस्त अंश की अदायगी करते हैं।" उमनिए मान लीजिये कि उनके मुनाफे २०० पाउंड के बराबर हैं। और इनमें से वे , मसलन , १०० पाउंद अपने व्यक्तिगत उपभोग में लगा देते हैं। किंतु दूसरा आधा भाग अथवा १०० पाऊं उनका नहीं है, वह निष्मिय पूंजीपतियों का है, यानी उनका, जो किराया जमीन पाते में, पर उन पूंजीपतियों का है, जो व्याज पर पैसा उठाते हैं। इसलिए उन्हें १०० पाउंड इन भद्रजनों को देने होंगे। मान लीजिये कि इन भद्रजनों को इस द्रव्य में से ८० पाउंड की यावश्यक्ता अपने व्यक्तिगत उपभोग के लिए है और २० पाउंड की सेवक रखने , वगैरह के लिए है। उन ८० पाउंड से वे प्रौद्योगिक पूंजीपतियों से उपभोग वस्तुएं खरीदते हैं। इस प्रकार जहां इन पूंजीपतियों को ८० पाउंड का माल देना होता है, वहां उन्हें द्रव्य रूप में ८० पाउंः प्रथया किराये , सूद , वगैरह के नाम पर निष्क्रिय पूंजीपतियों को दिये १०० पाउंड का ४/५ हिस्सा वापस मिल जाता है। इसके अलावा चाकर वर्ग, जो निष्क्रिय पूंजीपतियों का प्रत्यक्ष उजरती मजदूर है, अपने मालिकों से २० पाउंड पा जाता है। ये नौकर भी इसी प्रकार प्रौद्योगिक पूंजीपतियों से २० पाउंड की उपभोग वस्तुएं खरीदते हैं। इस तरह २० पाउंड के माल को देने पर ये पूंजीपति द्रव्य रूप में २० पाउंड वापस पा जाते हैं, जो उनके द्वारा निष्क्रिय पूंजीपतियों को किराये, मूद, वगैरह के लिए दिये १०० पाउंड का अंतिम पंचमांश हैं। लेन-देन के अंत में प्रौद्योगिक पूंजीपतियों ने द्रव्य रूप में १०० पाउंड वसूल कर लिये हैं, जो उन्होंने किराये , मूद , वगैरह के लिए निष्क्रिय पूंजीपतियों को दिये थे। किंतु इसी बीच उनके वेशी उत्पाद का १०० पाउंड के बरावर आधा भाग उनके हाथ से निकलकर निष्क्रिय पूंजीपतियों की उपभोग निधि में पहुंच गया। यहां विचाराधीन प्रश्न के संदर्भ में निष्क्रिय पूंजीपतियों और उनके प्रत्यक्ष उजरती मजदूरों के बीच १०० पाउंड के वितरण को जैसे भी करके लाना स्पष्टतः अनावश्यक है। मामला सीधा है : उनका किराया , मूद , संक्षेप में - वेशी मूल्य में उनका २०० पाउंड के वरावर हिस्सा उन्हें ग्रौद्योगिक पूंजीपतियों द्वारा द्रव्य रूप में दिया जाता है, जो १०० पाउंड के बराबर होता है इन १०० पाउंड से वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में प्रौद्योगिक पूंजीपतियों से उपभोग वस्तुएं खरीदते हैं। इन प्रकार वे उन्हें द्रव्य रूप में १०० पाउंड वापस करते हैं और उनसे १०० पाउंड की उपभोग वस्तुएं लेते हैं। इसके साय प्रौद्योगिक पूंजीपतियों द्वारा निष्क्रिय पूंजीपतियों को दिये द्रव्य रूप में १०० पाउंड का पश्चप्रवाह पूरा हो जाता है। क्या द्रव्य का यह पश्चप्रवाह औद्योगिक पूंजीपतियों को धनी बनाने का साधन है , जैसा कि देस्तु सोचते हैं ? लेन-देन के पहले उनके पास २०० पाउंड की एक मूल्य राशि थी, जिसमें १०० द्रव्य रूप में ये और १०० उपभोग वस्तुओं के रूप में। लेन-देन बाद उनके पास प्राद्य मूल्य राशि का प्राधा ही है। द्रव्य रूप में १०० पाउंड फिर उनके पास आ गये हैं, लेकिन उपभोग वस्तुओं के रूप में १०० पाउंड चले गये हैं, जो निष्क्रिय पूंजीपतियों के हाथ में पहुंच गये हैं। इसलिए १०० पाउंड से समृद्ध होने के बदले वे १०० पाउंड से और निधन हो गये हैं। पहले १०० पाउंड द्रव्य रूप में देने और फिर १०० पाउंड की उपभोग वस्तुओं की अदायगी में ये १०० पाउंड द्रव्य रूप में वापस पाने के चक्करदार रास्ते के बदले , यदि वे किराया , मृद , बारह अपने उत्पाद के दैहिक रूप में प्रत्यक्षतः दे देते , तो परिचलन 1