पृष्ठ:कार्ल मार्क्स पूंजी २.djvu/७६

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उत्पादक पूंजी का परिपथ . रूप १ में द्र श्र उ सा मा' -द्र' - मा में मा' के लिए केवल उसके रूप के अनुरूप परिचलन क्रियाएं सम्मिलित हैं, जो उसके पुनरुत्पादन के दौर हैं। किन्तु मा'-द्र'-मा सम्पन्न करने के लिए जिस मा में मा' का रूपान्तरण होता है, उसका वास्तविक पुनरुत्पादन आवश्यक होता है। लेकिन यह पुनरुत्पादन की उन प्रक्रियाओं पर निर्भर होता है, जो मा द्वारा व्यंजित वैयक्तिक पूंजी की पुनरुत्पादन प्रक्रिया से बाहर होती हैं। • मा< क्रिया द्रव्य पूंजी के उत्पादक पूंजी में प्रथम रूपान्तरण की तैयारी मान करती है। रूप २ में वह उसके माल पूंजी से उत्पादक पूंजी में पुनःरूपान्तरण की तैयारी करती है ; दूसरे शब्दों में जहां तक कि औद्योगिक पूंजी का निवेश यथावत रहता है, माल पूंजी का यह पुनःरूपान्तरण उत्पादन के उन्हीं तत्वों में होता है, जिनसे उसका उद्भव हुआ था। फलतः वह क्रिया यहां और रूप १ में भी उत्पादन प्रक्रिया की तैयारी के दौर के रूप में प्रकट होती है, किन्तु वह उसे प्रत्यावर्तन के रूप में, उसके नवीकरण के रूप में, अतः पुनरुत्पादन प्रक्रिया के पूर्वगामी के रूप में और इस कारण मूल्य के स्वविस्तार की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति की तरह प्रकट होती है। इस बात पर फिर ध्यान देना चाहिए कि द्र श्र मालों का साधारण विनिमय नहीं है, वरन माल श्र की ख़रीद है। जैसे द्र -उ सा केवल एक कार्य-पद्धति है, जो वेशी मूल्य के उत्पादन के लिए भौतिक रूप में अनिवार्य है, वैसे ही श्र की ख़रीद इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक आवश्यक काम है। द्र - मा< क्रम पूरा होने पर द्र उत्पादक पूंजी उ में पुनः परिवर्तित हो जाता है और परिपथ नये सिरे से शुरू हो जाता है। अतः उ ... मा' -द्र'-मा उ का विस्तारित रूप इस प्रकार है : . 7 श्र उ सा मा<3 श्र उसा उ... मा' + मा + 'द्र मा उत्पादक पूंजी में द्रव्य पूंजी रूपान्तरण का अर्थ है मालों के उत्पादन के लिए मालों की खरीद । स्वयं पूंजी के परिपथ के भीतर उपभोग उसी सीमा तक आता है, जिस सीमा तक वह उत्पादक उपभोग होता है। उसकी पूर्वापेक्षा यह है कि इस प्रकार उपभुक्त मालों द्वारा वेशी मूल्य का उत्पादन होता है। और यह वात उत्पादन से, यहां तक कि माल उत्पादन से भी , जिसका उद्देश्य उत्पादक का अस्तित्व होता है, वहुत भिन्न है। माल की जगह माल का ऐसा प्रतिस्थापन , जो वेशी मूल्य के उत्पादन के अधीन हो, उत्पाद के विशुद्ध विनिमय मात्र से नितान्त भिन्न है, जो केवल द्रव्य द्वारा सम्पादित होता है। किन्तु अर्थशास्त्री इसे इसका प्रमाण मान लेते हैं कि प्रत्युत्पादन सम्भव नहीं है। द्र के , जो श्र और उ सा में रूपान्तरित होता है, उत्पादक उपभोग के अलावा परिपथ